बारहवां प्रवचन-(विश्वास नहीं, विवेक
थोड़ी सी अपने हृदय की बातें आपसे कह सकूंगा। आनंदित इसलिए और भी ज्यादा हूं, क्योंकि जिनकी उम्र अभी थोड़ी है, जो अभी बूढ़े नहीं हो गए हैं, उनसे कुछ आशा भी की जा सकती है। युवकों के बीच, जिनके चित्त पर अभी जीवन का भार नहीं है और जो अतीत के ज्ञान के बोझ से भी नहीं दबे है, वे कुछ समझ और सोच सकते हैं, यह भी आशा बंधती है। लेकिन कोई मात्र शरीर से युवा होने से युवा नहीं होता है। और हमारे इस देश में तो एक बड़ा दुर्भाग्य और दुर्घटना घटी है, हमारे देश में मुश्किल से कोई युवा होता हो। हम या बच्चे होते हैं, या बूढ़े हो जाते हैं। बीच के युवा मन के क्षण आते ही नहीं।
उस व्यक्ति को जो सदा भविष्य के संबंध में सोचता हो, बचपन में कहना चाहिए। और जो निरंतर बीते हुए के संबंध में विचार करने लगे, बूढ़ा हो जाता है। युवा मस्तिष्क वह है, जो निरंतर वर्तमान में जीने की क्षमता रखता है। यह मैं आशा करता हूं कि आप में से बहुतों का मन अभी युवा होगा। आशा इसलिए कि बहुत कम इसकी संभावना है। समाज, सभ्यता और संस्कार, इसके पहले कि हमारा मस्तिष्क पूरी ताजगी का उपलब्ध हो, उसे बूढ़ा करना शुरू कर देते हैं। फिर भी, कुछ संभावना इस बात की है कि सोच-विचार आपके भीतर चलता होगा। उस सोच-विचार को ध्यान में रख कर मैं कुछ थोड़ी सी बाते आपसे कहूंगा। Continue reading “सुख और शांति-(प्रवचन-12)”