इक्कीसवां समापन प्रवचन
सहजै सहजै सब गया
दिनांक 08 अगस्त, १९७४; प्रातःकाल, श्री रजनीश आश्रम, पूना
कथा:
ओशो, आपने इस प्रवचनमाला का आरंभ संत कबीर के पदः सहज समाधि भली के विशद उदघाटन से शुरू किया था। इसलिए इस समापन के दिन हम आपसे प्रार्थना करेंगे कि कबीर के कुछ और पदों का अभिप्राय हमें समझाएंः
सहज सहज सब कोइ कहै, सहज न चीन्है कोइ।
जा सहजै साहब मिलै, सहज कहावै सोइ।।
सहजै सहजै सब गया, सुत वित काम निकाम।
एकमेक ह्वै मिली रह्या, दास कबीरा नाम।।
जो कछु आवै सहज में, सोइ मीठा जान।
कडुवा लागै नीम-सा, जामें ऐंचातान।
सहज मिलै सो दूध सम, मांगा मिलै सो पानि।
कह कबीर वह रक्त सम, जामें ऐंचातानि।। Continue reading “सहज समाधि भली-(प्रवचन-21)”