गूंगे केरी सरकरा-(प्रवचन-10)

दसवां-प्रवचन-(संन्यास परम सुहाग है)

दिनांक  20-01-1975, ओशो आश्रम पूना।

सूत्र:

डगमग छाड़ि दे मन बौरा।

अब तो जरें बनें बनि आवै, लीह्नों हाथ सिंधौरा।।

होई निसंक मगन ह्वै नाचै, लोभ मोह भ्रम छाड़ौ।

सूरो कहा मरन थें डरपै, सती न संचै भाड़ौ।।

लोक वेद कुल की मरजादा, इहै गलै मै पासी।

आधा चलि करि पीछा फिरिहैं, ह्वै ह्वै जग में हासी।। Continue reading “गूंगे केरी सरकरा-(प्रवचन-10)”

गूंगे केरी सरकरा-(प्रवचन-09)

नौवां-प्रवचन-(मृत्यु है द्वार अमृत का)

दिनांक 19-01-1975, ओशो आश्रम पूना।

सूत्र:

जम ते उलटि भये हैं राम।

दुख बिनसे सुख कियो विसराम।।

बैरी उलटि भये हैं मीता।

सातक उलटि सुजन भये चीता।।

अब मोहि सरब कुसल करि मानिया।

सांति भई जब गोबिंद जानिया।।

तन महि होती कोटि उपाधि।

उलटि भई सुख सहज समाधि।।

आपु पछानैै आपै आप।

रोगु न बियापै तीनो ताप।। Continue reading “गूंगे केरी सरकरा-(प्रवचन-09)”

गूंगे केरी सरकरा-(प्रवचन-08)

आठवां-प्रवचन-(समर्पण है परम समाधान)

दिनांक 18-01-1975, ओशो आश्रम पूना।

सूत्र:

झगरा एक निबेरहु राम।

जउ तुम अपने जन सों काम।।

इहु मन बड़ा कि सउ मन मानिया।

रामु बड़ा कि रामहि जानिया।।

ब्रह्मा बड़ा कि जासु उपाइया।

वेदु बड़ा कि जहां ते आइया।।

कहु कबीर हउ भइया उदासु।

तीरथ बड़ा कि हरि का दासु।।

अहंकार सलाह लेने से डरता है। अहंकार अपनी उलझन खुद ही सुलझा लेना चाहता है। यह भी स्वीकार करने में कि मैं उलझा हूं, अहंकार को चोट लगती है। अहंकार गुरु के पास इसीलिए नहीं जा सकता है। Continue reading “गूंगे केरी सरकरा-(प्रवचन-08)”

गूंगे केरी सरकरा-(प्रवचन-07)

सातवां-प्रवचन-(जिन जागा तिन मानिक पाइया)

दिनांक 17-01-1975, ओशो आश्रम पूना।

सूत्र:

अवधू ऐसा ग्यान विचार।

भेरै चढ़ै सु अधधर डूबै, निराधार भए पार।।

ऊपट चलै सु नगरि पहूंतै, बाट चलै ते लूटे।

एक जेबड़ी सब लपटाने, के बांधे के छूटे।।

मंदिर पैसि चहूं दिसि भींजे, बाहरि रहै ते सूखा।

सरि मारे ते सदा सुखारे, अनमारे ते दूखा।।

बिन नैनन के सब जग देखै, लोचन अचते अंधा।

कहै कबीर कछु समझि परि है, यह जग देख्या धंधा।। Continue reading “गूंगे केरी सरकरा-(प्रवचन-07)”

गूंगे केरी सरकरा-(प्रवचन-06)

छठवां-प्रवचन-(सतगुरु नूर तमाम)

दिनांक 16-01-1975, ओशो आश्रम पूना।

सूत्र:

साधो धोका कासूं कहिये।

गुन मैं निरगुन निरगुन मैं गुन, बाट छाड़ि क्यों बहिये।।

अजरा अमर कथै सब कोई, अलख न कथना जाई।

नाति सरूप वरन नहिं जाके, घटि घटि रह्यो समाई।।

प्यंड ब्रह्मंड कथै सब कोई, बाकै आदि अरु अंत न होई।

प्यंड ब्रह्मंड छाड़ि जे कथिये, कहै कबीर हरि सोई।। Continue reading “गूंगे केरी सरकरा-(प्रवचन-06)”

गूंगे केरी सरकरा-(प्रवचन-05)

पांचवां-प्रवचन-(एक एक जिनि जानिया, तिन ही सच पाया)

दिनांक 15-01-1975, ओशो आश्रम पूना।

सूत्र:

पखा पखा के पेखने, सब जगत भुलाना।

निरपख होइ हरि भजै, सो साध सयाना।।

ज्यूं खर सूं खर बांधिया, यू बंधे सब लोई।

जाके आत्म दृष्टी है, साचा जन सोई।।

एक एक जिनि जानिया, तिन ही सच पाया।

प्रेमी प्रीति ल्यौं लीन मन, ते बहुरी न आया।।

पूरे की पूरी दृष्टी, पूरा करि देखै।

कहै कबीर कछु समझ न परइ, या कुछ बात अलेखै।। Continue reading “गूंगे केरी सरकरा-(प्रवचन-05)”

गूंगे केरी सरकरा-(प्रवचन-04)

चौथा-प्रवचन-(सम्यक जीवनः सम्यक मृत्यु)

दिनांक 14-01-1975, ओशो आश्रम पूना।

सूत्र:

मरते मरते जग मुआ, औरस मुआ न कोय।

दास कबीरा यों मुआ, बहुरि न मरना होय।।

मरते मरते जग मुआ, बहुरि न किया विचार।

एक सयानी आपनी, परबस मुआ संसार।।

मरिए तो मरि जाइए, छूटि परै जंजार।

ऐसा मरना को मरै, दिन में सौ सौ बार।।

जब लगि मरने से डरै, तब लगि प्रेमी नाहिं।

बड़ो दूर है प्रेमघर, समुझि लेहु मन माहिं।।

सुन्न मरै, अजपा मरै, अनहद हू मरि जाय।

राम सनेही ना मरै, कह कबीर समुझाय।।

जिस मरने से जग डरै, मेरो मन आनंद।

कब मरिहौं कब भेंटिहौं, पूरन परमानंद।। Continue reading “गूंगे केरी सरकरा-(प्रवचन-04)”

गूंगे केरी सरकरा-(प्रवचन-03)

तीसरा-प्रवचन-(दुलहा दुलहिन मिल गए, फीकी पड़ी बरात)

दिनांक 13-01-1975 से 20-01-1975 ओशो आश्रम पूना।

सूत्र:

दुलहनी गावहु मंगलाचार,

हम घरि आए हौ राजा राम भरतार।

तन रति करि मैं मन रति करिहंु पंचतत बराती।

रामदेव मोरे पाहुनै आए मैं जोवन में माती।।

सरीर सरोवर वेदी करिहुं ब्रह्मा वेद उचार।

रामदेव संग भांवरि लैहुं धनि धनि भाग हमार।।

सुर तैतीसूं कौतिग आए मुनियर सहस अठ्यासी।

कहैं कबीर हम ब्याहि चले हैं पुरूष एक अविनासी।। Continue reading “गूंगे केरी सरकरा-(प्रवचन-03)”

गूंगे केरी सरकरा-(प्रवचन-02)

दूसरा-प्रवचन-(लिखालिखी की है नहीं, देखादेखी बात)

दिनांक 11-01-1975 से 20-01-1975 ओशो आश्रम पूना।

सूत्र:

आतम अनुभव ग्यान की, जो कोई पूछै बात।

सो गूंगा गुड़ खाइके, कहै कौन मुख स्वाद।।

जो गूंगे के सैन को, गूंगा ही पहचान।

त्यों ग्यानी के सुक्ख को, ग्यानी होय सो जान।।

लिखालिखी की है नहीं, देखादेखी बात।

दुलहा दुलहिन मिल गए, फीकी पड़ी बरात।।

जो देखै सो कहै नहिं, कहै सो देखे नाहिं।

सुनै सो समझावै नहीं, रसना दृग श्रुति काहि।। Continue reading “गूंगे केरी सरकरा-(प्रवचन-02)”

गूंगे केरी सरकरा-(प्रवचन-01)

गूंगे केरी सरकरा–(कबीर दास)

पहला-प्रवचन–(अकथ कहानी प्रेम की)

दिनांक 11-01-1975 से 20-01-1975 कबीर दास के वचनों पर दिये ओशो आश्रम पूना में के अमृत प्रवचनों का संकलन)

सूत्र-

प्रेम न बाड़ी उपजै, प्रेम न हाट बिकाय।

राजा परजा जेहि रुचै, सीस देय लै जाय।।

पोथी पढ़ पढ़ जग मुवा, पंडित भया न कोय।

ढाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होय।।

प्रेम गली अति सांकरी, तामें दो न समाय।

जब मैं था तब हरि नहीं, जब हरि मैं हूं नाहिं।।

कबीर बादल प्रेम का, हम पर बरसा आइ।

अंतर भीगी आत्मा, हरी भई बनराइ।।

जिहि घट प्रीति न प्रेमरस, पुनि रसना नहिं राम।

ते नर इस संसार में, उपजि भये बेकाम।। Continue reading “गूंगे केरी सरकरा-(प्रवचन-01)”

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