महावीर वाणी-(प्रवचन-27)

मनुष्‍यत्‍व : बढ़ते हुए होश की धारा—(प्रवचन—सत्‍ताइसवां)

दिनांक 12 सितम्‍बर,1972, द्वितीय पर्युषण व्‍याख्‍यानमाला, पाटकर हाल, बम्‍बई।

चतुरंगीय—सूत्र :

चत्तारि परमंगाणि, टुल्लहाणीह जंतुणो। माणुसत्तं सुई सद्धा, संजमम्मि य वीरियं।।

कम्माणं तु पहाणए, आणुपुव्‍वी क्याई उ। जीवा सोहिमणुप्पत्ता, आययन्ति्र मणुस्सयं।।

माणुसत्तम्मि आयाओं, जो धम्मं सोच्च सद्हे। तवस्सी वीरियं लडूं, संबुडे निद्धृणे स्व।।

संसार में जीवों को इन चार श्रेष्ठ अंगों का प्राप्त होना बड़ा दुर्लभ है—मनुष्यत्व, धर्म—श्रवण, श्रद्धा और संयम के लिए पुरुषार्थ। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-27)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-26)

विनय—शिष्‍य का लक्षण है—(प्रवचन—छब्‍बीसवां)

दिनांक 11 सितम्‍बर, 1972; द्वितीय पर्युषण व्‍याख्‍यानमाला, पाटकर हाल, मुम्‍बई।

विनय—सूत्र:

आणा—निद्देसकरे, गुरुणमुववायकारए। इंगिया—ऽऽ गारसंपन्ने, से विणीए त्ति बुच्चई।।

अह पन्नरसहिं ठाणेहिं, सुविणीए ति बुच्चई। नीयावत्ती अचवले, अमाई अकुऊहले।।

अप्प च अहिक्सिवई, पबन्धं च न कुब्बई। मेत्तिजमाणो भयई, सुयं लध्‍दुं न मज्जई।।

नय पावपरिक्सेवी, न य मित्तेसु कुप्पई। अप्पियस्साऽवि मित्तस्त, रहे कल्लाण भासई।।

कलहड़मरवज्जिए, बुद्धे अभिजाइए। हरिमं पडिसंलीणे, शुइवणीए ति बुच्चई।। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-26)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-25)

अरात्रि भोजन : शरीर—ऊर्जा का संतुलन—(प्रवचन—पच्‍चीसवां)

दिनांक 10 सितम्‍बर, 1972; द्वितीय पर्युषण व्‍याख्‍यानमाला, पाटकर हाल, बम्‍बई।

अरात्रि—भोजन—सूत्र :

अत्थंगयंमि आइज्‍चे, पुरत्था य अणुग्गए। आहारमाइयं सव्‍वं, भणसा वि न पत्थए।।

पाणिवह—मुसावायाऽदत्त मेहुण—परिग्गहा विरओ। राइभोयणविरओ, जीवो भवइ अणासवो।।

 सूर्योदय के पहले और सूर्यास्त के बाद श्रेयार्थी को सभी प्रकार के भोजन—पान आदि की मन से भी इच्छा नहीं करनी चाहिए। हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन, परिग्रह और रात्रि—भोजन से जो जीव विरत रहता है, वह निराश्रव अर्थात निर्दोष हो जाता है। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-25)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-24)

संग्रह : अंदर के लोभ की झलक—(प्रवचन—चौबीसवां)

दिनांक 9 सितम्‍बर, 1972;  द्वितीय पर्युषण, व्‍याख्‍यानमाला,  पाटकर हाल, बम्‍बई।

अपरिग्रह—सूत्र:

 न सो परिग्गह बुत्तो, नायपुत्तेण ताइणा। मूच्‍छा परिग्गहो द्वी, इइ बुतं महेसिणा।।

लोहस्सेस अणुकोसी, मन्ने अन्नरामवि। जे सिया सन्निहिकामे, गिही पब्बइए न से।।

 प्राणिमात्र के संरक्षक ज्ञातपुत्र ( भगवान महावीर) ने कुछ वस्‍त्र आदि स्थूल पदार्थों के रखने को परिग्रह नहीं बतलाया है। लेकिन इन सामग्रियों में असक्ति, ममता व मूर्छा रखना ही परिग्रह है, ऐसा उन महर्षि ने बताया है। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-24)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-23)

ब्रह्मचर्य : कामवासना से मुक्‍ति—प्रवचन—तेईसवां

दिनांक 8 सितम्‍बर, 1972; द्वितीय पर्युषण व्‍याख्‍यानमाला, पाटकर हाल, बम्‍बई।

ब्रह्मचर्य—सूत्र : 2

सद्दे रूवे य गंधे य, रसे फासे तहेव य। पंचविहे कामगुणे, निच्चसो परिवज्जए।।

कामाणुगिद्धिप्पभवं खु दुक्खंसब्बस्स लोगस्स सदेवगस्स।

जे काइयं माणसिय च किचितस्सऽन्तगं गच्छइ वीयरागो।।

 देवदाणव गंधब्बा जक्सरक्ससकिन्नरा।  बंभयारि नमंसन्ति टुकरं जे करेलि तं।।

एस धम्मे धुवे निच्चे, सासए जिणदेसिए। सिद्धासिज्झन्ति चाणेण, सिाइस्कृस्सन्तितहाऽवरे।।

 शब्द, रूप गंध, रस और स्पर्श इन पांच प्रकार के काम गुणों को भिक्षु सदा के लिए त्याग दें। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-23)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-22)

कामवासना है दूसरे की खोज—(प्रवचन—बाइसवां)

दिनांक 7 सितम्‍बर, 1971; द्वितीय पर्युषण व्‍याख्‍यानमाला, पाटकर हाल, बम्‍बई।

ब्रह्मचर्य—सूत्र : 1

विरई अबंभचेरस्स, काम—भोगरसत्रुणा। उग्‍गं महव्ययं बम, धारेयव्‍वं सुदुक्करं।।

मूलमेयमहम्मस्स महोदोससमुस्सयं। तन्हा मेहुणसंसग्गं, निग्गंधा वज्जयन्ति णं।।

विआ ईत्थिसंसग्गो, पणीय रसभोयण। नरस्सऽत्तगवेसिस्स, विसं तालउडं जहा।।

जो मनुष्य काम और भोगों के रस को जानता है, उनका अनुभवी है, उसके लिए अब्रह्मचर्य त्यागकर, ब्रह्मचर्य के महाव्रत को धारण करना अत्यन्त दुष्कर है। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-22)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-21)

सत्‍य सदा सार्वभौम है—(प्रवचन—इक्‍कीसवां)

दिनांक 6 सितम्‍बर, 1972; द्वितीय पयुषण व्‍याख्‍यानमाला, पाटकर हाल, बम्‍बई।

सत्‍य–सूत्र :

  निच्चकालऽप्पमत्तेणं, मुसावायविवज्जण। भासियब्ब हिय सच्चं, निच्चाऽऽउत्तेण रूर।।

तहेव सावज्जऽणुमोयणी गिराओहारिणी जा य परोवघायणी।

से कोह लोह भय हास माणवोन हासमाणो वि गिर वएज्‍जा।।

सदा अप्रमादी व सावधान रहते हुए असत्य को त्याग कर हितकारी सत्य—वचन ही बोलना चाहिए। इस प्रकार का सत्य बोलना सदा बड़ा कठिन होता है।

श्रेष्ठ साधु पापमय, निश्रयात्मक और दूसरों को दुख देने वाली वाणी न बोलें। इसी प्रकार श्रेष्ठ मानव को क्रोध, लोभ, भय और हंसी—मजाक में भी पापवचन नहीं बोलना चाहिए। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-21)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-20)

धर्म का मार्ग : सत्‍य का सीधा साक्षात्—(प्रवचन—बीसवां)

दिनांक 5 सितम्‍बर, 1972; द्वितीय पर्युषण व्‍याख्‍यानमाला, पाटकर हाल,बम्‍बई।

धम्म—सुत्र : 3

 जहां सागडिओ जाण, समं हिच्चा महापहं।,विसम मग्गमोइण्णो, अक्से भग्गम्मि सोयई।।

एवं धम्मं विउकम्म, अहम्म पडिवजिया। वाले मुस्तुमुहं पत्ते, अक्सेभग्गे व सोयई।।

जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तई। अहम्मं कुणमाणस्स, अफला जन्ति राइओ।।

जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तई। धम्म च कुणमाणस्स, सफला जन्ति राइओ।।

जरा जाव न पीडेई, वाही जाव न वड्ढई। जाविन्दिया न हायति, ताव धम्म समायरे।। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-20)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-19)

धर्म : एक मात्र शरण—(प्रवचन—उन्‍नीसवां)

  दिनांक 4 सितम्‍बर, 1972; द्वितीय पर्युषण व्‍याख्‍यानमाला, पाटकर हाल, बम्‍बई।

धम्म—सूत्र : 2

जरामरणवेगेण, वुज्झमाणाण पाणिणं।

धम्मों दीवो पइट्ठा य, गई सरणमुत्तमं।।

जरा और मरण के तेज प्रवाह में बहते हुए जीव के लिए धर्म ही एकमात्र द्वीप, प्रतिष्ठा, गति और उत्तम शरण है।

रस्‍तु ने कहा है कि—यदि मृत्यु न हो, तो जगत में कोई धर्म भी न हो। ठीक ही है उसकी बात, क्योंकि अगर मृत्यु न हो, तो जगत में कोई जीवन भी नहीं हो सकता मृत्यु केवल मनुष्य के लिए है। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-19)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-18)

कायोत्‍सर्ग : शरीर से विदा लेने की क्षमता—(प्रवचन—अठारहवां)

  दिनांक 4 सितम्‍बर, 1971; प्रथम पर्युषण व्‍याख्‍यानमाला,  पाटकर हाल, बम्‍बई।

      धम्‍म—सूत्र :

धम्मो मंगलमुकिट्ठंअहिंसा संजमो तवो।

देवा वि तं नमंसन्तिजस्त धम्मे सया मणो।।

धर्म सर्वश्रेष्ठमंगल है। (कौनसा धर्म?) अहिंसा, संयम और तपरूप धर्म। जिस मनुष्य का मन उक्त धर्म में सदा संलग्र रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-18)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-17)

सामायिक : स्‍वभाव में ठहर जाना—(प्रवचन—सत्रहवां)

दिनांक 3 सितम्‍बर, 1971; प्रथम पर्युषण व्‍याख्‍यानमाला, पाटकर हाल; बम्‍बई

धम्म—सूत्र:

धम्मो मंगलमुकिट्ठं, अहिंसा संजमो तवों।

देवा वि तं नमंसन्ति, जस्म धम्मे सया मणो।।

धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल है। (कौन सा धर्म?) अहिंसा, संयम और तपरूप धर्म। जिस मनुष्य का मन उक्त धर्म में सदा संलन्‍ग रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-17)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-16)

वैयावृत्य और स्वाध्याय—(प्रवचन—सोलहवां)

 दिनांक 2 सितम्बर, 1971; प्रथम पर्युषण व्याख्यानमाला, पाटकर हाल, बम्बई

धम्म-सूत्र

धम्मो मंगलमुक्किट्ठंअहिंसा संजमो तवो।

देवा वि तं नमंसन्तिजस्स धम्मे सया मणो ।।

धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल है। (कौन सा धर्म?) अहिंसा, संयम और तपरूप धर्म। जिस मनुष्य का मन उक्त धर्म में सदा संलग्न रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-16)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-15)

विनय : परिणति निरअहंकारिता की—(प्रवचन—पन्‍द्रहवां)

दिनांक 1 सितम्‍बर,1971; प्रथम पर्युषण व्‍याख्‍यानमाला, पाटकर हाल बम्‍बई।

धम्म-सूत्र :

धम्मो मंगलमुक्किट्ठंअहिंसा संजमो तवो।

देवा वि तं नमंसन्तिजस्स धम्मे सया मणो ।।

धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल है। (कौन सा धर्म?) अहिंसा, संयम और तपरूप धर्म। जिस मनुष्य का मन उक्त धर्म में सदा संलग्न रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-15)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-14)

प्रायश्र्चित : पहला अंतर तप—(प्रवचन—चौदहवां)

   दिनांक 31 अगस्‍त, 1971,  प्रथम पर्युषण व्‍याख्‍यानमाला,  पाटकर हाल, बम्‍बई

धम्म-सूत्र

धम्मो मंगलमुक्किट्ठंअहिंसा संजमो तवो।

देवा वि तं नमंसन्तिजस्स धम्मे सया मणो ।।

धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल है। (कौन सा धर्म?) अहिंसा, संयम और तपरूप धर्म। जिस मनुष्य का मन उक्त धर्म में सदा संलग्न रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-14)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-13)

संलीनता : अंतरत्तप का प्रवेश-द्वार—(प्रवचन—तेरहवां)

दिनांक 30 अगस्त, 1971; प्रथम पर्युषण व्याख्यानमाला, पाटकर हाल, बम्बई;

धम्‍म—सूत्र

धम्‍मो मंगलमुक्‍किट्ठंअहिंसा संजमो तवो।

देवा वि तं नमंसन्‍तिजस्‍स धम्‍मे सया मणो।।

धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल है। (कौन सा धर्म?) अहिंसा, संयम और तपरूप धर्म। जिस मनुष्य का मन उक्त धर्म में सदा संलग्न रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-13)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-12)

रस—परित्‍याग ओर काया—क्लेश—(प्रवचन—बारहवां)

   दिनांक 29 अगस्‍त, 1971;  प्रथम पर्युषण व्‍याख्‍यानमाला, पाटकर हाल बम्‍बई।

धम्म-सूत्र:

धम्मो मंगलमुक्किट्ठंअहिंसा संजमो तवो।

देवा वि तं नमंसन्तिजस्स धम्मे सया मणो ।।

धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल है। (कौन सा धर्म?) अहिंसा, संयम और तपरूप धर्म। जिस मनुष्य का मन उक्त धर्म में सदा संलग्न रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-12)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-11)

ऊणोदरी एवं वृत्ति- संक्षेप—(प्रवचन—ग्यारहवां)

दिनांक 28 अगस्त, 1971; प्रथम पर्युषण व्याख्यानमाला, पाटकर हाल, बम्बई

धम्म-सूत्र:

धम्मो मंगलमुक्किट्ठं,  अहिंसा संजमो तवो।

देवा वि तं नमंसन्तिजस्स धम्मे सया मणो ।।

धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल है। (कौन सा धर्म?) अहिंसा, संयम और तपरूप धर्म। जिस मनुष्य का मन उक्त धर्म में सदा संलग्न रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-11)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-10)

अनशन : मध्य के क्षण का अनुभव—(प्रवचन—दसवां)

दिनांक 27 अगस्त, 1971; प्रथम पर्युषण व्याख्यानमाला,  पाटकर हाल, बम्बई

धम्म-सूत्र:

धम्मो मंगलमुक्किट्ठंअहिंसा संजमो तवो।

देवा वि तं नमंसन्तिजस्स धम्मे सया मणो ।।

धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल है। (कौन सा धर्म?) अहिंसा, संयम और तपरूप धर्म। जिस मनुष्य का मन उक्त धर्म में सदा संलग्न रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-10)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-09)

तप : ऊर्जा—शरीर का अनुभव—(प्रवचन—नौवां)

दिनांक 26 अगस्‍त, 1971; प्रथम पर्युषण व्‍याखानमाला, पाटकर हाल, बम्‍बई।

धम्म-सूत्र:

धम्मो मंगलमुक्किट्ठंअहिंसा संजमो तवो।

देवा वि तं नमंसन्तिजस्स धम्मे सया मणो ।।

धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल है। (कौन-सा धर्म?) अहिंसा, संयम और तपरूप धर्म। जिस मनुष्य का मन उक्त धर्म में सदा संलग्न रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-09)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-08)

तप : ऊर्जा का दिशा-परिवर्तन—(प्रवचन—आठवां)

दिनांक 25 अगस्त, 1971; प्रथम पर्युषण व्याख्यानमाला, पाटकर हाल, बम्बई

धम्म-सूत्र:

धम्मो मंगलमुक्किट्ठंअहिंसा संजमो तवो।

देवा वि तं नमंसन्तिजस्स धम्मे सया मणो ।।

धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल है। (कौन-सा धर्म?) अहिंसा, संयम और तपरूप धर्म। जिस मनुष्य का मन उक्त धर्म में सदा संलग्न रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-08)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-07)

संयम की विधायक दृष्टि—प्रवचन—सातवां

 दिनांक 24 अगस्त, 1971; प्रथम पर्युषण व्याख्यानमा ला, पाटकर हाल, बम्बई

धम्म-सूत्र:

धम्मो मंगलमुक्किट्ठं,  अहिंसा संजमो तवो।

देवा वि तं नमंसन्तिजस्स धम्मे सया मणो ।।

धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल है। (कौन-सा धर्म?) अहिंसा, संयम और तपरूप धर्म। जिस मनुष्य का मन उक्त धर्म में सदा संलग्न रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-07)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-06)

संयम : मध्य में रुकना—(प्रवचन—छठवां)

दिनांक 23 अगस्त, 1971;  प्रथम पर्युषण व्याख्यानमाला,  पाटकर हाल, बम्बई

धम्म-सूत्र : 2 (संयम)

धम्मो मंगलमुक्किट्ठं,  अहिंसा संजमो तवो।

देवा वि तं नमंसन्ति,  जस्स धम्मे सया मणो ।।

धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल है। (कौन-सा धर्म?) अहिंसा, संयम और तपरूप धर्म। जिस मनुष्य का मन उक्त धर्म में सदा संलग्न रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-06)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-05)

अहिंसा : जीवेषणा की मृत्यु—(प्रवचन—पांचवां)

दिनांक 22 अगस्त,1971;  प्रथम पर्युषण व्याख्यानमाला ,  पाटकर हाल, बम्बई

धम्म-सूत्र : १ (अहिंसा)

धम्मो मंगलमुक्किट्ठं,

अहिंसा संजमो तवो।

देवा वि तं नमंसन्ति,

जस्स धम्मे सया मणो ।।

धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल है। (कौन-सा धर्म?) अहिंसा, संयम और तपरूप धर्म। जिस मनुष्य का मन उक्त धर्म में सदा संलग्न रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-05)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-04)

धर्म : स्‍वभाव में होना—(प्रवचन—चौथा)

दिनांक 21 अगस्‍त; 1971  प्रथम पर्युषण व्‍याख्‍यानमाला, पाटकर हाल बम्‍बई।

धम्म-सूत्र:

धम्मो मंगलमुक्किट्ठं,

            अहिंसा संजमो तवो।

देवा वि तं नमंसन्ति,

जस्स धम्मे सया मणो ।।

धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल है। (कौन-सा धर्म?) अहिंसा, संयम और तपरूप धर्म। जिस मनुष्य का मन उक्त धर्म में सदा संलग्न रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं।

र्म सर्वश्रेष्ठ मंगल है — तो अमंगल क्या है, दुख क्या है, मनुष्य की पीड़ा और संताप क्या है? उसे न समझें तो “धर्म मंगल है, शुभ है, आनंद है’– इसे भी समझना आसान न होगा। महावीर कहते हैं– धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल है। जीवन में जो भी आनंद की संभावना है, वह धर्म के द्वार से ही प्रवेश करती है। जीवन में जो भी स्वतंत्रता उपलब्ध होती है वह धर्म के आकाश में ही उपलब्ध होती है।जीवन में जो भी सौंदर्य के फूल खिलते हैं वे धर्म की जड़ों से ही पोषित होते हैं। और जीवन में जो भी दुख है वह किसी न किसी रूप में धर्म से च्युत हो जाने में, या अधर्म में संलग्न हो जाने में है। महावीर की दृष्टि में धर्म का अर्थ है– जो मैं हूं, उस होने में ही जीना है। जो मैं हूं, उससे जरा भी, इंच-भर भी च्युत न होना है। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-04)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-03)

शराणगति: धर्म का मूल आधार—(प्रवचन—तीसरा)

दिनांक 20 अगस्‍त, 1971;  प्रथम पर्युषण व्‍याख्‍यानमाल, बम्‍बई।

शरणागति—स्प

अरिहते सरण पवज्जामि।

सिद्धे सरण पवज्जामि।

सादू सरण पवज्जामि।

केवलिपन्नत्त धम्म सरण पवज्जामि।

 अरिहंत की शरण स्वीकार करता हूं। सिद्धों की शरण स्वीकार करता हूं। साधुओं की शरण स्वीकार करता हूं। केवली प्ररूपित अर्थात आत्मज्ञ—कथित धर्म की शरण स्वीकार करता हूं। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-03)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-02)

मंगल व लोकात्‍तम की भावना—(प्रवचन—दूसरा)

दिनांक 19 अगस्‍त, 1971; प्रथम पर्युषण व्‍याख्‍यानमाला,  पाटकर हाल, बम्‍बई।

मंगल—भाव—न्त

अरिहता मंगल।

सिद्धा मंगल।

साहू मंगल।

केवलिपन्नत्तो धम्मो मंगल।।

अरिहता लोगुत्तमा।

सिद्धा लोद्यमा।

साहू लोद्यमा।

केवलिपन्नत्तो धम्मो लोद्यमो।।

अरिहंत मंगल हैं। सिद्ध मंगल हैं। साधु मंगल हैं। केवलीप्ररूपित अर्थात आत्मज्ञकथित धर्म मंगल है। अरिहंत लोकोत्तम हैं। सिद्ध लोकोत्तम हैं। साधु लोकोत्तम हैं। केवलीप्ररूपित अर्थात आत्मशकथित धर्म लोकोत्तम है। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-02)”

महावीर वाणी-(प्रवचन-01)

मंत्र: दिव्‍य—लोक की कुंजी—(प्रवचन—पहला)

दिनांक 18 अगस्‍त, 1971;  प्रथम पर्युषण व्‍याखानमाला,  पाटकर हाल बम्‍बई।

पंच—नमोकार—सूत्र

नमो अरिहंताणं।

नमो सिद्धाण।

नमो आयरियाण।

नमो उवज्झायाण।

नमो लोए सब्बसाहूणं।

एसो पंच नमुक्कारो, सब्बपावप्पणासणो।

मंगलाण च सब्बेसिं, पडमं हवइ मंगलं।।

अरिहंतों (अर्हतों) को नमस्कार। सिद्धों को नमस्कार। आचार्योंको नमस्कार। उपाध्यायों को नमस्कार। लोक संसार में सर्व साधुओं को नमस्कार। ये पांच नमस्कार सर्व पापों के नाशक हैं और सर्व मंगलों में प्रथम मंगल रूप हैं। Continue reading “महावीर वाणी-(प्रवचन-01)”

महावीर वाणी-(भाग-01)-ओशो

 महावीर—वाणी (भाग—1)  ओशो

प्रथम एवं द्वितीय पर्युषण व्‍याख्‍यामाला के अंतर्गत दिनांक 18 अगस्‍त से 4 सितम्‍बर 1971 एवं 4 सितम्‍बर से 12 सितम्बर 1972 तक भगवान श्री द्वारा दिए गए 27 प्रवचनों का संकलन।

जैसे पर्वतों में हिमालय है या शिखरों में गौरीशंकर, वैसे ही व्‍यक्‍तियों में महावीर है। बड़ी है चढ़ाई। जमीन पर खड़े होकर भी गौरीशंकर के हिमाच्‍छादित शिखर को देखा जा सकता है। लेकिन जिन्‍हें चढ़ाई करनी हो और शिखर पर पहुंच कर ही शिखर को देखना हो, उन्‍हें बड़ी तैयारी की जरूरत है। दूर से भी देख सकते है महावीर को, लेकिन दूर से जो परिचय होता है वह वास्‍तिक परिचय नहीं है। महावीर में तो छलांग लगाकर ही वास्‍तविक परिचय पाया जा सकता है। Continue reading “महावीर वाणी-(भाग-01)-ओशो”

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