चिकलदरा शिविर-(प्रवचन-05)

चिकलदरा शिविर-प्रवचन-पांचवां

चित्त मुक्त हो, इस संबंध में कल सुबह हमने बात की। वह पहला चरण हैः स्वयं का विवेक जग सके, इस दिशा में। दूसरे चरण मेंः स्वयं का विवेक कैसे जागृत हो, किन विधियों, किन मार्गों से, भीतर सोई हुई विवेक शक्ति जाग जाए, इस संबंध में हम आज बात करेंगे। इसके पहले कि हम इस संबंध में विचार करना शुरू करें, एक अत्यंत प्राथमिक बात समझ लेनी जरूरी है और वह यह कि मनुष्य के भीतर केवल वे ही शक्तियां जागृत होती और सक्रिय, जिन शक्तियों के लिए जीवन में चुनौती खड़ी हो जाती है, चैलेंज खड़ा हो जाता है। वे शक्तियां सोई हुई ही रह जाती है, जिनके लिए जीवन में चुनौती नहीं होती। यदि किसी व्यक्ति को वर्षों तक आंखों का उपयोग न करना पड़ें, तो आंखों की जागी हुई शक्ति भी सो जाएगी। अगर किसी व्यक्ति को वर्षों तक पैरों से न चलना पड़ें, तो पैर भी पंगु हो जाएंगे। जीवन उन शक्तियों का निरोध कर देता है, जिन शक्तियों के लिए हम सक्रिय रूप से उपयोग नहीं करते। ठीक इसके विपरीत, जीवन उन शक्तियों को पैदा भी कर देता है, जिनके लिए चुनौती उपस्थित हो जाती है। Continue reading “चिकलदरा शिविर-(प्रवचन-05)”

चिकलदरा शिविर-(प्रवचन-04)

चिकलदरा शिविर-प्रवचन-चौथा

बहुत से प्रश्न मेरे समक्ष हैं। सबसे पहले तो यह पूछा गया है कि मेरी बातें अव्यावहारिक मालूम होती हैं। ठीक प्रतीत होती हैं, लेकिन अव्यावहारिक मालूम होती हैं।

यह ठीक से समझ लेना जरूरी हैं। मनुष्य के इतिहास में जो-जो हमें अव्यावहारिक मालूम पड़ा है, वही कल्याणप्रद सिद्ध हुआ है और जिसे हम व्यवहारिक समझते हैं, उसने ही हमें आश्चर्यजनक रूप से दुख में, हिंसा में और पीड़ा में डाला है। निश्चित ही जो आप कर रहे हैं वह आपको व्यवहारिक मालूम होता होगा, प्रेक्टिकल मालूम होता होगा, लेकिन उसका परिणाम क्या है आपके जीवन में। व्यवहारिक जो आपको मालूम पड़ता है आप कर रहे हैं, लेकिन उसका परिणाम क्या है? उसका परिणाम तो सिवाय दुख और चिंता के कुछ भी नहीं। Continue reading “चिकलदरा शिविर-(प्रवचन-04)”

चिकलदरा शिविर-(प्रवचन-03)

चिकलदरा शिविर-प्रवचन-तीसरा

मनुष्य के जीवन में, और जीवन के आनंद का कोई अनुभव नहीं होता, उसे बदलें, थोड़ी सी बात मैंने आपसे कहीं थी। आज सुबह अंधेपन का कौन सा मौलिक आधार है, उस पर हम बात करेंगे।

कई सौ वर्ष पहले, यूनान की सड़कों पर एक आदमी देखा गया था। भरी दोपहरी में सूरज के प्रकाश में भी वह हाथ में एक कंदील लिए हुए था। लोगों ने उससे पूछा कि यह क्या पागलपन है? इस कंदील को लेकर इस भरी दोपहरी में किसे खोज रहे हो? उस आदमी ने कहा, एक ऐसे आदमी की खोज करता हूं, जिसके पास आंखें हों। वह आदमी खड़ा उस समय का एक बहुत अद्भुत डायोजनीज, डायोजनीज को मरे हुए बहुत वर्ष हो गए, डायोजनीज जीवन भर वह लालटेन लिए हुए खोजता रहा उस आदमी को, जिसके पास आंखें हों। लेकिन उसे वह आदमी नहीं मिला। पीछे अमरीका में एक अफवाह उड़ी, कि डायोजनीज फिर लौट आया है और अमरीका में फिर लालटेन लिए हुए खोज रहा है। किसी ने उससे पूछा कि हजार डेढ़ हजार साल हो गए तुम्हें खोजते अब तक वह आदमी नहीं मिला, जिसके पास आंखें हो। Continue reading “चिकलदरा शिविर-(प्रवचन-03)”

चिकलदरा शिविर-(प्रवचन-01)

चिकलदरा शिविर के प्रवचन

पांच प्रवचनों का संकलन

(शायद किसी अन्य शीर्षक से प्रकाशित हुए हों)

चिकलदरा शिविर-प्रवचन-पहला

जो दिखाई पड़ जाए, उसका जीवन में प्रवेश हो जाता है। वह भी उतना महत्वपूर्ण नहीं है। उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कि जो जीवन में प्रविष्ट हो, वह आरोपित, जबरदती, चेष्टा और प्रयास से न हो, बल्कि ऐसे ही सहज हो जाए, जैसे वृक्षों में फूल खिलते हैं, या सूखे पत्ते हवाओं में उड़ जाते हैं, या छोटे-छोटे तिनके और लकड़ी के टुकड़े नदी के प्रवाह में बह जाते हैं। उतना ही सहज जीवन में उसका आगमन हो जाए, वह तो तीन दिनों में मैं चर्चा करूंगा, उसे आप समझने और सोचने की दिशा में सहयोगी बनेंगे। अभी आज की रात तो कुछ बहुत थोड़ी सी काल्पनिक बातें मुझे कहीं। लेकिन इसके पहले की मैं यह बातें करूं, यह भी आपसे निवेदन कर दूं। साधारणतया जो लोग भी धर्म और साधना में उत्सुक होते हैं, वे सोचते हैं, कि बहुत बड़ी-बड़ी बात करना महत्वपूर्ण है। मेरी दृष्टि भिन्न है, जीवन बहुत छोटी-छोटी बातों से बनता है, बड़ी बातों से नहीं और जो व्यक्ति भी बहुत बड़ी-बड़ी बातों की महत्ता के संबंध में गंभीर हो उठा है, वह महत्वपूर्ण से वंचित रह जाता है, अक्सर वंचित रह जाता है। उसे यह बात नहीं दिखाई पड़ पाती कि बहुत छोटे-छोटे तथ्यों से मिलकर जीवन बनता है। Continue reading “चिकलदरा शिविर-(प्रवचन-01)”

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