पोनी-एक कुत्ते की आत्म कथा


पोनी–एक कुत्ते की आत्म कथा (सारांश)

समय-पोनी की आत्म कथा लिखने में मुझे 2006 से 2022 यानि की 16 साल लगे।

पहले मैं ‘’पोनी-एक कुत्ते की आत्म कथा’’ सबसे पहले मैं अपने छोटे बेटे को माध्यम बना कर इस आत्म कथा को लिखना चाहता था। फिर सोचा बच्चे से गहरी ध्यान की बात ठीक नहीं होंगी। या हो सकता बड़ा हो कर बच्चा ध्यान ही न करें। तब अचानक मेरे मस्तिष्क में विचार कौंधा की क्यों न सोचा की पिरामिंड को खूद ही अपनी कथा कहता हुआ दिखलाता हूं। परंतु कुछ क्षण बाद ही वह विचार थिर हो गया। क्योंकि वह तो थिर था। चल फिर नहीं सकता था। तब इसका नाम होता ‘’एक पिरामिंड की आत्म कथा’’-

मैं सोचता रहा अचानक न जाने कहां से अचानक विचार मेरे मन में कौंधा या कहा जाये की बह कर विचार बह आया की तुम कुत्ते को मध्यम बना कर लिखो। तब मेरे सामने आया ‘’पोनी’’ वह सामने ही सो रहा था। अचानक मैंने अपनी इस आत्म कथा का ताना बाना बुनना पोनी को माध्यम बना करना शुरू किया। आधी आत्म कथा पोनी की है और आधी टोनी की ही नहीं उन अनंत कुत्तो की कथा है जिनको मैंने देखा है या जाना है। तभी अचानक एक घटना घटी की पौनी की आत्म कथा एक अध्याय लिख कर एक दिन मैंने अपने परिवार के सामने सुनाई उस दिन मेरी बड़ी बहन रोशनी भी आई हुई थी। सब बैठ कर बड़े ध्यान से सून रह थे। एक अध्याय खत्म होने के बाद मेरी बहन ने मेरी बेटी से कहां की मणि पोनी बोलन लगाया । (यानी की क्या पोनी अब बोलने लग गया) बहन के शब्द मेरे लिए एक पुरस्कार थे। मैं समझ गया की मेरी जीत हुई है और उन चार शब्दों ने मुझे लिखने में बहुत मदद की। जो लाखों के रूप में विस्तार पा गए।

परंतु इतना जरूर जानता हूं की ध्यान की गहराई के ये अनुभव जो मैंने अपने पर उतरते देखे या महसूस किए है वे सब सत्य है। ये कल्पना नहीं है। और ये प्रत्येक साधक के लिए मिल का पत्थर बन सकते है। मैं तो चाहता हूं कि प्रत्येक ध्यान साधना करने वाले साधक को ये पुस्तक एक बार नहीं बार-बार पढ़नी चाहिए। जिससे की उसके मार्ग में आने वाली बाधाओं से साक्षात्कार हो सकेगा। और वह उससे न घबरा कर उसके पास जाने में उसका सहयोग करेंगे।

और सच पोनी को मैंने प्राण त्यागते देखा है। वह जब इस पृथ्वी से जिस अवस्था में गया तो अगला जन्म एक मनुष्य की उच्च चेतना के रूप में जरूर प्राप्त करेंगे।

मैं चाहता हूं ये सब साधना के जगत के मार्ग की एक विशेष परिधि जो मुझे उपहार स्वरूप मिली है। ये सब मार्ग की अनुभूतियां प्रत्येक साधक के काम की हो सकती है। जो जैसा मैंने अनुभव किया, उसे उतना ही सत्य लिखा है। अब मैं इस पुस्तक के लिखने के बाद अपनी खूद की आत्म कथा लिखने का साहास कर सकता हूं। क्योंकि कुछ बाते ऐसी भी है जो पोनी से नहीं कहवाई जा सकती थी। जो मैंने जानी है। और झेली है। कैसे ओशो से जुड़ना हुआ और मार्ग और मन की क्या स्थिति रहती है। साधक की ये कोई सरल कार्य नहीं है। उस सच-सच शब्दों में लिखना।

पोनी की आत्म कथा में इसलिए भी कुछ देरी हो रही है। एक तो ये दोनों भाषाओं में यानि की अंग्रेजी और हिंदी में आ रही है। दूसरा पहले मैं इसे दो भागों में छपवाना चाहता था। क्योंकि ये कुछ अधिक ही बड़ी हो गई है। परंतु अब एक ही भाग में पूर्ण छप रही है। नहीं तो पाठक दूसरे भाग की तलाश करते रहते।

मनसा-मोहनी दसघरा

2 Replies to “पोनी-एक कुत्ते की आत्म कथा”

  1. पोनी—कुत्‍ते की आत्मकथा
    मनसा—मोहनी
    जब तुम एक कुत्‍ते से बात करते हो, खेलते हो, उसके प्रेम में डूबते हो। तब एक अहंकार की मोटी पर्त जो तुम्हें समाज ने दी है। एक संस्कार, सभ्यता के रूप में, वह विलीन होनी शुरू हो जाती है। तुम एक अबोध बाल वत होना शुरू हो जाते हो। तुम्हारे तनाव, तुम्हारे मन—तन में फैला जहर वह चूस लेता है। एक पागल आदमी भी अगर कुत्ते का संग साथ करें तो वह स्वास्थ्य हो सकता है। समाज ने उसे जो अहंकार तुम्हें धरोहर के रूप में दिया है वह विदा हो जाता है। क्‍योंकि कुत्‍ते के साथ अहंकार का प्रश्न ही नहीं उठता। उनका मन इतना तरल है, शुद्ध सफटिक जलवत। पूर्ण पशु जाति में केवल कुत्ता ही जल तत्व की अधिकता समेंटे होता है अपने में।

    ओशो
    विज्ञान भैरव तंत्र, भाग—5

    Liked by 1 व्यक्ति

टिप्पणियाँ बंद कर दी गयी है.

Design a site like this with WordPress.com
प्रारंभ करें