जीवन रहस्‍य-(प्रवचन–02)

मौन का द्वार—(प्रवचन—दूसरा)

रमात्मा के संबंध में जितने असत्य कहे गए और गढ़े गए हैं, उतने और किसी चीज के संबंध में नहीं। परमात्मा के संबंध में जितना झूठ प्रचलित है, उतना किसी और चीज के संबंध में नहीं। परमात्मा के संबंध में जितने असत्य, जितने झूठ, जितनी कल्पनाएं प्रचलित हैं, उतनी किसी और चीज के संबंध में नहीं। और कुछ बात ऐसी है कि शायद परमात्मा के संबंध में सत्य कहा ही नहीं जा सकता है। जो भी कहा जाता है, वह कहने के कारण ही असत्य हो जाता है।

कुछ है, जिसे कहना संभव नहीं है। कुछ है, जिसे जाना जा सकता है, लेकिन कहा नहीं जा सकता। और आश्चर्य की बात है कि जिस परमात्मा के संबंध में कुछ भी नहीं कहा जा सकता, उसके संबंध में इतने शास्त्र लिखे गए हैं जिनका हिसाब लगाना मुश्किल है! Continue reading “जीवन रहस्‍य-(प्रवचन–02)”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-62

याद घर बुलाने लगी—प्रवचन—इकतीसवां

जिन सूत्र–(भाग–2)

सूत्र:

ण वि दुक्‍खं ण वि सुक्‍खं, ण वि पीडा णेव विज्‍जदे बाहा।

णवि मरणं ण वि जणणं,तत्‍थेव य होई णिव्‍वाणं।। 156।।

ण वि इंदिय उवसग्‍गा, तत्‍थेव य होइ णिव्‍वाणं।

ण य तिण्‍हा णे व छुहा, तत्‍थेव य होइ णिव्‍वाणं।। 157।।

ण वि कम्‍मं णोकम्‍मं, ण वि चिंता णेव अट्टरूद्दाणि।

ण वि धम्‍मसुक्‍कझाणे, तत्‍थेव य होइ णिव्‍वाणं।। 158।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-62”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-61

एक दीप से कोटि दीप हों—प्रवचन—तीसवां

जिन सूत्र–(भाग–2)

प्रश्‍नसार:

1—जिन—धारा अनेकांत—भाव और स्‍यातवाद से भरी है, फिर भी प्रेमशून्‍य क्‍यों हो गई?

2—जीसस अपने शिष्‍यों से कहते थे कि यदि मेरे साथ चलने से कोई तुम्‍हें रोके तो उसे मार डालो और मेरे साथ चल पड़ो। प्रेमपुजारी जीसस की ऐसी आज्ञा?

3—अतीत में गुरु के पास एक ही मार्ग के साधक इकट्ठे होते थे। और आपके आश्रम में सभी विपरीत मार्गों का मेला लगा हुआ है—यह कैसे?

4—त्‍वमेव माता च पिता त्‍वमेव, त्‍वमेव, बंधुश्‍च सखा त्‍वमेव

   त्‍वमेव विद्या द्रविणं तवमेव, तवमेव सर्वं मम देव देवा Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-61”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-60

त्रिगुप्‍ति और मुक्‍ति—प्रवचन—उनतीसवां

जिन सूत्र–(भाग–2)

सूत्र:

जहा महातलायस्‍स सन्‍निरूद्धे जलागमे।

उस्‍सिंचणाए तवणाए, कमेण सोसणा भवे।वे।।

एवं तु संजयस्‍सावि पावकम्‍मनिरासवे।

भवकोडीसंचियं कम्‍मं,तवसा निज्‍जारिज्‍जइ।। 152।।

तवसा चेव ण मोक्‍खो संवरहीणस्‍स होई जिणवयणे।

ण हु सोते पविसंते, किसिणं परिसुस्‍सदि तलायं।। 153।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-60”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-59

रसमयता और एकाग्रता— प्रवचन—अट्ठाइसवां

जिन सूत्र–(भाग–2)

प्रश्‍नसार:

1—कुछ दिन ध्‍यान में जी लगता है, कुछ दिन भजन में; लेकिन एकाग्रता कहीं नहीं होती।

2—आकस्‍मिक रूप से भगवान से मिलना हुआ और संन्‍यास भी ले लिया, क्‍या यह ध्‍यान कायम रहेगा?

3—भगवान श्री कृष्‍ण के सिर र्दद के लिए ज्ञानियों ने पैर की धूल देने से इंकार कर दिया लेकिन गोपियों ने दे दी—इसका रहस्‍य क्‍या है?

4—क्‍या ध्‍यान की मृत्‍यु और प्रेम की मृत्‍यु भिन्‍न होती है? Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-59”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-58

पंडितमरण सुमरण है—प्रवचन—सत्‍ताईसवां

जिन सूत्र–(भाग–2)

सूत्र:

सरीमाहु नाव त्‍ति, जीवो वुच्‍चइ नाविओ।

संसारो अण्‍णवो वुत्‍तो, जं तरंति महेसिणो।। 146।।

धीरेण वि मरियव्‍वं, काउरिसेण वि अवस्‍समरियव्‍वं।

तम्‍हा अवस्‍समरणे, वरं खु धीरत्‍तणे मरिउं।। 147।।

इक्‍कं पंडियमरणं, छिंदइ जाईसयाणि बहुयाणि।

तं मरणं मरियव्‍वं, जेण मओ सुम्‍मओ होई।। 148।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-58”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-57

प्रेम के कोई गुणस्‍थान नहीं—प्रवचन छब्बीसवां

जिन सूत्र–(भाग–2)

प्रश्‍नसार:

1— बारहवें और तेरहवें गुणस्थान: क्षीणमोह और सयोगिकेवलीजिन में क्या भिन्नता है इसे स्पष्ट करने की कृपा करें।

2—क्‍या तेरहवें गुणस्‍थान को उपलब्‍ध होकर भी उससे च्‍युत हुआ जा सकता है?

3—क्‍या प्रेम के मार्ग पर भी कोई सीढ़ियां होती है?

4—रजनीश एशो आमी तोमार बोइसागी

   आमी पूना गेलाम, आमी काशी गेलाम

   लाओ री लाओ संगे डुगडुगी। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-57”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-56

चौदह गुणस्‍थान—प्रवचन—पच्‍चीसवां

जिन सूत्र–(भाग–2)

सूत्र:

जेहिं दु लक्‍खिज्‍जंते, उदयादिसुसंभवेहिं भावेहिं।

जीवा ते गुणसण्‍णा, णिद्दिट्ठा, सव्‍वदरिसीहिं।। 144।।

मिच्‍छो सासण मिस्‍सो, अविरदसम्‍मो य देसविरदो य।

विरदो पमत्‍त इयरो, अपुत्‍व अणियट्टि सुहुमो य।

उवसंत खीणमोहो, सजोगिकेवलिजिणो अजोगी य।

चोद्दस गुणट्ठाणाणि य, कमेण सिद्धा य णायव्‍वा।।145।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-56”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-55

आज लहरों में निमंत्रण—प्रवचन—चौबीसवां

जिन सूत्र–(भाग–2)

प्रश्‍नसार:

1— जैन मानते हैं कि जिन-शासन के अतिरिक्त सभी शासन मिथ्या हैं, जाग्रत व सिद्ध पुरुषों के बाबत बताए जाने पर भी वे उनकी ओर उन्मुख नहीं होते। क्या उन्हें सन्मार्ग पर लाना संभव नहीं है?

2—आपका विरोध करने वाले लोग यदि आपमें उत्‍सुकता लेने लगें तो हम संन्‍यासियों को क्‍या करना चाहिए?

3—महावीर की तरह आप भी अंधविश्‍वासों पर प्रहार करके सदधर्म का तीर्थबना रहे है; फिर भी अंधश्रद्धालुओं में जाग क्‍यों नहीं आती? Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-55”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-54

षट पर्दों की ओट में—प्रवचन—तेईसवां

जिन सूत्र–(भाग–2)

सूत्र:

चंडो ण मुंचइ बेरं, भंडणसीलो य धरमदयरहिओ।

दुट्ठो ण य एदि वसं, लक्‍खणमेयं तु किणहस्‍स।। 138।।

मंदो बुद्धिविहीणो, णिव्विणाणी य विसयलोलो य।

लक्‍खणमेयं भणियं, समासदो णीललेस्‍सस्‍स।। 139।।

रूसइ णिंदइ अन्‍ने, दूसइ बहुइ बहुसो य सोयभयबहुलो।

ण गणइ कज्‍जाकज्‍जं, लक्‍खणमेंयं तु काउस्‍स।। 140।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-54”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-53

पिया का गांव—प्रवचन—बाईसवां

जिन सूत्र–(भाग–2)

प्रश्‍न सार:

1— न जाने किधर आज मेरी नाव चली रे

चली रे चली रे मेरी नाव चली रे

कोई कहे यहां चली, कोई कहे वहां चली

मैंने कहा पिया के गांव चली रे

2—जैन दर्शन कहता है कि इस आरे में मोक्ष संभव नहीं है। तो फिर मोक्ष यहीं और अभी है, इस धारणा को पकड़ लेना क्‍या आत्‍म वंचना नहीं है? Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-53”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-52

छह पथिक और छह लेश्‍याएं—प्रवचन—इक्‍कीसवां

जिन सूत्र–(भाग–2) 

सारसूूूूत्र:

कीण्‍हा णीला काऊ, तेऊ पम्‍मा या सुक्‍कलेस्‍सा य।

लेस्‍साणं णिद्देसा, छच्‍चेव हवंति णियमेण।। 134।।

कीण्‍हा णीला काऊ, तिण्‍णि वि एयाओ अहम्‍मलेसाओ।

एयाहि तिहि वि जीवो, दुग्‍गइं उववज्‍जई बहुसो।। 135।।

तेऊ पम्‍हा सुक्‍का, तिण्‍णिवि एयाओ धम्‍मलेसाओ।

एयाहि तिहि वि जीवो, सुग्‍गइं उववज्‍जई बहुसो।। 136।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-52”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-51

गोशालक: एक अस्‍वीकृत तीर्थंकर—प्रवचन—बीसवां

जिन सूत्र (भाग–2)

प्रश्‍न सार:

1—मक्‍खनी गोशालक के जीवन पर प्रकाश डालने  की कृपा करें।

2—महावीर का अशरण—उपदेश और उनका शिष्‍यों को दीक्षा देना—इनमें क्‍या अंतर्विरोध नहीं है?

3—अशरण भाव और असहाय भाव में क्‍या भेद है? Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-51”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-50

ध्‍यानाग्‍नि से कर्म भस्‍मिभूत—प्रवचन—उन्‍नीसवां

जिन सूत्र (भाग–2)

सूत्र:

जह चिरसंचयमिंधण—मनलो पवणसहिओ दुयं दहइ।

तह कम्‍मेंधममियं, खणेण झाणानलो डहइ।। 131।।

झाणोवरमेउवि मुणी, णिच्‍वमणिच्‍चइभावणापरमो।

होइ सुभावियचित्‍तो, धम्‍मझाणेण जो पुव्विं।। 132।।

अद्धुवमसरणमेगत्त मन्‍नत्‍तसंसारलोयमसुइत्‍तं।

आसवसंवरणिज्‍जर, धम्‍मं बोधि च चिंतिज्‍ज।। 133।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-50”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-49

मूक्‍ति द्वंद्वातीत है—प्रवचन—अठारहवां

जिन सूत्र (भाग–2)

प्रश्‍न सार:

1—राग और द्वेष के दो पहिये से संसार निर्मित होता है। क्‍या मोक्ष के भी ऐसे ही दो पहिये होते है?

2—गुरु मृत्‍यु है या ब्रह्म है, या एक साथ दोनों है?

3—सूली ऊपर सेज पिया की, किस विद्य मिलना होय?

4—आपका स्‍मरण मुझे प्रगाढ़ रसमयता और आनंद से भर देता है। मेरी चाल में आपकी धुन के धूंधर बजते है, तो अब मैं ध्‍यान को कहां रखूं?

5—वहां तक आया हूं, जहां लगता है कि अब कुछ हो सकता है।

6—मन एकदम शांत होगा तो सांसारिक कार्य कैसे होंगे? Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-49”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-48

ध्‍यान है आत्‍मरमण—प्रवचन—सत्रहवां

जिन सूत्र–(भाग–2)

सारसूत्र:

जे इंदियाणं विसया मणुण्‍णा, न तेसु भावं निसिरे कयाई।

न याउमणुण्‍णेसु मणं पि कुज्जा,समाहिकामें समणे तवस्‍सी।। 123।।

सुविदियजगस्‍सभावो, निस्‍संगो निब्‍भओ निराओ य।

वेरग्‍गभाविणमणो, झााणंमिसुनिच्‍चलो होई।। 124।।

देहविवितं पेच्‍छइ, अप्‍पपाणं तह य बव्‍वसंजोगे।

देहोवहिवोसग्‍गं निस्‍संगो सव्‍वहा कुणइ।। 125।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-48”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-47

गुरु है द्वार—प्रवचन—सोलहवां

जिन सूत्र–(भाग–2)

प्रश्‍न सार:

1—नानकदेव भी जाग्रतपुरूष थे, लेकिन उन्‍होंने स्‍वयं को भगवान नहीं कहा। आप……..?

2—ध्‍यान के एक गहन अनुभव पर भगवान से मार्ग दर्शन की प्रार्थाना।

3—अफसोस, दिल का हाल कोई पूछता नहीं। और सब कहते है तेरी सूरत बदल गई।

और सब कुछ लूटा के होश में आये तो क्‍या किया।  मैं क्‍या करूं…… ?

4—आप उत्‍तर न देंगे तो मैं पागल हो जाऊंगा। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-47”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-46

त्‍वरा से जीना ध्‍यान है—प्रवचन—पंद्रहवां

जिन सूत्र–(भाग-2)

सूत्र:

सीसं जहा सरीरस्‍स, जहा मूलस दुमस्‍स य।

सव्‍वस्‍स साधुधम्‍मस्‍स, तहा झाणं विधीयते।। 117।।

लवण व्‍व सलिजजोए, झाणे चितं विलीयए जस्‍स।

तस्‍स सुहासुहडहणो, अप्‍पाउणलो पयासेइ।। 118।।

जस्‍स न विज्‍जदि रागो, दोसो मोहो व जोग परिक्‍कमो।

तस्‍स सुहासुहडहाणो, झाणमओ जायए अग्‍गी।। 119।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-46”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-45

जीवन तैयारी है, मृत्‍यु परीक्षा है—प्रवचन—चौदहवां

जिन सूत्र–(भाग–2) 

प्रश्‍नसार:

1—भगवान श्री की आंखों से निरंतर आशीर्वाद की वर्षा। उनके दृष्‍टि पात मित्र से शरीर में कंपन व अंतर्तम में बर्छी की चुभन। मृत्‍यु घटित होती—सी लगती है। फिर भी आत्‍यंतिक—मृत्‍यु क्‍यों नहीं?

2—भगवान श्री के सान्‍निध्‍य से भीतर प्रेम—प्रवाह प्रारंभ—हर व्‍यक्‍ति, हर वस्‍तु के प्रति। प्रेम पूरित होकर किसी से गले लगने को बढ़ने पर दूसरे द्वारा संकोच व अनुत्‍साह, प्रश्‍न कर्ता का पीछे हाट जाना। मार्गदर्शन की मांग।

3—तूने आटा लगाया और फंसाया। अब हम अकेले तड़प रहे है। जिम्‍मेवार कौन?

4—भगवान श्री,  तेरी रजा पूरी हो। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-45”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-44

गुरु है मन का मीत—प्रवचन—तेरहवां

जिन सूत्र–(भाग–2) 

सूत्र:

जह कंटएण विद्धो, सव्‍वंगे वेयणद्दिओ होइ।

तह चेव उद्धियम्‍मि उ, निस्‍सल्‍लो निटवुओ होइ।।

एवमणुद्धियदोसो, माइल्‍लो तेणं दुक्‍खिओर होइ।

सो चेव चत्‍त दोसो, सुविसुद्धो निव्‍वुओ होई।। 113।।

णाणेण ज्‍झाणादो सव्‍वकम्‍मणिज्‍जरणं।

णिज्‍जरणफलं मोक्‍खं, णाणब्‍भासं तदो कुज्‍जा।। 114।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-44”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-43

ज्ञान ही क्रांति—प्रवचन—बारहवां

जिन सूत्र–(भाग–2)

प्रश्‍नसार:

1—चित्‍त की दशा को आपने बाधा बताया। चित्‍त की दशा ही तो हमें आपके पास ले आयीं? बुद्धि को भी आपने बाधा बाताया। पर मैं आपके इर्द—गिर्द बुद्धिमान लोगों को भरे देखता हूं?

2—आचार्य रजनीश को सुनता था—निपट सीधा साफ। प्‍यारे भगवान को भी सुनता हूं—आड़े आते है, बुद्ध, महावीर जीसस, शंकर आदि। स्‍वयं सीधे प्रकट होने की बजाय आड़ लेकर आने के पीछे रहस्‍य क्‍या?

3—जैन—कुटुंब में जन्‍म। तीन वर्षो से भगवन श्री को पढ़ना। संन्‍यस्‍त भी। फिर पारे की तरह बिखरते जाना। जिन—सूत्र पर भगवान के प्रवचन अच्‍छे लगना। भोग में रस बहुत। परंपरा और संस्‍कार पांवों में बेड़ी की तरह। बहुचित और विक्षिप्‍त होते जाना, टूटते जाना। मार्ग दर्शन की मांग। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-43”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-42

समता ही सामायिक—प्रवचन—ग्‍यारहवां

 जिन सूत्र-(भाग–2) 

  सारसूत्र:

इंदियत्थे विवज्जित्ता, सज्झायं चेव पंचहा।

तम्मुत्ती तप्पुरक्कारे, उवउत्ते इरियं रिए।। 108।।

समभावो समाइयं, तणकंचण—सत्‍तुमित्‍तविसओ त्‍ति।

निरभिस्‍संगं चित्‍तं, उच्‍चियपवित्‍तिप्‍पहांण।। 109।।

वयणोच्‍चारणकिरियं, परिचत्‍ता वीयरायभावेण।

जो झायदि अप्‍पाणं, परम समाही हवे तस्‍स।। 110।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-42”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-41

दूख की स्‍वीकृति: महासुख की नींव—प्रवचन—दसवां

जिन सूत्र–(भाग–2)

प्रश्‍नसार:

1—प्रवचन में आप द्वारा एक हाथ से तो हम पर करारी चोट और दूसरे हाथ से सुगंध व फूल लुटाना। दोनों से एक—साथ गुजरने में आपको कठिनाई नहीं होती?

2—समता व आनंद के दीये का अधिक समय तक स्‍थित रहने के बावजूद भी कभी—कभी टिमटिमाने लगना। निर्माण की भूमिका अथवा किसी शिथिलता का परिमाण? अकंप सम्‍यकत्‍व व आनंद हेतु भगवान से मार्ग प्रकाशन की मांग।

3—हर प्रात: भगवान को देखने व सुनने के लिए आना, पर दोनों रस एक साथ न ले पाना। सुनने में आँख का बंद होना, देखने पर सुनने का काम होना। कैसे दोनों का साथ—साथ आस्‍वादन हो?

4—समर्पण व अंधानुकरण में अंतर क्‍या?

5—सिद्ध होकर आपको क्‍या मिला? क्‍या ईश्‍वर निश्‍चयपूर्वक है? Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-41”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-40

प्रेम का आखिरी विस्‍तार: अहिंसा—प्रवचन—नौवां

जिनसूत्र-(भाग–2)

सूत्र:

सव्वेसिमासमाणं, हिदयं गब्भो व सव्वसत्थाणं।

सव्वेसिं वदगुणाणं, पिंडो सारो अहिंसा हु।। 102।।

न सो परिग्‍गहो तुत्‍तो, नायपुत्‍तेण ताइणा।

मुच्‍छा परिग्‍गहो बुत्‍तो, इइ बुतंमेहसिणा।। 103।।

मरदु व जियदु व जीवो, अयदाचारस्‍स णिच्‍छिदा हिंसा।

पयदस्‍स णत्‍थि बंधो, हिंसामत्‍तेण समिदीसु ।। 104।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-40”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-39

प्रेम है द्वार—प्रवचन—आठवां

जिन सूत्र–(भाग–2)

प्रश्‍नसार:

1—महावीर ने आत्‍मा को समय क्‍यों कहा? समय और आत्‍मा में क्‍या संबंध है?

2—पत्‍नी मूर्ति पूजक। पति का ध्‍यान के लिए आग्रह तथा मूर्ति पूजा को व्‍यर्थ बताना। उदाहरण में पत्‍नी द्वारा मीरा जैसी मूर्तिपूजक का प्रमाण पति का निरूतर होना। यथार्थता पर प्रकाश डालने के लिए भगवान से निवेदन।

3—किसी का सहारा पकड़ने, किसी के प्रेम के साये में बैठने का ख्‍याल; लेकिन वैसा न होने पर भी संतोष ही  कि कम से कम अपना दुःख और किसी की उपेक्षा तो साथ है। ऐसा क्‍यो? Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-39”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-38

ध्‍यान का दीप जला लो!—प्रवचन—सातवां

जिन सूत्र–(भाग–2)

सूत्र:

सीह—गय—वसह—मिय—पसु, मारूद—सुरूवहि—मंदरिदुं—मणि।

खिदी—उरगंवरसरिसा, परम—पय—विमग्‍गया साहू।। 96।।

बुद्धे परिनिव्‍वुडे चरे, गाम गए नगरे व संजए।

संतिमग्‍गं च बूहए,समयं गोयम! मा पमायए।। 97।।

ण हु जिणे अज्‍ज दिस्‍सई, बहुमए दिस्‍सई मग्‍गदेसिए।

संपइनेयाउए पहे, समयं गोयम! मा पमायए।। 98।।

भावो हि पढमलिंगं, ण दव्‍वलिंगं च जाण परम तथं।

भावो कारणभूदो, गुणदोसाणं जिणा विंति।। 99।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-38”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-37

करना है संसार, होना है धर्म—प्रवचन—छठवां

जिन सूत्र–(भाग–2) 

प्रश्‍नसार:

1—भगवान श्री के पास आते ही बुद्धि ह्रदय में व शब्‍द मौन में रूपांतरित। और सुनते समय ह्रदयका आंसू बनकर बहना। घर लौटने पर यह अवस्‍था बनी रहेगी। संदेह, कैसे स्‍थित हो यह अवस्‍था?

2—आपके पास संन्‍यास लेने आया हूं, कल घर से पत्र मिला है कि मेरे गैरिक वस्‍त्र पहनते ही मेरे माता—पिता आत्‍महत्‍या कर लेंगे। वे कम शिक्षित है, उन्‍हें समझाना भी कठिन है। क्‍या करूं, कृपया बताएं?

3—मा योग लक्ष्‍मी के वक्‍तव्‍य पर एक मित्र की बेचैनी।

4—सभी प्रश्‍न गिर गये। उत्‍तर की भूख प्‍यास, चाह नहीं। आगे क्‍या? सुख—प्राप्‍ति, महासुख—प्राप्‍ति की एक झलक के बाद आगे क्‍या? Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-37”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-36

जीवन ही है गुरु—प्रवचन—पांचवां

जिन सूत्र–(भाग-2)

सारसूत्र:

सुवहुं पि सुयमहीयं किं काहिइ चरणविप्पहीणस्स।

अंधस्स जह पलित्ता, दीवसयसहस्सकोडी वि ।। 90।।


थोवम्‍मि सिक्‍खिदे जिणइ, बहुसुदं जो चरित्‍तसंपुण्‍णो।

जो पुण चरित्‍तहीणो, किं तस्‍स सुदेण बहुएण।। 91।।

णिच्‍छयणयस्‍स एवं, अप्‍पा उप्‍पमि अप्‍पमें सुरदो।

सो होदि हुसुचरित्‍तो, जोई सो लहइ णिव्‍वाणं।। 92।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-36”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-35

किनारा भीतर है—(भाग-2)  प्रवचन—चौथा

जिनसूत्र–(भाग–2) 

प्रश्‍नसार:

1—प्रश्‍नकर्ता के ख्‍याल में, भगवान का एक ही बात अनेक—अनेक ढंगों से कहना, पर सुनते समय उसे लगना जैसे पहली बार सुनता हो। और इतना आनंद मिलना कि वापिस घर लौटने का मन न होना। क्‍या करूं, मैं क्‍या करूं कि आपको सुनता ही रहूं।

2—घर से चले थे, अनेकों प्रश्‍न से धिरे थे कल के प्रवचन में अचानक सारे प्रश्‍न गायब हो गये। ऐसा क्‍यो और कैसे हुआ।

3—भगवान का प्रवचन सुनते समय आंखों का बंद होने लगना कानों का बहरा होने लगना और चेष्‍टा से भी स्‍थिति का न सँभालना। इधर जी की चाह कि जब परमात्‍मा समक्ष है तो उसे निहारता ही रहूं, वचनामृत रस पान करता ही रहूं, कैसे होश पूर्वक सुनना हो—भक्‍त की पूकार…… Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-35”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-34

ज्ञान है परमयोग—प्रवचन—तीसरा

जिनसूत्र–(भाग–2)

सूत्र:

जेण तच्‍चं विवुज्‍झेज्‍ज, जेण चितं णिरूज्‍झदि।

जेण अत्‍ता विसुज्‍झेज्‍ज, तं णाणं जिणसासणे।। 85।।

जेण रागा विरज्‍जेज्‍ज, जेण सेए सु रज्‍जदि।

जेण मित्‍ती पभावेज्‍ज, तं णाणं जिणसासणे।। 86।।

जे पस्‍सदि अप्‍पाणं, अबद्धपुट्ठं अणन्‍नमविसेसं।

अपदेससुत्‍तमज्‍झं, पस्‍सदि जिणसासणं सव्‍वं।। 87।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-34”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-33

यात्रा का प्रारंभ आपने ही घर से—प्रवचन—दूसरा

जिन-सूत्र-भाग-2 

प्रश्‍न सार:

1—संन्‍यास लेकर साधना करना, संन्‍यास न लेकर साधना करना—दोनों स्‍थितियों में आपके मार्ग का ही अनुसरण है। फिर संन्‍यास से विशेष फर्क क्‍या है?

2—आपने कहा आँख आक्रमण होती है। लेकिन आपकी आंखों में तो प्रेम का सागर दिखाता है, और जी करता है उन्‍हें निहारता ही रहूं। क्‍या आँख को कान—जैसा ग्राहक बनाया जा सकता है।

3—क्‍या स्‍वाद को भी परमात्‍मा—अनुभूति का साधन बनाया जा सकता है?

4—भगवान का प्रवचन सुनते हुए उनकी आवाज से ह्रदय व कर्ण—तंतुओं पर एक अजीब तरह का कंपन। तब से साधारण ध्‍वनियों से भी अजीब कंपन व आनंद की लहर पैदा होना। क्‍या बुद्ध—पुरूषों के स्‍वर में विशेष कुछ? साथ ही भगवान की अपस्‍थिति में एक आनंददायक गंध का मिलना। वहीं गंध कभी ध्‍यान में व आश्रम में अन्‍यत्र भी मिलना। क्‍या काल—विशेष की गंध विशेष भी होती है? Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-33”

जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-32

जिन सूत्र (महावीर)—(भाग—2)  ओशो

सत्‍य के द्वार की कुंजी: सम्‍यक—श्रवण—प्रवचन—पहला

सोच्‍चा जाणइ कल्‍लाणं, सोच्‍चा जाणइ पावणं।

उभयं पि जाणए सोच्‍चा, जं छेपं तं सम्‍मायरे।। 81।।

णाणाssणत्‍तीए पुणो, दंसणतवनियमसंयमे ठिच्‍चा।

विहरइ विसुज्‍झमाणी, जावज्‍जीवं पि निवकंपो।। 82।।

जह जह सुयभोगाहइ, अइसयरसपसरसंजुयमपुव्‍वं।

तह तह पल्‍हाइ मुणी, नवनवसेवेगसद्धाओ।। 83।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-2)प्रवचन-32”

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