किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-37)

अध्याय—सैंतीस

मुर्शिद लोगों को आग और खून की बाढ़ से सावधान करते हैं

बचने का मार्ग बताते हैं, और अपनी नौका को जल में उतारते हैं

मीरदाद : क्या चाहते हो तुम मीरदाद से? वेदी को सजाने के लिये सोने का रत्न —जटित दीपक? परन्तु मीरदाद न सुनार है, न जौहरी, आलोक—स्तम्भ और आश्रय वह भले ही हो।

या तुम तावीज चाहते हो बुरी नजर से बचने के लिये? Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-37)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-36)

अध्याय—छत्तीस

नौका — दिवस तथा उसके धार्मिक अनुष्ठान

जीवित दीपक के बारे में बेसार के सुलतान का सन्देश

नरौंदा : जब मुर्शिद बेसार से लौटे तब से शमदाम उदास और अलग —अलग सा रहता था। किन्तु जब नौका —दिवस निकट आ गया तो वह उल्लास तथा उत्साह से भर गया और सभी जटिल तैयारियों का, छोटी से छोटी बातों तक का. नियन्त्रण उसने स्वयं सँभाल लिया।

अगर —बेल के दिवस की तरह नौका —दिवस को भी एक दिन से बढ़ा कर उल्लास —भरे आमोद—प्रमोद का पूरा सप्ताह बना लिया गया था जिसमें सब प्रकार की वस्तुओं तथा सामान का तेजी के साथ व्यापार होता था। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-36)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-35)

अध्याय—पैंतीस

परमात्मा की राह पर प्रकाश — कण

मीरदाद : इस रात के सन्नाटे में मीरदाद परमात्मा की ओर जाने वाली तुम्हारी राह पर कुछ प्रकाश —कण बिखेरना चाहता है।

विवाद से बचो। सत्य स्वयं प्रमाणित है; उसे किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं। जिसे तर्क और प्रमाण के सहारे की आवश्यकता होती है, उसे देर—सवेर तर्क और प्रमाण के द्वारा ही गिरा दिया जाता है। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-35)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-34)

अध्याय—चौंतीस

माँ— अण्डाणु

मीरदाद : मीरदाद चाहता है कि इस रात के सन्नाटे में तुम एकाग्र —चित्त होकर माँ—अण्डाणु के विषय में विचार करो।

स्थान और जो कुछ उसके अन्दर है एक अण्डाणु है जिसका खोल समय है। यही माँ —अण्डाणु है।

जैसे धरती को वायु लपेटे हुए है, वैसे ही इस अण्डाणु को लपेटे हुए है विकसित परमात्मा. विराट परमात्मा — जीवन जो कि अमूर्त, अनन्त और अकथ है। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-34)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-33)

अध्याय—तैंतीस

रात्रि — अनुपम गायिका

नरौंदा : पर्वतीय नीड़ के लिये, जिसे बर्फीली हवाओं और बर्फ के भारी अम्बारों ने पूरे शीतकाल में हमारी पहुँच से परे रखा था, हम सब इस प्रकार तरस रहे थे जिस प्रकार कोई निर्वासित व्यक्ति अपने घर के लिये तरसता है।

हमें नीड़ में ले जाने के लिये मुर्शिद ने बसन्त की एक ऐसी रात चुनी जिसके नेत्र कोमल और उज्ज्वल थे, जिसकी साँस उष्ण और सुगन्धित थी, जिसका हृदय सजीव और सजग था। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-33)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-32)

अध्याय—बत्तीस

पाप और आवरण

मीरदाद : पाप के विषय में तुम्हें बता दिया गया है, और यह तुम जान जाओगे कि मनुष्य पापी कैसे बना।

तुम्हारा कहना है, और वह सारहीन भी नहीं है, कि परमात्मा का प्रतिबिम्ब और प्रतिरूप मनुष्य यदि पापी है, तो स्पष्ट है कि पाप का स्रोत स्वय परमात्मा ही है। इस तर्क में भोले —भाले लोगों के लिये एक जाल है, और तुम्हें, मेरे साथियो, मैं जाल में फँसने नहीं दूँगा। इसलिये मैं इस जाल को तुम्हारे रास्ते से हटा दूँगा. ताकि तुम इसे अन्य मनुष्यों के रास्ते से हटा सकी। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-32)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-31)

अध्याय—इकत्तीस

निज घर के लिये महाबिरह

मीरदाद : धुन्ध के समान है निज घर के लिये महाविरह। जिस प्रकार समुद्र और धरती से उठी धुन्ध समुद्र तथा धरती पर ऐसे छा जाती है कि उन्हें कोई देख नहीं सकता, इसी प्रकार हृदय से उठा महाविरह हृदय पर ऐसे छा जाता है कि उसमें और कोई भावना प्रवेश नहीं कर सकती।

और जैसे धुन्ध स्पष्ट दिखाई देने वाले यथार्थ को आँखों से ओझल करके स्वयं एकमात्र यथार्थ बन जाती है. वैसे ही यह विरह मन की अन्य भावनाओं को दबा कर स्वय प्रमुख भावना बन जाता है। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-31)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-30)

अध्याय—तीस

मुर्शिद मिकेयन का स्वम्न सुनाते हैं

नरौंदा : मुर्शिद के बेसार से लौटने से पहले और उसके बाद काफी समय तक हमने मिकेयन को एक मुसीबत में पड़े व्यक्ति की तरह आचरण करते देखा। अधिकतर वह अलग रहता, न कुछ बोलता, न खाता और कम ही अपनी कोठरी से बाहर निकलता। अपना भेद वह मुझे भी नहीं बता रहा था। और हम सब चकित थे कि मुर्शिद उसे बहुत चाहते हैं. फिर भी वे उसकी पीड़ा को कम करने के लिये न कुछ कह रहें है न कुछ कर रहे हैं। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-30)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-29)

अध्याय—उन्नतीस

शमदाम साथियों को मना कर

अपने साथ मिलाने का असफल यत्न करता है

मीरदाद चमत्कारपूर्ण ढंग से लौटता है

और शमदाम के अतिरिक्त

सब साथियों को विश्वास का चुम्बन प्रदान करता है

नरौंदा : जाड़े ने हमें आ दबोचा था, बहुत फ्लू, बर्फीले, कँपा देने वाले जाड़े ने। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-29)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-28)

अध्याय—अट्ठाईस

बेसार का सुलतान

शमदाम के साथ नीड़ मे आता है

युद्ध और शान्ति के विषय में सुलतान और मीरदाद में वार्तालाप

शमदाम मीरदाद को जाल में फँसाता है

नरौंदा : मुर्शिद ने अपनी बात समाप्त की ही थी और हम उनके शब्दों पर विचार कर रहे थे, तभी बाहर भारी पद—चाप और उसके साथ दबे स्वर में कुछ अस्पष्ट बातचीत सुनाई दी। शीघ्र ही दो विशालकाय सिपाहां, जो एड़ी से चोटी तक शस्त्रों से सज्जित थे, द्वार पर आये और उसके दोनों ओर खड़े हो गये। उनके हाथों में नंगी तलवारें थीं जो धूप में चमक रही थीं। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-28)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-27)

अध्याय—सत्ताईस

सत्य का उपदेश क्या सबको दिया जाना चाहिये

या कुछ चुने हुए व्यक्तियों को?

अगर — बेल के दिवस से एक दिन पहले

अपने लुप्त होने का भेद मीरदाद प्रकट करता है

और झूठी सत्ता की चर्चा करता है

नरौंदा : प्रीति—भोज जब स्मृति —मात्र रह गया था. उसके काफी समय बाद एक दिन सातों साथी पर्वतीय नीड़ में मुर्शिद के पास इकट्ठे हुए थे। उस दिन की स्मरणीय घटनाओं पर जब साथी विचार कर रहे थे तो मुर्शिद चुप रहे। कुछ साथियों ने उत्साह के उस महान उद्वेग पर आश्चर्य प्रकट किया जिसके साथ जनसमूह ने मुर्शिद के वचनों का स्वागत किया था। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-27)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-26)

अध्याय—छबीस

अंगूर—बेल के दिवस पर आये

यात्रियों को मीरदाद प्रभावशाली उपदेश देता है

और

नौका को कुछ अनावश्यक भार से मुक्त करता है

मीरदाद : देखो मीरदाद को — अंगूर की उस बेल को जिसकी फसल अभी तक नहीं काटी गई, जिसका रस अभी तक नहीं पिया गया। अपनी फसल से लदा हुआ है मीरदाद। पर, अफसोस, लुनेरे दूसरी ही अगर —वाटिकाओं में व्यस्त हैं। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-26)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-25)

अध्याय—पच्चीस

अगर — बेल का दिवस और उसकी तैयारी

उससे एक दिन पहले मीरदाद लापता पाया जाता है

नरौंदा : अंगूर—बेल का दिवस निकट आ रहा था और हम नौका के निवासी, जिनमें मुर्शिद भी शामिल थे, बाहर से आये स्वयंसेवी सहायकों की टुकड़ियों के साथ रात —दिन बड़े प्रीतिभोज की तैयारियों में जुटे थे। मुर्शिद अपनी सम्पूर्ण शक्ति से और इतने अधिक उत्साह के साथ काम कर रहे थे कि शमदाम तक ने स्पष्ट रूप से सन्तोष प्रकट करते हुए इस पर टिप्पणी की। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-25)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-24)

अध्याय—चौबीस

खाने के लिये मारना क्या उचित है?

ब शमदाम और कसाई चले गये तो मिकेयन ने मुर्शिद से पूछा :

मिकेयन : खाने के लिये मारना क्या उचित नहीं है मुर्शिद?

मीरदाद : मृत्यु से पेट भरना मृत्यु का आहार बनना है। दूसरों की पीड़ा पर जीना पीड़ा का शिकार होना है। यही आदेश है प्रभु —इच्छा का। यह समझ लो और फिर अपना मार्ग चुनो मिकेयन। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-24)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-23)

अध्याय—तेईस

मीरदाद सिम—सिम को स्वस्थ करता है

और बुढ़ापे के बारे में चर्चा करता है

नरौदा : नौका की पशुशालाओं की सबसे बूढ़ी गाय सिम —सिम पाँच दिन से बीमार थी और चारे या पानी को मुँह नहीं लगा रही थी। इस पर शमदाम ने कसाई को बुलवाया। उसका कहना था कि गाय को मार कर उसके मास और खाल की बिक्री से लाभ उठाना अधिक समझदारी है, बनिस्बत इसके कि गाय को मरने दिया जाये और वह किसी काम न आये। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-23)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-22)

अध्याय—बाईस

मीरदाद जमोरा को उसके रहस्य के भार से मुक्त करता है

और पुरुष तथा स्त्री की, विवाह की, ब्रह्मचर्य की

तथा आत्म— विजेता की

बात करता है

मीरदाद : नरौंदा मेरी विश्वसनीय स्मृति। क्या कहते हैं तुमसे ये कुमुदिनी के फूल?

नरौंदा : ऐसा कुछ नहीं जो मुझे सुनाई देता हो, मेरे मुर्शिद। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-22)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-21)

अध्याय—इक्कीस

पवित्र प्रभु — इच्छा

घटनाएँ जैसे और जब घटती हैं वैसे

और तब क्यो घटती हैं?

मीरदाद : कैसी विचित्र बात है कि तुम, जो समय और स्थान के बालक हो, अभी तक यह नहीं जानते कि समय स्थान की शिलाओं पर अंकित की हुई ब्रह्माण्ड की स्मृति है।

यदि इन्द्रियों द्वारा सीमित होने के बावजूद तुम अपने जन्म और मृत्यु के बीच की कुछ विशेष बातों को याद रख सकते हो तो समय, जो तुम्हारे जन्म से पहले भी था और तुम्हारी मृत्यु के बाद भी अनिश्चित काल तक रहेगा, कितनी अधिक बातों को याद रख सकता है? Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-21)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-20)

अध्याय—बीस

मरने के बाद हम कहां जाते हैं?

पश्चात्ताप

मिकास्तर : मुर्शिद, मरने के बाद हम कहाँ जाते हैं?

मीरदाद : इस समय तुम कहाँ हो, मिकास्तर?

मिकास्तर : नीड़ में।

मीरदाद : तुम समझते हो कि यह नीड़ तुम्हें अपने अन्दर रखने के लिये काफी बड़ा है? तुम समझते हो कि यह धरती मनुष्य का एकमात्र घर है? Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-20)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-19)

अध्याय—उन्नीस

तर्क और विश्वास

अहं को नकारना अहं को उभारना है

समय के पहिये को कैसे रोका जाये

रोना और हँसना

बैबून : क्षमा करें, मुर्शिद। आपका तर्क अपनी तर्कहीनता से मुझे उलझन में डाल देता है।

मीरदाद : हैरानी की बात नहीं,, कि तुम्हें ‘न्यायाधीश’ कहा गया है। किसी मामले के तर्क-संगत का विश्वास हो जाने पर ही उस पर निर्णय दे सकते हो।

तुम इतने समय तक न्यायाधीश रहे हो,  तो भी क्‍या अब तक यह नहीं जान पाये कि तर्क का एकमात्र उपयोग मनुष्य को तर्क से छुटकारा दिलाना और उसको विश्वास की ओर प्रेरित करना है जो दिव्य ज्ञान की ओर ले जाता है। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-19)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-18)

अध्याय—अठारह

हिम्बल के पिता की मृत्यु

तथा जिन परिस्थितियों में उसकी मृत्‍यु उन्हें मीरदाद

दिव्य शक्ति के द्वारा जान है

वह मृत्यु की बात करता है

समय सबसे बड़ा मदारी है

समय का चक्र, उसकी हाल और उसकी धुरी

नरौंदा : एक लम्बे समय के बाद, जब बहुत—सा जल पहाड़ों से नीचे बहता हुआ समुद्र में जा मिला था, हिम्बल के सिवाय बाकी सब साथी एक बार फिर नीड़ में मुर्शिद के चारों ओर इकट्ठे हुए। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-18)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-17)

अध्याय—सत्रह

मीरदाद के विरुद्ध अपने संघर्ष में शमदाम रिश्वत का सहारा लेता है।

नरौंदा : कई दिन तक रस्तिदियन का मामला नौका में चर्चा का मुख्य विषय बना रहा। मिकेयन, मिकास्तर तथा जमील ने जोश के साथ मुर्शिद की सराहना की; जमील ने तो कहा कि उसे धन को देखने और छूने तक से शा। है। बैनून तथा अबिमार ने दबे स्वर में सहमति और असहमति प्रकट की। लेकिन हिम्बल ने यह कहते हुए स्पष्ट किया कि धन के बिना ससार का काम कभी नहीं चल सकता और कम—खर्ची और परिश्रम के लिये धन—सम्पत्ति परमात्मा का उचित पुरस्कार है. Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-17)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-16)

अध्याय–सोलह

लेनदार और देनदार

धन क्या है?

रस्तिदियन को नौका के ऋण से मुक्त किया जाता है

नरौंदा : एक दिन जब सातों साथी और मुर्शिद नीड से नौका की ओर लौट रहे थे तो उन्होंने द्वार पर खड़े शमदाम को अपने पैरों में गिरे एक व्यक्ति के सामने का?।ज़ का एक टुकडा हिलाते हुए कुद्ध स्वर में कहते सुना : ”तुम्हारी लापरवाही ने मेरे धैर्य को समाप्त कर दिया है। अब मैं और नरमी नहीं बरत सकता। अपना ऋण अभी चुकाओ, नहीं तो जेल में सड़ी।’’ Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-16)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-15)

अध्‍याय—पंद्रहवा

शमदाम मीरदाद को

नौका से बाहर निकाल देने का प्रयत्न करता है

मुर्शिद अपमान करने, अपमानित होने

और ससार को दिव्य ज्ञान के द्वारा अपनाने के

बारे में बात करता है

नरौंदा : मुर्शिद ने अभी अपनी बात पूरी की ही थी कि मुखिया की भारी—भरकम देह नीड़ के द्वार पर दिखाई दी, और ऐसा लगा जैसे उसने हवा और रोशनी की राह बन्द कर दी हो। और उस एक क्षण के लिये मेरे मन में विचार कौंधा कि द्वार पर दिखाई दे रही आकृति कोई और नहीं है, केवल उन दो प्रमुख यमदूतों में से एक है जिनके बारे में मुर्शिद ने हमें अभी—अभी बताया था। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-15)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-14)

अध्याय—चौदह

मनुष्‍य के काल—मुक्‍त जन्‍म पर

दो प्रमुख देवदूतों का संवाद और

दो प्रमुख यमदूतों का संवाद

 मीरदाद—मनुष्य के काल— मुक्त जन्म पर ब्रह्माण्ड के ऊपरी छोर पर दो प्रमुख देवदूतों के बीच निम्नलिखित बातचीत हुई :

पहले देवदूत ने कहा:

एक विलक्षण बालक को जन्म दिया है धरती ने; और धरती प्रकाश से जगमगा रही है। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-14)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-13)

अध्याय—तेरह

प्रार्थना

मीरदाद : तुम व्यर्थ में प्रार्थना करते हो जब तुम अपने आप को छोड़ देवताओं को सम्बोधित करते हो।

क्योंकि तुम्हारे अन्दर है आकर्षित करने की शक्ति, जैसे दूर भगाने की शक्ति तुम्हारे अन्दर है।

और तुम्हारे अन्दर हैं वे वस्तुएँ जिन्हें तुम आकर्षित करना—चाहते हो, जैसे वे वस्तुएँ जिन्हें तुम दूर भगाना चाहते हो तुम्हारे अन्दर हैं।

क्योंकि किसी वस्तु को लेने का सामर्थ्य रखना उसे देने का सामर्थ्य रखना भी है। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-13)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-12)

अध्याय—बारह

सिरजनहार मौन

मुख से कही बात अधिक से अधिक एक निष्कपट झूठ है

नरौंदा : जब तीन दिन बीत गये तो सातों साथी, मानों किसी सम्मोहक आदेश के अधीन, अपने आप इकट्ठे हो गये और नीड़ की ओर चल पड़े। मुर्शिद हमसे यों मिले जैसे उन्हें हमारे आने की पूरी आशा रही हो।

मीरदाद : मेरे नन्हें पंछियो, एक बार फिर मैं तुम्हारे नीड़ में तुम्हारा स्वागत करता हूँ। अपने विचार और इच्छाएँ मीरदाद से स्पष्ट कह दो। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-12)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-11)

अध्याय—ग्यारह

प्रेम प्रभु का विधान है

मीरदाद दो साथियों के बीच हुए मन— मुटाव को

ताड़ लेता है, रबाब मँगवाता है

और नई नौका का स्तुति— गीत गाता है

मीरदाद : प्रेम ही प्रभु का विधान है।

तुम जीते हो ताकि तुम प्रेम करना सीख लो। तुम प्रेम करते हो ताकि तुम जीना सीख लो। मनुष्य को और कुछ सीखने की आवश्यकता नहीं।

और प्रेम करना क्या है, सिवाय इसके कि प्रेमी प्रियतम को सदा के लिये अपने अन्दर लीन कर ले ताकि दोनों एक हो जायें? Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-11)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-10)

अध्‍याय—दस

मीरदाद : मुझे कोई निर्णय नहीं देना है, देना है केवल दिव्य ज्ञान। मैं संसार में निर्णय देने नहीं आया, बल्कि उसे निर्णय के कथन से मुक्त करने आया हूँ। क्योंकि केवल अज्ञान ही न्यायाधीश की पोशाक पहन कर कानून के अनुसार दण्ड देना चाहता है।

अज्ञान का सबसे निष्ठुर निर्णायक स्वयं अज्ञान है। मनुष्य को ही लो। क्या उसने अज्ञानवश अपने आप को चीर कर दो नहीं कर डाला और इस प्रकार अपने लिये तथा उन सब पदार्थों के लिये जिनसे उसका खण्डित संसार बना है उसने मृत्यु को निमन्त्रण नहीं दे दिया?

मैं तुमसे कहता हूँ. प्रभु और मनुष्य अलग नहीं हैं। केवल है प्रभु—मनुष्य या मनुष्य—प्रभु। वह एक है। उसे चाहे जैसे भी गुणा करें, चाहे जैसे भी भाग दें, वह सदा एक है। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-10)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-09)

अध्याय—नौ

पीड़ा— मुक्त जीवन का मार्ग

साथी जानना चाहते हैं कि क्या मीरदाद ही

गुप्त रूप से नूह की नौका में चढ़ने वाला व्यक्ति था

मिकास्तर : हमें मार्ग दिखाओ।

मीरदाद : यह है चिन्ता और पीडा से मुक्ति का मार्ग

”इस तरह सोचो मानों तुम्हारे हर विचार को आकाश में आग से अंकित होना है ताकि उसे हर प्राणी, हर पदार्थ देख सके। और वास्तव में वह अंकित होता भी है। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-09)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-08)

अध्याय-आठ

सात साथी मीरदाद से मिलने नीड़ में जाते हैं

जहाँ वह उन्हें अँधेरे में काम करने से सावधान करता है

रौंदा : उस दिन मैं और मिकेयन प्रभात की प्रार्थना में गये ही नहीं। शमदाम को हमारी अनुपस्थिति अखरी और यह पता लग जाने पर कि हम रात को मुर्शिद से मिलने गये थे, वह बहुत अप्रसन्न हुआ। फिर भी उसने अपनी अप्रसन्नता प्रकट नहीं की, उचित समय की प्रतीक्षा करता रहा। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-08)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-07)

अध्याय—सात

मिकेयन और नरौंदा

रात को मीरदाद से बातचीत करते हैं

जो भावी जल—प्रलय का संकेत देता है

और उनसे तैयार रहने का आग्रह करता है

नरौंदा : रात्रि के तीसरे पहर की लगभग दूसरी घडी थी जब मुझे लगा कि मेरी कोठरी का द्वार खुल रहा है और मैंने मिकेयन को धीमे स्वर में कहते सुना

”क्या तुम जाग रहे हो, नरौंदा?”

”इस रात मेरी कोठरी में नींद का आगमन नहीं हुआ है. मिकेयन।’’ Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-07)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-06)

अध्याय—छ:

स्वामी और सेवक

साथी मीरदाद के बारे में अपने विचार प्रकट करते हैं

मीरदाद मीरदाद ही शमदाम का एकमात्र सेवक नहीं है। शमदाम, क्या तुम अपने सेवकों की गिनती कर सकते हो?

क्या कोई गरुड या बाजू है, क्या कोई देवदार या बरगद है, क्या कोई पर्वत या नक्षत्र है, क्या कोई महासागर या सरोवर है, क्या कोई फरिश्ता या बादशाह है जो शमदाम की सेवा न कर रहा हो? क्या सारा ससार ही शमदाम की सेवा में नहीं है?

न ही मीरदाद शमदाम का एकमात्र स्वामी है। शमदाम, क्या तुम अपने स्वामियों की गिनती कर सकते हो? Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-06)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-05)

 अध्याय—पाँच

कुठालियाँ और चलनियाँ

शब्द प्रभु का और मनुष्य का

प्रभु का शब्द एक कुठाली है। जो कुछ वह रचता है उसको पिघला कर एक कर देता है. न उसमें से किसी को अच्छा मान कर स्वीकार करता है, न ही बुरा मान कर ठुकराता है। दिव्य ज्ञान से परिपूर्ण होने के कारण वह भली—भाँति जानता है कि उसकी रचना और वह स्वय एक हैं, कि एक अंश को ठुकराना सम्पूर्ण को ठुकराना है; और सम्पूर्ण को ठुकराना अपने आप को ठुकराना है। इसलिये उसका उद्देश्य और आशय सदा एक ही रहता है। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-05)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-04)

 अध्याय—पाँच

कुठालियाँ और चलनियाँ

शब्द प्रभु का और मनुष्य का

प्रभु का शब्द एक कुठाली है। जो कुछ वह रचता है उसको पिघला कर एक कर देता है. न उसमें से किसी को अच्छा मान कर स्वीकार करता है, न ही बुरा मान कर ठुकराता है। दिव्य ज्ञान से परिपूर्ण होने के कारण वह भली—भाँति जानता है कि उसकी रचना और वह स्वय एक हैं, कि एक अंश को ठुकराना सम्पूर्ण को ठुकराना है; और सम्पूर्ण को ठुकराना अपने आप को ठुकराना है। इसलिये उसका उद्देश्य और आशय सदा एक ही रहता है।

जब कि मनुष्य का शब्द एक चलनी है। जो कुछ यह रचता है उसे लड़ाई—झगड़े में लगा देता है। यह निरन्तर किसी को मित्र मान कर अपनाता रहता है तो किसी को शत्रु मान कर ठुकराता रहता है। और अकसर इसका कल का मित्र आज का शत्रु बन जाता है, आज का शत्रु? कल का मित्र। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-04)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-04)

अध्याय—चार

मनुष्य पोतड़ों में लिपटा एक परमात्मा है।

नुष्य पोतड़ो में लिपटा एक परमात्मा है। समय एक पोतडा है. स्थान एक पोतड़ा है, देह एक पोतड़ा है, और इसी प्रकार हैं इन्द्रियाँ तथा उनके द्वारा अनुभव—गम्य वस्तुएँ भी। माँ भली प्रकार जानती है कि पोतड़े शिशु नहीं हैं। परन्तु बच्चा यह नहीं जानता।

अभी मनुष्य का अपने पोतड़ों में बहुत अधिक ध्यान रहता है जो हर दिन के साथ, हर युग के साथ बदलते रहते हैं। इसलिये उसकी चेतना में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है, Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-04)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-03)

अध्याय—तीन

पावन त्रिपुटी

और

पूर्ण सन्तुलन

मीरदाद : यद्यपि तुममें से हर एक अपने—अपने ‘मैं’ में केन्द्रित है फिर भी तुम सब एक ‘मैं’ में केन्द्रित हो— प्रभु के एकमात्र ‘मैं’ में।

प्रभु का ‘मैं’, मेरे साथियो, प्रभु का शाश्वत, एकमात्र शब्द है। इसमें प्रभु प्रकट होता है जो परम चेतना है। इसके बिना वह पूर्ण मौन ही रह जाता। इसी के द्वारा स्रष्टा ने अपनी रचना की है। इसी के द्वारा वह निराकार अनेक आकार धारण करता है जिनमें से होते हुए जीव फिर से निराकारता में पहुँच जायेंगे। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-03)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-02)

अध्‍याय—दो

सिरजनहार शब्द

‘’मैं’’ समस्त वस्तुओं का स्रोत और केन्द्र है।

मीरदाद: जब तुम्‍हारे मुख से ‘मैं’ निकले तो तुरन्त अपने हृदय में कहो, ”प्रभु, ‘मैं’ की विपत्तियों में मेरा आश्रय बनो, और ‘मैं’ के परम आनन्द की ओर चलने में मेरा मार्गदर्शन करो।’’ क्योंकि इस शब्द के अन्दर, यद्यपि यह अत्यन्त साधारण है, प्रत्येक अन्य शब्द की आत्मा कैद है। एक बार उसे मुक्त कर दो, तो सुगन्ध फैलायेगा तुम्हारा मुख मिठास में पगी होगी तुम्हारी जिह्वा, और तुम्हारे प्रत्येक शब्द से जीवन के आहलाद का रस टपकेगा।

उसे कैद रहने दो, तो दुर्गन्‍धपूर्ण होगा तुम्हारा मुख, कड्वी होगी तुम्हारी जिह्वा, और तुम्हारे प्रत्येक शब्द से मृत्यु का मवाद टपकेगा। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-02)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-01)

अध्‍याय—एक

यह है

किताब— ए मीरदाद

उस रूप में जिसमें इसे

उसके साथियों में से

सबसे छोटे और

सबसे तुच्छ

नरौंदा

ने लेखनीबद्ध किया।

जिनमें

आत्म—विजय के लिये

तड़प है

उनके लिये यह

आलोक—स्तम्भ और

आश्रय है।

बाकी सब

इससे सावधान रहें।

मीरदाद अपना परदा हटाता है

और

परदों और मुहरों के विषय में बात करता है Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-01)”

किताबे-ए-मीरदाद-(किताब की कहानी)

किताब की कहानी:-(ओशो की प्रिय पुस्तके)

बन्दी महन्त:

दूधिया पर्वत—माला के ऊँचे शिखर पर, जो पूजा—शिखर के नाम से जाना जाता है, एक मत के विशाल और उदास खण्डहर हैं। यह मठ किसी समय ”नूह की नौका” के नाम से प्रसिद्ध था। परम्परा के अनुसार इसकी प्राचीनता पौराणिक जल—प्रलय के साथ जुड़ी हुई है।

पूजा—शिखर की छाँह में मुझे एक गरमी का मौसम बिताने का अवसर मिला। मैंने पाया कि इस नौका के साथ अनेक लोक— कथाओं के ताने तन गये हैं। परन्तु जो कथा स्थानीय पर्वत—निवासियों की जबान पर सबसे ज्यादा चढ़ी हुई थी वह इस प्रकार हैद्। महान जल—प्रलय के कई वर्ष बाद हज़रत नूह अपने परिवार और उसमें हुई वृद्धि के साथ घूमते—घूमते दूधिया पर्वत—माला में पहुँचे। यहाँ उन्हें उपजाऊ घाटियाँ, जल से भरपूर सोते तथा सुखद जल—वायु मिला। उन्होंने यहीं बस जाने का निर्णय किया। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(किताब की कहानी)”

किताबे-ए-मीरदाद-(मिखाइल नईमी)

किताब—ए—मीरदाद (मिखाइल नईमी) ओशो की प्रिय पुस्तके

(किसी समय ‘’नौका’’ के नाम से पुकारे जाने वाले मठ की अद्भुत कथा)

प्रकाश की और से:

‘द बुक ऑफ मीरदाद में लोक कथा, कविता, दर्शन और आध्यात्मिकता का एक विलक्षण सम्मिश्रण देखने को मिलता है। पश्चिम के पाठकों में मिखाइल नईमी की दो दर्जन से अधिक पुस्तकों में से इसी को सबसे अधिक स्नेहपूर्ण स्थान प्राप्त है, और नईमी स्वय भी इसी को अपनी सर्वोत्तम रचना मानते थे।

नईमी का जन्म सन् 1889 ईस्वी में मध्य—पूर्व के देश लैबनान में समुद्र—तट के निकट. ऊँचे पहाड़ की ढलान पर बसे एक गाँव में एक निर्धन यूनानी ईसाई परिवार में हुआ जो मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर था। स्कूल की सबसे ऊँची क्सा का सर्वश्रेष्ठ छात्र होने के फलस्वरूप छात्रवृत्ति पाकर उन्होंने सन् 1906 से 1911 तक पाँच वर्ष रूस में शिक्षा प्राप्त की. और फिर कुछ मास लैबनान में बिताने के बाद उनको आगे पढ़ने के लिये संयोगवश अमेरिका जाने का अवसर मिला। वहाँ उनका अपने ही देश के एक प्रमुख लेखक खलील जिब्रान से परिचय हुआ, जिनके साथ मिल कर Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(मिखाइल नईमी)”

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