दसवां-प्रवचन-(संन्यास परम सुहाग है)
दिनांक 20-01-1975, ओशो आश्रम पूना।
सूत्र:
डगमग छाड़ि दे मन बौरा।
अब तो जरें बनें बनि आवै, लीह्नों हाथ सिंधौरा।।
होई निसंक मगन ह्वै नाचै, लोभ मोह भ्रम छाड़ौ।
सूरो कहा मरन थें डरपै, सती न संचै भाड़ौ।।
लोक वेद कुल की मरजादा, इहै गलै मै पासी।
आधा चलि करि पीछा फिरिहैं, ह्वै ह्वै जग में हासी।। Continue reading “गूंगे केरी सरकरा-(प्रवचन-10)”