सातवां-प्रवचन-(ओशो)
सत्य के अज्ञात सागर का आमंत्रण
मैं विचार करता हूं कि किस संबंध में आपसे बातें करूं! बातें इतनी ज्यादा हैं और दुनिया इतनी बातों से भरी है कि संकोच होना स्वाभाविक है। बहुत विचार हैं, बहुत उपदेश हैं! सत्य के संबंध में बहुत से सिद्धांत हैं! डर लगता है कि कहीं मेरी बातें भी उस बोझ को और न बढ़ा दें, जो मनुष्य के ऊपर वैसे ही काफी हैं।
बहुत संकोच अनुभव होता है। कुछ भी कहते समय डर लगता है कि कहीं वह बात आपके मन में बैठ न जाए। बहुत डर लगता है कि कहीं मेरी बातों को आप पकड़ न लें। बहुत डर लगता है कि कहीं वे बातें आपको प्रिय न लगने लगें, कहीं वे आपके मन में स्थान न बना लें। क्योंकि मनुष्य विचारों और सिद्धांतों के कारण ही पीड़ित और परेशान है। उपदेशों के कारण ही वह बंधा है और परतंत्र है। Continue reading “पथ की खोज-(प्रवचन-07)”