मौन का द्वार—(प्रवचन—दूसरा)
परमात्मा के संबंध में जितने असत्य कहे गए और गढ़े गए हैं, उतने और किसी चीज के संबंध में नहीं। परमात्मा के संबंध में जितना झूठ प्रचलित है, उतना किसी और चीज के संबंध में नहीं। परमात्मा के संबंध में जितने असत्य, जितने झूठ, जितनी कल्पनाएं प्रचलित हैं, उतनी किसी और चीज के संबंध में नहीं। और कुछ बात ऐसी है कि शायद परमात्मा के संबंध में सत्य कहा ही नहीं जा सकता है। जो भी कहा जाता है, वह कहने के कारण ही असत्य हो जाता है।
कुछ है, जिसे कहना संभव नहीं है। कुछ है, जिसे जाना जा सकता है, लेकिन कहा नहीं जा सकता। और आश्चर्य की बात है कि जिस परमात्मा के संबंध में कुछ भी नहीं कहा जा सकता, उसके संबंध में इतने शास्त्र लिखे गए हैं जिनका हिसाब लगाना मुश्किल है! Continue reading “जीवन रहस्य-(प्रवचन–02)”