अपने माहिं टटोल-(प्रवचन-10)

अपने माहिं टटोल-(साधना-शिविर)

दसवां प्रवचन-सत्य है अनुसंधान– मुक्त और स्वतंत्र

इधर तीन दिनों में सत्य की खोज में और उस रास्ते पर किन बाधाओं को मनुष्य दूर करे, किन सीढ़ियों को चढ़े और किन बंद द्वारों को खोले, उस संबंध में बहुत सी बातें हुई हैं। बहुत से प्रश्न भी उस संबंध में पूछे गए हैं। आज की रात उन सारे महत्वपूर्ण प्रश्नों पर मैं चर्चा करूंगा जो शेष रह गए हैं।

सबसे पहले, अनेक प्रश्न पूछे गए हैं कि हजारों वर्षों से हजारों लोग जिन बातों को मान रहे हैं, मैं उन बातों को गलत क्यों कहता हूं? और जिन बातों को इतने लोग सही मानते हों, क्या वे बातें गलत हो सकती हैं? क्या इतनी पुरानी परंपराएं, रूढ़ियां, जिन्हें हम सदा से मानते रहे हैं, भूल भरी हो सकती हैं? Continue reading “अपने माहिं टटोल-(प्रवचन-10)”

अपने माहिं टटोल-(प्रवचन-09)

अपने माहिं टटोल-(साधना-शिविर)

नौवां प्रवचन-नई संस्कृति की खोज

मेरे प्रिय आत्मन्!

पिछली चर्चाओं के संबंध में बहुत से प्रश्न मेरे पास आए हैं। सभी प्रश्न बहुत अर्थपूर्ण, बहुत महत्व के हैं। कुछ थोड़े से प्रश्नों पर अभी और कुछ पर रात में विचार करेंगे। प्रश्न चूंकि बहुत हैं, मैं बहुत थोड़े संक्षेप में एक-एक का उत्तर देने की कोशिश करूंगा।

सबसे पहले, एक मित्र ने पूछा है, और वैसी बात करीब-करीब पूरे मुल्क में जगह-जगह पूछी जाती है। आप सबके मन में भी वह प्रश्न उठता होगा। उन्होंने पूछा हैः आजकल की दुनिया खराब हो गई है। अभी यह जो गीत गाया, उसमें भी यह बात है कि आजकल की दुनिया खराब हो गई है। इस खराब दुनिया को ठीक रास्ते पर कैसे लाया जाए? Continue reading “अपने माहिं टटोल-(प्रवचन-09)”

अपने माहिं टटोल-(प्रवचन-08)

अपने माहिं टटोल-(साधना-शिविर)

आठवां प्रवचन-अहंकार का भ्रम

मेरे प्रिय आत्मन्!

बीते दो दिनों में, मनुष्य के मन पर कौन सी जंजीरें हैं, उन जंजीरों में से दो जंजीरों की हमने बात की है। और आज तीसरी जंजीर की बात करेंगे।

पहली जंजीर इस बात की है, यह बोध, यह भ्रम, यह ख्याल कि मैं जानता हूं। ज्ञान का भ्रम मनुष्य के मन की कारागृह की पहली ईंट है। दूसरा, मैं कर्ता हूं, कर्म का मालिक हूं, अपना मालिक हूं, यह भाव भी एकदम भ्रांत और झूठा है। ये दोनों बातें हमने विचार कीं। आज तीसरी और सर्वाधिक कठिन बात पर हम विचार करेंगे। Continue reading “अपने माहिं टटोल-(प्रवचन-08)”

अपने माहिं टटोल-(प्रवचन-07)

अपने माहिं टटोल-(साधना-शिविर)

सातवां प्रवचन-तुम ही हो परमात्मा

मेरे प्रिय आत्मन्!

एक छोटी सी कहानी से आज के प्रश्नोत्तरों की यह चर्चा शुरू करूंगा।

एक बहुत अंधेरी रात थी और एक रेगिस्तानी पहाड़ी पर एक छोटी सी सराय में एक बड़ा काफिला आकर रुका। उस काफिले में कोई सौ ऊंट थे। व्यापारी यात्रा कर रहे थे और थके-मांदे आधी रात को उस छोटी सी पहाड़ी सराय में पहुंचे थे विश्राम को। उन्होंने जल्दी-जल्दी खूंटियां गाड़ीं, ताकि वे अपने ऊंटों को बांध सकें, और फिर विश्राम कर सकें। लेकिन आखिरी ऊंट को बांधते वक्त उन्हें पता चला कि उनकी खूंटियां और रस्सियां कम पड़ गई हैं। निन्यानबे ऊंट तो बंध गए थे, एक ऊंट को बांधने के लिए रस्सी और खूंटी खो गई थी। उस ऊंट को उस अंधेरी रात में बिना बंधा छोड़ना खतरनाक था, भटक जाने का डर था। Continue reading “अपने माहिं टटोल-(प्रवचन-07)”

अपने माहिं टटोल-(प्रवचन-06)

अपने माहिं टटोल-(साधना-शिविर)

छटवां प्रवचन-एक ही मंगल है–जागरण

मेरे प्रिय आत्मन्!

कल और आज, मनुष्य के चित्त पर जो बंधन हैं, उनमें से दो बंधनों के तोड़ने के संबंध में हमने विचार किया।

एक बंधन तो ज्ञान का बंधन है। हमेशा से यह कहा गया है कि मनुष्य अगर अपने अज्ञान को छोड़ सके, तो वह सत्य को पा सकेगा। लेकिन मैंने आपसे यह कहा कि इसके पहले कि मनुष्य अपने अज्ञान को छोड़े, जिस ज्ञान को उसने दूसरों से सीख लिया है, उस ज्ञान को छोड़ना और भी जरूरी है। उधार ज्ञान अज्ञान से भी ज्यादा घातक है। जो ज्ञान स्वयं का नहीं है, वह मुक्त नहीं करता, बल्कि बांध लेता है। इस संबंध में कल हमने चर्चा की। Continue reading “अपने माहिं टटोल-(प्रवचन-06)”

अपने माहिं टटोल-(प्रवचन-05)

अपने माहिं टटोल–(साधना-शिविर)

पांचवां प्रवचन-यांत्रिक जीवन से मुक्ति

मेरे प्रिय आत्मन्!

मनुष्य के सत्य की खोज में जो पहली बाधा, जो पहला अटकाव, जो पहला बंधन है, उसे तोड़ने की बात हमने कल की। वह ज्ञान, जो हमें दूसरों से मिलता है, हमारे अज्ञान से भी ज्यादा खतरनाक है। वह इसलिए ज्यादा खतरनाक है कि उसके द्वारा हमारा अज्ञान मिटता तो नहीं, छिप जरूर जाता है, ढंक जाता है। और वह बीमारी जो ढंकी हो, उस बीमारी से खतरनाक होती है, जो खुली हो, उघड़ी हो, स्पष्ट हो। दूसरों के ज्ञान से, दूसरों के शब्दों और विचारों से, शास्त्रों और सिद्धांतों से हम कुछ जानते नहीं, लेकिन जानने लगे हैं, इस भ्रम में जरूर पड़ जाते हैं। शब्द सीख लिए जाते हैं और यह भ्रम पैदा हो जाता है कि सत्य सीख लिया गया है। ऐसे शब्दों, ऐसे ज्ञान, ऐसे उधार बासे विचारों पर मस्तिष्क मुक्ति तो नहीं खोज पाता, और नये-नये भ्रमजाल, और नई-नई कल्पनाओं, और नये-नये बंधनों में ग्रसित हो जाता है। Continue reading “अपने माहिं टटोल-(प्रवचन-05)”

अपने माहिं टटोल-(प्रवचन-04)

अपने माहिं टटोल-(साधना-शिविर)

चौथा प्रवचन-जीवन का लक्ष्य

मेरे प्रिय आत्मन्!

बहुत से प्रश्न मेरे सामने हैं। उनमें से थोड़े से प्रश्नों पर अभी बात करूंगा।

सबसे पहले, एक मित्र ने पूछा हैः जीवन का लक्ष्य क्या है?

यह प्रश्न तो बहुत सीधा-सादा मालूम पड़ता है, लेकिन शायद इससे जटिल और कोई प्रश्न नहीं है। और प्रश्न की जटिलता यह है कि इसका जो भी उत्तर होगा, वह गलत होगा। इस प्रश्न का जो भी उत्तर होगा, वह गलत होगा। ऐसा नहीं कि एक उत्तर गलत होगा और दूसरा सही हो जाएगा। इस प्रश्न के सभी उत्तर गलत होंगे। क्योंकि जीवन से बड़ी और कोई चीज नहीं है जो लक्ष्य हो सके। जीवन खुद अपना लक्ष्य है। जीवन से बड़ी और कोई बात नहीं है जिसके लिए जीवन साधन हो सके और जो साध्य हो सके। और सारी चीजों के तो साध्य और साधन के संबंध हो सकते हैं, जीवन का नहीं। जीवन से बड़ा और कुछ भी नहीं है। जीवन ही अपनी पूर्णता में परमात्मा है, जीवन ही। वह जो जीवंत ऊर्जा है हमारे भीतर, वह जो जीवन है पौधों में, पक्षियों में, आकाश में, तारों में, वह जो हम सबका जीवन है, वह सबका समग्रीभूत जीवन ही तो परमात्मा है। Continue reading “अपने माहिं टटोल-(प्रवचन-04)”

अपने माहिं टटोल-(प्रवचन-03)

अपने माहिं टटोल-(साधना-शिविर)

तीसरा प्रवचन-चित्त मौन हो

शब्दों से, विचारों और शास्त्रों से मुक्त होना, सत्य की या परमात्मा की खोज में जरूरी है, यह मैंने आपसे कहा। उस संबंध में दो-तीन प्रश्न पूछे गए हैं।

एक तो पूछा है कि यदि शब्दों से सत्य नहीं जाना जा सकता तो फिर आप शब्दों का उपयोग क्यों कर रहे हैं?

साधारण सोचने पर जरूर ऐसा प्रश्न उठेगा। लेकिन थोड़ा जल्दी सोचने पर ऐसा उठेगा और थोड़ा विचार करेंगे तो नहीं। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि मैं जो कह रहा हूं उससे आपको सत्य का ज्ञान हो जाएगा। मेरे शब्द आपके लिए सत्य का ज्ञान नहीं बन सकते। किसी के भी शब्द नहीं बन सकते हैं। तो फिर शब्द की क्या उपादेयता है? Continue reading “अपने माहिं टटोल-(प्रवचन-03)”

अपने माहिं टटोल-(प्रवचन-02)

अपने माहिं टटोल-(साधना-शिविर)

दूसरा प्रवचन-बोध की पहली किरण

एक सम्राट बूढ़ा हो गया था। उसके तीन लड़के थे। और तीनों के बीच में उसे निर्णय करना था कि किसे राज्य को सौंप दे। बड़ी कठिनाई थी। वे तीनों लड़के सभी भांति एक-दूसरे से ज्यादा योग्य थे। तय करना कठिन था– किसकी क्षमता, किसकी योग्यता ज्यादा है। तो उस सम्राट ने अपने बूढ़े नौकर को पूछा, जो कि गांव का एक किसान था। उससे पूछाः मैं कैसे इस बात की पहचान करूं, कैसे इस बात को जानूं कि कौन सा युवक राज्य को सम्हाल सकेगा और विकसित कर सकेगा?

उस किसान ने कहाः सरल और छोटी सी तरकीब है। और उसने कोई तरकीब सम्राट को बतलाई। Continue reading “अपने माहिं टटोल-(प्रवचन-02)”

अपने माहिं टटोल-(प्रवचन-01)

पहला प्रवचन–चित्त का दर्पण

मेरे प्रिय आत्मन्!

एक छोटी सी कहानी से आने वाले तीन दिनों की चर्चाओं का मैं प्रारंभ करूंगा।

एक युवा फकीर सारी पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकला। उसने सारी जमीन घूमी। पहाड़ों और रेगिस्तानों में, गांव और राजधानियों में, दूर-दूर के देशों में वह भटका और घूमा। और फिर सारे जगत का भ्रमण करके अपने देश वापस लौटा। जब यात्रा पर निकला था, तो जवान था; जब वापस आया, तो बूढ़ा हो चुका था।

अपने देश की राजधानी में आने पर उसका बड़ा स्वागत हुआ। उस देश के राजा ने उसके चरण छुए और उससे कहा कि धन्य है हमारा भाग्य कि तुम हमारे बीच पैदा हुए। और तुमने हमारी सुगंध को सारी दुनिया में पहुंचाया। तुम्हारी कीर्ति के साथ हमारी कीर्ति गई। तुम्हारे शब्दों के साथ, हमने जो हजारों वर्षों में संगृहीत किया था, वह लोगों तक पहुंचा। और मैं भी एक प्रतीक्षा किए तुम्हारी राह देख रहा हूं। Continue reading “अपने माहिं टटोल-(प्रवचन-01)”

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