एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-20)

नानक नदरी नदरि निहाल—(प्रवचन—बीसवां)

पउड़ी: 38

जतु पहारा धीरजु सुनिआरु। अहरणि मति वेदु हथीआरु।।

भउ खला अगनि तपताउ। भांडा भाउ अमृत तितु ढालि।।

घड़ीए सबदु सची टकसालु। जिन कउ नदरि करमु तिन कार।।

‘नानक’ नदरी नदरि निहाल।। Continue reading “एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-20)”

एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-19)

सच खंडि वसै निरंकारु—(प्रवचन—उन्‍नीसवां)

पउड़ी: 37

करम खंड की वाणी जोरु। तिथै होरु न कोई होरु।।

तिथै जोध महाबल सूर। तिन महि राम रहिआ भरपूर।।

तिथै सीतो सीता महिमा माहि। ताके रूप न कथने जाहि।।

न ओहि मरहि न ठागे जाहि। जिनकै राम बसै मन माहि।।

तिथै भगत वसहि के लोअ। करहि अनंदु सचा मनि सोइ।।

सच खंडि वसै निरंकारु। करि करि वेखै नदरि निहाल।।

तिथै खंड मंडल बरमंड। जे को कथै त अंत न अंत।।

तिथै लोअ लोअ आकार। जिव जिव हुकमु तिवै तिव कार।।

वेखै विगसे करि वीचारु। ‘नानक’ कथना करड़ा सारु।। Continue reading “एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-19)”

एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-18)

नानक अंतु न अंतु—(प्रवचन—अट्ठाहरवां) 

पउड़ी: 35

धरम खंड का एहो धरमु।

गिआन खंड का आखहु करमु।।

केते पवन पाणि वैसंतर केते कान महेस।

केते बरमे घाड़ति घड़िअहि रूप रंग के वेस।।

केतीआ करम भूमी मेर केते केते धू उपदेस।

केते इंद चंद सूर केते केते मंडल देस।।

केते सिध बुध नाथ केते केते देवी वेस।

केते देव दानव मुनि केते केते रतन समुंद।।

केतीआ खाणी केतीआ वाणी केते पात नरिंद।

केतीआ सुरती सेवक केते ‘नानक’ अंतु न अंतु।। Continue reading “एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-18)”

एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-17)

करमी करमी होइ वीचारु—(प्रवचन—सतरहवां)

पउड़ी: 34

राती रुति थिति वार। पवन पानी अगनी पाताल।।

तिसु विचि धरती थापि रखी धरमसाल।

तिसु विचि जीअ जुगुति के रंग। तिनके नाम अनेक अनंत।।

करमी करमी होइ वीचारु। साचा आप साचा दरबारु।।

तिथै सोहनि पंच परवाणु। नदरी करमी पवै नीसाणु।।

कच पकाई ओथै पाइ। ‘नानक’ गाइआ जापै जाइ।। Continue reading “एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-17)”

एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-16)

नानक उतमु नीचु न कोइ—(प्रवचन—सोलहवां)

पउड़ी: 32

इकदू जीभौ लख होहि लख होवहि लख बीस।

लखु लखु गेड़ा अखिअहि एक नामु जगदीस।।

एतु राहि पति पवड़ीआ चड़ीए होइ इकीस।

सुणि गला आकास की कीटा आई रीस।।

‘नानक’ नदरी पाईए कूड़ी कूड़ै ठीस।। Continue reading “एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-16)”

एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-15)

जुग जुग एको वेसु—(प्रवचन—पंद्रहवां)

पउड़ी: 30

एका माई जुगति विआई तिनि चेले परवाणु।

इकु संसारी इकु भंडारी इकु लाए दीवाणु।।

जिव तिसु भावै तिवै चलावै जिव होवै फुरमाणु।

ओहु वेखै ओना नदरि न आवै बहुता एहु विडाणु।।

आदेसु तिसै आदेसु।।

आदि अनीलु अनादि अनाहतु जुग जुग एको वेसु।। Continue reading “एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-15)”

एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-14)

आदेसु तिसै आदेसु—(प्रवचन—चौदहवां)

पउड़ी: 28

मुंदा संतोखु सरमु पतु झोली धिआन की करहि बिभूती।

किंथा कालु कुआरी काइआ जुगति डंडा परतीति।।

आई पंथी सगल जमाती मनि जीतै जगु जीत।।

आदेसु तिसै आदेसु।।

आदि अनीलु अनादि अनाहति। जुगु जुगु एको वेसु।। Continue reading “एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-14)”

एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-13)

सोई सोई सदा सचु साहिबु—(प्रवचन—तेरहवां)

पउड़ी: 27

सो दरु केहा सो घरु केहा जितु बहि सरब समाले।

बाजे नाद अनेक असंखा केते वावणहारे।।

केते राग परी सिउ कहीअनि केते गावणहारे।

गावहि तुहनो पउणु पाणी वैसंतरु गावे राजा धरम दुआरे।।

गावहि चितगुपतु लिखि जाणहि लिखि लिखि धरमु वीचारे।

गावहि ईसरु बरमा देवी सोहनि सदा सवारे।। Continue reading “एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-13)”

एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-12)

आखि आखि रहे लिवलाइ—(प्रवचन—बारहवां)

पउड़ी: 26

अमुल गुण अमुल वापार। अमुल वापारीए अमुल भंडार।।

अमुल आवहि अमुल लै जाहि। अमुल भाव अमुला समाहि।।

अमुलु धरमु अमुलु दीवाणु। अमुलु तुलु अमुलु परवाणु।।

अमुलु बखसीस अमुलु नीसाणु। अमुलु करमु अमुलु फरमाणु।।

अमुलो अमुलु आखिया न जाइ। आखि आखि रहे लिवलाइ।।

आखहि वेद पाठ पुराण। आखहि पड़े करहि वखियाण।। Continue reading “एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-12)”

एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-11)

ऊचे उपरि ऊचा नाउ—(प्रवचन—ग्‍यारहवां)

पउड़ी: 24

अंतु न सिफती कहणि न अंतु। अंतु न करणै देणि न अंतु।।

अंतु न वेखणि सुणणि न अंतु। अंतु न जापै किआ मनि मंतु।।

अंतु न जापै कीता आकारु। अंत न जापै पारावारु।।

अंत कारणि केते बिललाहि। ताके अंत न पाए जाहि।।

एहु अंत न जाणै कोइ। बहुता कहिऐ बहुता होइ।।

वडा साहिबु ऊचा थाउ। ऊचे उपरि ऊचा नाउ।।

एवडु ऊचा होवे कोइ। तिसु ऊचे कउ जाणै सोइ।।

जेवड आपि जाणै आपि आप। ‘नानक’ नदरी करमी दाति।। Continue reading “एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-11)”

एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-10)

 आपे जाणै आपु—(प्रवचन—दसवां)

पउड़ी: 22

पाताला पाताल लख आगासा आगास।

ओड़क ओड़क भालि थके वेद कहनि इक बात।।

सहस अठारह कहनि कतेबा असुलू इकु धातु।

लेखा होइ त लिखीऐ लेखै होइ विणासु।।

नानक बडा आखीए आपे जाणै आपु।। Continue reading “एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-10)”

एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-09)

आपे बीजि आपे ही खाहु—(प्रवचन—नौवां)

पउड़ी: 20

भरीए हथु पैरु तनु देह। पाणी धोतै उतरसु खेह।।

मूत पलोती कपड़ होइ। दे साबूणु लईऐ ओहु धोइ।।

भरीऐ मति पापा के संगि। ओहु धोपै नावै कै रंगि।।

पुंनी पापी आखणु नाहि। करि करि करणा लिखि लै जाहु।।

आपे बीजि आपे ही खाहु। ‘नानक’ हुकमी आवहु जाहु।। Continue reading “एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-09)”

एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-08)

जो तुधु भावै साई भलीकार—(प्रवचन—आठवां)

पउड़ी: 17 

असंख जप असंख भाउ। असंख पूजा असंख तप ताउ।।

असंख गरंथ मुखि वेद पाठ। असंख जोग मनि रहहि उदास।।

असंख भगत गुण गिआन वीचार। असंख सती असंख दातार।।

असंख सूर मुह भख सार। असंख मोनि लिव लाइ तार।।

कुदरति कवण कहा वीचारु। वारिआ न जावा एक बार।।

जो तुधु भावै साई भलीकार। तू सदा सलामति निरंकार।। Continue reading “एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-08)”

एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-07)

पंचा का गुरु एकु धिआनु—(प्रवचन—सातवां)

पउड़ी: 16

पंच परमाण पंच परधान। पंचे पावहि दरगहि मानु।।

पंचे सोहहि दरि राजानु। पंचा का गुरु एकु धिआनु।।

जे को कहे करै वीचारू। करतै कै करणे नाही सुमारू।।

धौलु धरमु दइधा का पूतु। संतोष थापि रखिया जिनि सूति।।

जे को बूभै होवै सचिआरू। धवलै उपरि केता भारू।।

धरति होरू परै होरू होरू। तिसते भारू तले कवणु जोरू।। Continue reading “एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-07)”

एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-06)

ऐसा नामु निरंजनु होइ—(प्रवचन—छठवां)

पउड़ी: 12

मंनै की गति कही न जाइ। जे को कहै पिछै पछुताइ।।

कागद कलम न लिखणहारू। मंनै का बहि करनि विचारू।।

ऐसा नामु निरंजनु होइ। जे को मंनि जाणै मनि कोइ।।

पउड़ी: 13

मंनै सुरति होवै मनि बुधि। मंनै सगल भवन की सुधि।।

मंनै मुहि चोटा न खाइ। मंनै जम के साथ न जाइ।।

ऐसा नामु निरंजनु होइ। जे को मंनि जाणै मनि कोइ।। Continue reading “एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-06)”

एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-05)

नानक भगता सदा विगासु—(प्रवचन—पांचवां)

पउड़ी: 8

सुणिऐ सिध पीर सुरि नाथ। सुणिऐ धरति धवल आकास।।

सुणिऐ दीप लोअ पाताल। सुणिऐ पोहि न सकै कालु।।

‘नानक’ भगता सदा विगासु। सुणिऐ दुख पाप का नासु।।

पउड़ी: 9

सुणिऐ ईसर बरमा इंदु। सुणिऐ मुख सालाहणु मंदु।।

सुणिऐ जोग जुगति तनि भेद। सुणिऐ सासत सिमृति वेद।।

‘नानक’ भगता सदा विगासु। सुणिऐ दुख पाप का नासु।। Continue reading “एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-05)”

एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-04)

जे इक गुरु की सिख सुणी—(प्रवचन—चौथा)

पउडी-6

तीरथि नावा जे तिसु भावा, विणु भाणे कि नाइ करी।

जेती सिरठि उपाई वेखा, विणु करमा कि मिलै लई।

मति बिच रतन जवाहर माणिक, जे इक गुरु की सिख सुणी।

गुरा इक देहि बुझाई–

सभना जीआ का इकु दाता, सो मैं बिसरि न जाई।।

पउड़ी: 7

जे जुग चारे आरजा। होर दसूणी होई।।

नवा खंडा विचि जाणीऐ। नालि चलै सभु कोई।।

चंगा नाउ रखाइकै। जसु कीरति जगि लेइ।।

जे तिसु नदर न आवई। त बात न पुछै केइ।।

कीटा अंदरि कीटु करि। दोसी दोसु धरे।।

‘नानक’ निरगुणि गुणु करे। गुणुवंतिआ गुणु दे।।

तेहा कोई न सुझई। जि तिसु गुणु कोई करे।।

क रात नानक अचानक घर छोड़कर चले गए। किसी को पता नहीं, कहां हैं। खोजा गया साधुओं की संगत में, मंदिरों में–जहां संभावना थी–पर कहीं भी वे मिले नहीं। और तब किसी ने कहा, मरघट की तरफ जाते देखा है। भरोसा किसी को न आया। मरघट अपनी मर्जी से कोई जाता ही कैसे है? मरघट ले जाने के लिए तो चार आदमियों की जरूरत पड़ती है। बामुश्किल कोई जाता है। मरा हुआ आदमी भी जाना नहीं चाहता, तो जिंदा आदमी के तो जाने का कोई सवाल नहीं। लेकिन जब नानक को कहीं नहीं पाया, तो लोग मरघट पहुंचे। Continue reading “एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-04)”

एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-03)

साचा साहिबु साचु नाइ—(प्रवचन—तीसरा)

पउड़ी: 4

साचा साहिबु साचु नाइ। भाखिया भाउ अपारु।।

आखहि मंगहि देहि देहि। दाति करे दातारू।।

फेरि कि अगै रखीऐ। जितु दिसै दरबारु।।

मुहौ कि बोलणु बोलीऐ। जितु सुणि धरे पिआरु।।

अमृत वेला सचु नाउ। वडिआई वीचारु।।

करमी आवे कपड़ा। नदरी माखु दुआरु।।

‘नानक’ एवै जाणिए। सभु आपे सचिआरु।। Continue reading “एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-03)”

एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-02)

हुकमी हुकमु चलाए राह—(प्रवचन—दूसरा)

पउड़ी: 2

हुकमी होवन आकार हुकमी न कहिया जाए।

हुकमी होवन जीअ हुकमी मिलै बड़िआई।

हुकमी उत्तम नीचु हुकमी लिखि दुख सुख पाईअहि।

इकना हुकमी बख्शीस इकि हुकमी सदा भवाईअहि।

हुकमी अंदर सभु को बाहर हुकुम न कोय।

‘नानक’ हुकमी जे बुझे त हऊ मैं कहे न कोय। Continue reading “एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-02)”

एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-01)

आदि सचु जुगादि सचु—(प्रवचन—पहला)

एक ओंकार सतनाम—(नानक)  –ओशो

नानक ने परमात्मा को गा-गा कर पाया। गीतों से पटा है मार्ग नानक का। इसलिए नानक की खोज बड़ी भिन्न है। पहली बात समझ लेनी जरूरी है कि नानक ने योग नहीं किया, तप नहीं किया, ध्यान नहीं किया। नानक ने सिर्फ गाया। और गा कर ही पा लिया। लेकिन गाया उन्होंने इतने पूरे प्राण से कि गीत ही ध्यान हो गया, गीत ही योग बन गया, गीत ही तप हो गया।

अहंकार तुम्हारी आंख में पड़ी हुई कंकड़ी है। उसके हटते ही परमात्मा प्रकट हो जाता है। परमात्मा प्रकट ही था, तुम मौजूद न थे। नानक मिटे, परमात्मा प्रकट हो गया। जैसे ही परमात्मा प्रकट हो जाता है, तुम भी परमात्मा हो गए। क्योंकि उसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। Continue reading “एक ओंकार सतनाम–(प्रवचन-01)”

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