अध्याय—सैंतीस
मुर्शिद लोगों को आग और खून की बाढ़ से सावधान करते हैं
बचने का मार्ग बताते हैं, और अपनी नौका को जल में उतारते हैं
मीरदाद : क्या चाहते हो तुम मीरदाद से? वेदी को सजाने के लिये सोने का रत्न —जटित दीपक? परन्तु मीरदाद न सुनार है, न जौहरी, आलोक—स्तम्भ और आश्रय वह भले ही हो।
या तुम तावीज चाहते हो बुरी नजर से बचने के लिये? Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्याय-37)”