चिकलदरा शिविर-प्रवचन-पांचवां
चित्त मुक्त हो, इस संबंध में कल सुबह हमने बात की। वह पहला चरण हैः स्वयं का विवेक जग सके, इस दिशा में। दूसरे चरण मेंः स्वयं का विवेक कैसे जागृत हो, किन विधियों, किन मार्गों से, भीतर सोई हुई विवेक शक्ति जाग जाए, इस संबंध में हम आज बात करेंगे। इसके पहले कि हम इस संबंध में विचार करना शुरू करें, एक अत्यंत प्राथमिक बात समझ लेनी जरूरी है और वह यह कि मनुष्य के भीतर केवल वे ही शक्तियां जागृत होती और सक्रिय, जिन शक्तियों के लिए जीवन में चुनौती खड़ी हो जाती है, चैलेंज खड़ा हो जाता है। वे शक्तियां सोई हुई ही रह जाती है, जिनके लिए जीवन में चुनौती नहीं होती। यदि किसी व्यक्ति को वर्षों तक आंखों का उपयोग न करना पड़ें, तो आंखों की जागी हुई शक्ति भी सो जाएगी। अगर किसी व्यक्ति को वर्षों तक पैरों से न चलना पड़ें, तो पैर भी पंगु हो जाएंगे। जीवन उन शक्तियों का निरोध कर देता है, जिन शक्तियों के लिए हम सक्रिय रूप से उपयोग नहीं करते। ठीक इसके विपरीत, जीवन उन शक्तियों को पैदा भी कर देता है, जिनके लिए चुनौती उपस्थित हो जाती है। Continue reading “चिकलदरा शिविर-(प्रवचन-05)”