प्रवचन-छट्ठवां
परम जीवन का सूत्र
जिस दिन हमें अपने स्वयं को पूरी सम्पदा का, अपने स्वयं के पूरे सुख की पूरी शक्ति का पता चलता है। उस दिन यह खतरा है कि हम भूल जायें कि यह स्व बड़ी छोटी भूमि हें, यह बड़ी अनन्त भूमि का एक छोटा-सा टुकड़ा है। यह ऐसे ही है, जैसे किसी ने मिट्टी के घड़े में पानी के भीतर पानी है सागर की ही। लेकिन सागर की, उस मिट्टी के घड़े बाहर जो सागर है, उससे इसकी तुलना!
–… इसी अध्याय से
योग का आठवां सूत्र। सातवें सूत्र में मैंने आपसे कहा, चेतन जीवन के दो रूप हैं स्व-चेतन कान्शस और स्व-अचेतन, सेल्फ अनकान्शस। आठवां सूत्र है स्व-चेतना से योग का प्रारम्भ होता है और स्व के विसर्जन से अन्त। स्व-चेतन होना मार्ग है, स्वयं से मुक्त हो जाना मंजिल है। स्वयं के प्रति होश से भरना साधना है और अन्ततः होश ही रह जाये, स्वयं खो जाये, यह सिद्धि है। Continue reading “चेतना का सूर्य-(प्रवचन-06)”