शूून्य की किताब–(Hsin Hsin Ming)-(ओशो)

शुन्य की किताब-(Hsin Hsin Ming)-ओशो

(ओशो की अंग्रेजी पुस्तक Hsin Hsin Ming का हिन्दी अनुवाद शुन्य की किताब जो झेन गुरु सोसान के सुत्रों पर ओशो के अमृत प्रवचनों का संकलन है।)

 प्रवेश से पूर्व

प्रतीक जिस वस्तु को अभिव्यक्त करता है उसका ज्यादा महत्व नहीं रह गया है। गुलाब का महत्व नहीं है ‘गुलाब’ शब्द महत्वपूर्ण हो गया है। और मनुष्य शब्द का इतना आदी हो गया है शब्द से इतना आविष्ट हो गया है कि शब्द से प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं। कोई ‘नीबू’ का नाम ही लेता है तो तुम्हारे मुंह में पानी आता है। यह शब्द का आदी हो जाना है। हो सकता है नीबू भी इतना प्रभावकारी न हो भले ही नीबू टेबल पर रखा हो और तुम्हारे मुंह में पानी भी न आए। लेकिन कोई कहता है ‘नीबू’? और तुम्हारे मुंह में पानी आ जाता है। शब्द वास्तविक से अधिक महत्वपूर्ण हो गया है- यही उपाय है-और जब तक तुम इस शब्द- आसक्ति को नहीं छोड़ते तुम्हारा वास्तविकता से साक्षात्कार नहीं होगा। दूसरा कोई और अवरोध नहीं है। Continue reading “शूून्य की किताब–(Hsin Hsin Ming)-(ओशो)”

ऋतु आये फल होय-(प्रवचन-08)

गहरे नीले और बैंजली रंगों के पुष्पों की घाटी—(प्रवचन-आठवां)  

ऋतु आये फल होय–The Gras grow by Itself–ओशो

 (ज़ेन पर ओशो द्वारा दिनांक 28 फरवरी 1975 में अंग्रेजी में दिये गये अमृत प्रवचनों का हिन्दी में अनुवाद)

 सूत्र:02

नीनागावा शिंजेमन, जो छंदबद्ध कविता का एक सुन्दर कवि और येन
का श्रद्धालु था, उसके अन्दरसुप्रसिद्ध सद्‌गुरु इनका शिष्य बनने की
इच्छा जागृत हुई,

जो उन दिनों नीले बैंजनी फूलों की घाटी मुस्कीनो में डेटोकूजी मठ का
सद्‌गुरु था।

उसे इक्यू द्वारा बुलवाया गया,

और बुद्ध मंदिर के प्रवेशद्वार पर उनके मध्य निम्न संवाद हुआ।

इन- आप कौन हैं?

नीनागावा: मैं बौद्ध धर्म का एक श्रद्धालु उपासक हूं।

इक्यू: आप कहां के हैं?

नीनागावा: आपके ही क्षेत्र का।

इक्यू: ओह! और इन दिनों वहां कैसा क्या हो रहा है? Continue reading “ऋतु आये फल होय-(प्रवचन-08)”

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