छठवां प्रवचन-अपने अज्ञान का स्वीकार
… बचपन से ही सुन रहा था कि पृथ्वी पर एक ऐसा नगर भी है जहां के सभी लोग धार्मिक हैं। बहुत बार उस धर्म-नगर की चर्चा, बहुत बार उस धर्म-नगर की प्रशंसा उसके कानों में पड़ी थी। जब वह युवा हुआ और राजगद्दी का मालिक बना, तो सबसे पहला काम उसने यही किया, कुछ मित्रों को लेकर वह उस धर्म-नगर की खोज में निकल पड़ा। उसकी बड़ी आकांक्षा थी उस नगर को देख लेने की। जहां कि सभी लोग धार्मिक हों, बड़ा असंभव मालूम पड़ता था यह। बहुत दिन की खोज, बहुत दिन की यात्राओं के बाद अंततः वह एक नगर में पहुंचा जो बड़ा अनूठा था। नगर में प्रवेश करते ही उसे दिखाई पड़े ऐसे लोग जिन्हें देख कर वह चकित हो गया और उसे विश्वास न आया कि ऐसे लोग भी कहीं हो सकते हैं! उस गांव का हर आदमी अपंग था। हर किसी का एक अंग काम करता है, े उसके ही परिणाम स्वरूप ये सारे लोग अपंग हो गए हैं। देखो, द्वार पर ऊपर लिखा हैः अगर तेरा बायां हाथ पाप करने को संलग्न हो, तो उचित है कि तू अपना बायां हाथ काट देना, बजाय इसके कि पाप करे। देखो, लिखा है द्वार परः अगर तेरी एक आंख तुझे गलत मार्ग पर ले जाए, तो अच्छा है उसे तू निकाल फेंकना, बजाय इसके कि तू गलत रास्ते पर जाए। इन्हीं वचनों का पालन करके यह पूरा गांव अपंग हो गया है। छोटे-छोटे बच्चे जो अभी द्वार पर लिखे इन अक्षरों को नहीं पढ़ सकते, उन्हें छोड़ दें, तो इस नगर में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो धर्म का पालन न करता हो और अपंग न हो गया हो। Continue reading “अमृत वर्षा-(प्रवचन-06)”