कुरान-ए- शरीफ:-(068)

कुरान शरीफ:-ओशो की प्रिय पुस्तके

इस्‍लाम उस परंपरा का हिस्‍सा है जिससे यहूदी और ईसाई धर्म पैदा हुआ। उसे इब्राहीम का धर्म कहते है। इब्राहीम का बेटा था इस्माइल। इब्राहीम को दूसरी पत्‍नी सारा से एक बेटा हुआ—इसाक। सारा के सौतेले पन से इस्माइल को बचाने की खातिर इब्राहीम इस्माइल को लेकर अरेबिया के एक गांव मक्‍का चले गए। उनके साथ एक इजिप्‍त का गुलाम हगर भी था। इब्राहीम और इस्माइल ने मिलकर क़ाबा का पवित्र आश्रम बनाया। ऐसा माना जाता था कि क़ाबा आदम का मूल आशियाना था। काबा में एक पुराना धूमकेतु गिरकर पत्‍थर बन गया था। कुरान के जिक्र के मुताबिक अल्‍लाह ने इब्राहीम को हुक्‍म दिया कि काबा को तीर्थ स्‍थान बनाया जाये। काबा में बहुत सी पुरानी मूर्तियां भी थी। जिन्‍हें अल्‍लाह की बेटियाँ कहा जाता था। उन देवताओं को काबा के पत्‍थर से ताकत मिलती थी। Continue reading “कुरान-ए- शरीफ:-(068)”

दि सर्मन ऑन दि माउंट—(067)

दि सर्मन ऑन दि माउंट—ओशो की प्रिय पुस्तके

ये सूत्र ईसाई धर्म ग्रंथ ‘’पवित्र बाइबल’’ का एक अंश हे। बाइबल, अंत: प्रज्ञा से परि पूर्ण विभिन्‍न व्‍यक्‍तियों के वक्‍तव्‍यों का संकलन है। जो लगभग सौ साल की अवधि में संकलित किया गया। जैसे जोशुआ, सैम्‍युएल, सेंट मैथ्‍यूज इत्‍यादि। जीसस जब सत्‍य को उपलब्‍ध हुए तब उन्‍होंने अपना सत्‍य लोगों को संप्रेषित करना चाहा। समय-समय पर भिन्‍न-भिन्‍न समूह के साथ उनका जो उद्बोधन हुआ वह सब बायबल में संकलित है। ये वक्‍तव्‍य उनके शिष्‍यों ने अपनी स्‍मृति के अनुसार संकलित किये है।

बाइबल के दो हिस्‍से है: दि ओल्‍ड टैस्टामैंट ओ दि न्‍यू टैस्टामैंट। ‘’सर्मन ऑन दि माउंट’’ न्‍यू टैस्टामैंट में ग्रंथित है जो सेंट मैथ्‍यू ने संकलित किया है। Continue reading “दि सर्मन ऑन दि माउंट—(067)”

लॉग पिलग्रिमेज-(शिवपुरी बाबा)-066

दि लाईफ ऐंड टीचिंग ऑफ श्री गोविंदान्‍द भारती-(नान एक शिवपुरी बाबा)

ओशो की प्रिय पुस्तके

कभी-कभी किसी सिद्ध पुरूष के बारे में ऐसा घटता है कि उनकी देशना से भी अधिक प्रभावशाली होता है उनका जीवन। जो पहुंचे वे बात तो एक ही कहते है क्‍योंकि सबका अंतिम अनुभव एक जैसा होता है। लेकिन जिस राह से सयाने पहुँचे है वे राहें अलग होती है। शिवपुरी बाबा इसी कोटि के योगी है जिनके जीवन का वर्णन करने के लिए एक ही शब्‍द काफी है: ‘’अद्भत’’

केरल प्रांत, सन् 1826, एक ब्राह्मण परिवार में जुड़वाँ बच्‍चे पैदा हुए उनमें एक लड़का और एक लड़की। यह परिवार नंबुद्रीपाद ब्राह्मण था। याने कि उसी जाति का जिसके आदि शंकराचार्य थे। वह लड़का पैदा होते ही मुस्‍कुराया, रोया नहीं। उसके दादा उच्‍युत्‍म विख्‍यात ज्‍योतिषी थे। उन्‍होंने बालक की कुंडली देखकर बताया कि कोई बहुत बड़ा योगी पैदा हुआ है। उसका नाम रखा गया गोविन्‍दा। जब वह 18 साल का हुआ तो उसके दादा ने संन्‍यास लिया और वे वन की और प्रस्‍थान करने को तैयार हुए। उस समय गोविन्‍दानंद ने उनके साथ जाने की तैयारी की। Continue reading “लॉग पिलग्रिमेज-(शिवपुरी बाबा)-066”

समयसार-(आचार्य कुन्‍दकुन्‍द)-065

समयसार—आचार्य कुन्‍दकुन्‍द

(ओशो की प्रिय पुस्‍तकें)

दिगम्‍बर जैन संप्रदाय का महान ग्रंथ समयसार जैन परंपरा के दिग्‍गज आचार्य कुन्द कुन्द द्वारा रचित है। दो हजार वर्षों से आज तक दिगम्‍बर साधु स्‍वयं को कुन्‍कुन्‍दाचार्य की परंपरा का कहलाने का गौरव अनुभव करते है।

जैसी की भारत की अध्‍यात्‍मिक परंपरा रही है, अध्‍यात्‍म-ग्रंथों के रचेता स्‍वयं के व्‍यक्‍तिगत जीवन के संबंध में कभी-कभी उल्‍लेख नहीं करते। आचार्य कुन्‍दकुन्‍द भी उसके अपवाद नहीं है। चूंकि उनकी कोई ऐतिहासिक जानकारी नहीं है। उनके बारे में विभिन्‍न कथाएं प्रचलित है। उन कथाओं में ऐतिहासिक तथ्‍य चाहे कम हों, लेकिन सत्‍य बहुत है। कथाओं में वर्णित आलेखों तथा कुछ शिलालेखों को जोड़ कर जो कहानी बनती है वह इस प्रकार है: Continue reading “समयसार-(आचार्य कुन्‍दकुन्‍द)-065”

गॉड स्‍पीक्‍स-(मेहर बाबा)-064

गॉड स्‍पीक्‍स—मेहर बाबा

ओशो की प्रिय पुस्तके

यह एक अदभुत किताब है जो मौन से प्रगट हुई है। जो व्‍यक्‍ति आजीवन निःशब्द में डूबा हुआ था उसने उस परम मौन को और परात्‍पर की अनुभूति को शब्‍दों में ढाला है।

यह जिक्र हो रहा है बीसवीं सदी के प्रारंभ में हुए विश्‍व विख्‍यात संत मेहर बाबा का। उनकी किताब ‘’गॉड स्‍पीक्‍स’’ ओशो की मनपसंद किताबों में शामिल है। Continue reading “गॉड स्‍पीक्‍स-(मेहर बाबा)-064”

दी कन्‍फेशन्‍स ऑफ सेंट ऑगस्‍टीन-(063)

दी कन्‍फेशन्‍स ऑफ सेंट ऑगस्‍टीन-ओशो की प्रिय पुस्तके

संत अगस्‍तीन एक महान संत और बिशप था। जो सन 354 में न्‍यूमिडिया में पैदा हुआ जिसे अब अल्‍जीरिया कहते है।

अगस्‍तीन के पिता जमीदार थे। और पेगन (गैर-धार्मिक) थे। अगस्‍तीन की मां मोनिका का प्रभाव उन पर अधिक था। कन्‍फेशन्‍स में मोनिका का जिक्र बार-बार आता है। और कुछ परिच्‍छेद तो केवल उसी के बारे में है। मोनिका की बदौलत अगस्‍तीन ईसाई धर्म में शिक्षित हुआ। अगस्‍तीन एक मेधावी युवक था। इसलिए उसके पिता उसे वकील बनाना चाहते थे। वह जब अठारह साल का हुआ तो पिता ने उसे कार्थाज नामक एक बड़े शहर में उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त करने के लिए भेज दिया। लेकिन वहां पर उस मायावी नगरी के मोह जाल में फंस गया और एक स्‍त्री के साथ अनैतिक संबंध बना बैठा। यह संबंध पंद्रह साल तक चला। और उस स्‍त्री से उसे ऐ बैटा भी पैदा हुआ। जिसे अगस्‍तीन ‘’मेरे पाप का फल’’ कहते है। इस समय उनकी उम्र उन्‍नीस साल थी। Continue reading “दी कन्‍फेशन्‍स ऑफ सेंट ऑगस्‍टीन-(063)”

लाइट ऑन का पाथ–(062)

लाइट ऑन का पाथ–(मेबिल कॉलिन्‍स) ओशो की प्रिय पुस्तके

न दिनों लेखकों को उनके लेखन के लिए पुरस्‍कार नहीं दिया जाता था। नोबेल पुरस्‍कार या साहित्‍य अकादमियां किसी के ख्‍याल में नहीं थी। क्‍योंकि रचना क्रम में लेखक सिर्फ एक वाहक था। ज्ञान तो आस्‍तित्‍व में भरा पडा है। उससे थोड़ा सुर साध लिया बस।

‘’लाईट ऑन दा पाथ’’ याने राह की रोशनी। रोशनी को मानव समाज के बीच लाने के लिए बहाना बनी मेबिल कॉलिन्‍सएक अंग्रेज महिला जो थियोसाफी आंदोलन की एक सदस्‍य थी। उन्नीस वीं सदी के मध्‍य में और बीसवीं सदी के दूसरे-तीसरे दशक तक पश्‍चिम में थियोसाफी जीवन दर्शन का बहुत प्रभाव था। थियोसाफी की जन्‍म दाता मैडम ब्‍लावट्स्‍की एक रशियन रहस्य दर्शी थी। उसके पास अतींद्रिय शक्‍ति थी और वह अशरीरी सद गुरूओं के आदेशों का पालन कर सकती थी। Continue reading “लाइट ऑन का पाथ–(062)”

राबिया बसरी के गीत—(061)

राबिया-बसरी के गीत-(ओशो की प्रिय पुस्तके)

स किताब का नाम लिए बिना ओशो ने राबिया के गीतो को अपनी पसंदीदा किताबों की फेहरिस्‍त में रखा है। इसी फहरिस्‍त में मीरा भी आती है। जिसे ओशो बहुत ‘मीठी’ कहते है। और राबिया को ‘नमकीन’। और इसी तुलना के ऊपर एक मजाक भी कहते है: मुझे डायबिटीज है, इसलिए मीरा को तो मैं बहुत ज्‍यादा खा या पी नहीं सकता। लेकिन राबिया चलेगी—नमक तो में जितना चाहे ले सकता हूं। शायद फकीरों में राबिया वह अकेली औरत है जिसकी कहानियां ओशो के प्रवचनों में बार—बार सुनाई देती है। दरअसल खोज की तो पाया कि ओशो ऐसी कोई किताब ही नहीं है, जिसमें राबिया का जिक्र न आया हो; ऐसा दूसरा नाम केवल बुद्ध का है।

राबिया 713 इस्‍वी में इराक के बसरा शहर में पैदा हुई थी। हजरत मुहम्‍मद और राबिया के बीच लगभग कोई सौ साल का ही फासला है। इसीलिए सबसे पहले हुई सूफी नारी राबिया है। और यह भी कहा जाता है कि प्रेम के मार्ग का प्रारंभ राबिया से होता है। Continue reading “राबिया बसरी के गीत—(061)”

दि स्‍प्रिचुअल टीचिंग ऑफ-(060)

दि स्‍प्रिचुअल टीचिंग ऑफ—रमण महर्षि-(ओशो की प्रिय पुस्‍तके) 

श्री रमण महर्षि बीसवीं सदी के प्रारंभ में तमिलनाडु के एक पर्वत अरुणाचल पर रहते थे। परम ज्ञान को उपलब्ध रमण महर्षि भगवान कहलाते थे। अत्यंत साधारण जीवन शैली को अपनाकर वे सादगी से जीवन बिताते थे। उनका दर्शन केवल तीन शब्दों में समाहित हो सकता है : ‘मैं कौन हूं?’ यही उनकी पूरी खोज थी, यही यात्रा और यही मंजिल। अधिकतर मौन रहनेवाले रमण महर्षि के बहुत थोड़े से बोल शिष्यों के साथ संवाद के रूप में उपलब्ध हैं। ऐसी तीन छोटी—छोटी पुस्तिकाओं का इकट्ठा संकलन है : ‘दि स्पिरिचुअल टीचिंग ऑफ रमण महर्षि।’ Continue reading “दि स्‍प्रिचुअल टीचिंग ऑफ-(060)”

सेवन पोर्टलस आफ़ समाधि-(059)

सेवन पोर्टलस आफ़ समाधि:-मैडम ब्‍लावट्स्‍की—(ओशो की प्रिय पुस्तके) 

(हवा का एक झोंका है ब्‍लावट्स्‍की। और कोई उससे बहुत महानतर शक्‍ति उस पर आविष्‍ट हो गई है: और वह हवा का झोंका उस सुगंध को ले आया है।)

इस जगत में जो भी जाना लिया जाता है। वह कभी खोता नहीं है। ज्ञान के खोने का कोई उपाय नहीं है। न केवल शास्‍त्रों में संरक्षित हो जाता है ज्ञान, वरन और भी गुह्म तलों पर ज्ञान की सुरक्षा और संहिता निमित होती है। शास्‍त्र तो खो सकते है। और अगर सत्‍य शास्‍त्रों में ही हो तो शाश्‍वत नहीं हो सकता। शास्‍त्र तो स्‍वयं भी क्षणभंगुर है। इसलिए शास्‍त्र संहिताएं नही है। इस बात को ठीक से समझ लेना जरूरी है। तभी ब्‍लावट्स्‍की की यह सूत्र पुस्‍तिका समझ में आ सकती है। Continue reading “सेवन पोर्टलस आफ़ समाधि-(059)”

लीव्‍स ऑफ ग्रास: (वॉल्‍ट विटमैन)-058

लीव्‍स ऑफ ग्रास: (वॉल्‍ट विटमैन)-ओशो की प्रिय पुस्तके

जुलाई 1855, वॉल्‍ट विटमैन छत्‍तीस साल का रहा होगा। जब उसकी ‘लीव्‍स ऑफ ग्रास’का प्रथम संस्‍करण छपा। यदि वह तारीख चार जुलाई ‘अमेरिका का स्‍वतंत्रता दिवस’ नहीं रही होगी तो होनी चाहिए। उस दिन विटमैन ने न केवल पत्रकारिता के अपने अभूतपूर्व व्‍यवसाय से, स्‍वच्‍छंद लिखने से और तुकबंदी से बल्‍कि साहित्‍य की उन परंपराओं से जो साहित्‍य को लोकतंत्र के कालवाह्मा बनाती है। स्‍वतंत्र होने की घोषणा की। विटमैन ने ऐसी कविता लिख जिसके व्‍यापक आकार और कल्‍पना में उन अमरीकी लोगों के जीवन की और व्‍यवसाय की झलक थी जिनके पास कविता पढ़ने की फुरसत नहीं थी। Continue reading “लीव्‍स ऑफ ग्रास: (वॉल्‍ट विटमैन)-058”

मिस्‍टर एकहार्ट-रहस्‍य सूत्र—(057)

मिस्‍टर एकहार्ट के रहस्‍य सूत्र—(ओशो की प्रिय पुस्तकें)

एक हार्ट बहुत करीब था। एक कदम और, और संसार का अंत आ जाता—उस पार का लोक खुल जात।

     एक हार्ट जर्मन का सबसे रहस्यपूर्ण और ग़लतफ़हमियों से घिरा रहस्‍यदर्शी है। एक सदी पहले तक जर्मन रोमांटिक आंदोलन के द्वारा मिस्‍टर एकहार्ट को, ‘’एक अर्ध रहस्‍यवादी चरित्र’’  समझा जाता था। न तो उसके जन्‍म की तारीख मालूम थी, न स्‍थान। जर्मनी में किसी कब्र पर उसका नाम दिवस खुदा नहीं था। कुछ छुटपुट तथ्‍यों की जानकारी थी—मसलन वह परेसा में पढ़ा, सन 1402 में डाक्‍टर ऑफ थियॉलॉजी की उपाधि प्राप्‍त की, जर्मनी के स्‍टैसवर्ग शहर में वह उपदेशक था। 1322 में कालोन के एक विद्यापीठ में उसे ससम्‍मान आमंत्रित किया गया। और पीठाधीश बनाया गया। तब तमक एकहार्ट अपने रहस्‍यवाद से ओतप्रोत प्रवचनों के लिए प्रसिद्ध हो चुका था। कालोन के आर्चबिशप को रहस्यवाद से चिढ़ थी। उसे उसमें बगावत की बू नजर आती थी। 1326 में उसने एकहार्ट पर मुकदमा दायर किया। उस पर इलजाम था, वह सामान्‍य जनों में खतरनाक सिद्धांत फैल रहा है। Continue reading “मिस्‍टर एकहार्ट-रहस्‍य सूत्र—(057)”

अन्‍ना कैरेनिना:-लियो टॉलस्टॉय-(056)

अन्‍ना कैरेनिना: लियो टॉलस्टॉय (ओशो की प्रिय पुस्‍तकें)

जीवन के शाश्‍वत, अबूझ रहस्‍यों और विरोधाभासों को सुलझाने का एक ललित प्रयास—

     अन्‍ना कैरेनिना रशियन समाज की एक संभ्रांत महिला की कहानी है। जो अनैतिक प्रेम संबंध जोड़कर अपने आपको बरबार कर लेती है। इस उपन्‍यास में टॉलस्‍टॉय कदम-कदम पर यह दिखाता है कि समाज कैसे स्‍त्री और पुरूष के विषय में दोहरे मापदंड रखता है। अन्‍ना के सगा भाई ऑब्‍लान्‍स्‍की के अनैतिक प्रेम संबंध होते है, और न केवल वह अपितु उसके स्‍तर के कितने ही पुरूष खुद तो पत्‍नी से धोखा करते है, लेकिन अपनी पत्‍नियों से वफादारी की मांग करते है। समाज चाहता है कि पत्‍नी अपने पति की बेवफाई को भूल जाये और उसे माफ कर दे। Continue reading “अन्‍ना कैरेनिना:-लियो टॉलस्टॉय-(056)”

एरिस्‍टोटल्‍स थियोरी ऑफ पोएट्री एंड फाइन आर्ट—(055)

एरिस्‍टोटल्‍स थियोरी ऑफ पोएट्री एंड फाइन आर्ट—(ओशो की प्रिय पुस्‍तकें)

’कविता और कला के संबंध में एरिस्‍टोटल का सिद्धांत।‘’ यह शीर्षक ही विरोधाभासी मालूम होता है। कविता और कला दोनों ही सूक्ष्‍म तत्‍व है। वायवीय है, उनका सिद्धांत कैसे हो सकता है। और वह भी एरिस्‍टोटल जैसे तर्कशास्‍त्री द्वारा।

काव्‍य का शास्‍त्र लिखने की परंपरा नई नहीं है। और न ही केवल पश्‍चिम की है। भारत में भी कश्मीरी पंडित मम्‍मट ने काव्‍य शास्‍त्र लिखा था। वह संस्‍कृत भाषा में है। और बड़ा रसपूर्ण है, क्‍योंकि संक्षिप्‍त सूत्रों में गूंथा हुआ है। उसका पहला ही सूत्र है: ‘’रसों आत्‍मा काव्यत्व‘’ रस काव्‍य की आत्‍मा। इसकी तुलना में एरिस्‍टोटल का पोएटिक्‍स गंभीर है, लेकिन उसकी बारीक बुद्धि ने काव्‍य और नाटक की गहराई में प्रवेश कर उनके एक-एक पहलुओं को उजागर कर दिया है। उसकी यह कलाकारी अपने आप में एक सुंदर रचना शिल्‍प है। इस संबंध में हमें कुछ बातें ख्‍याल में लेनी चाहिए। Continue reading “एरिस्‍टोटल्‍स थियोरी ऑफ पोएट्री एंड फाइन आर्ट—(055)”

एनेलेक्‍टस ऑफ कन्फ्यूशियस-(054)

एनेलेक्‍टस ऑफ कन्फ्यूशियस—ओशो की प्रिय पुस्तकें

कन्फूशियस चीन के प्राचीन और प्रसिद्ध दार्शनिकों में से एक है। जैसा कि सभी प्राचीन पौर्वात्‍य व्‍यक्‍तियों के साथ हुआ है, इतिहास में उसके जन्‍म और मृत्‍यु की कोई सुनिश्‍चत तारीख दर्ज नहीं है। जो भी उपलब्‍ध है वह केवल अनुमान है। कन्‍फ्यूशियस का जीवन काल ईसा पूर्व 551-479 बताया जाता है। कुछ इतिहासविद् उससे सहमत है, कुछ नहीं। जो भी हो, उसके जैसे व्‍यक्‍तियों के वचन महत्‍वपूर्ण होते है, उनका इतिहास या भूगोल नहीं। उसके जीवन के संबंध में जो भी आंशिक जानकारी इधर-उधर उपलब्‍ध है उसे जोड़कर जो चित्र बनता है वह यह कि कन्‍फ्यूशियस सामान्‍य परिवार में पैदा हुआ, वह विवाहित था। जीते जी उसकी ख्‍याति एक विद्वान और सर्वज्ञ ऋषि के रूप में फैल चुकी थी। और वह लगातार उसका खंडन करता था। वह इसका इन्‍कार करता था कि वह उसके पास कोई विशेष ज्ञान है। उसके मुताबिक उसके पास जो असाधारण बात थी वह थी सत्तत सीखने की प्‍यास। सुदूर अतीत में जो दिव्‍य शास्‍ता थे उनके आगे वह स्‍वयं को नाकुछ मानता था। Continue reading “एनेलेक्‍टस ऑफ कन्फ्यूशियस-(054)”

दि बुक ऑफ ली तज़ु—(053)

दि बुक ऑफ ली तज़ु—(ओशो की प्रिय पुस्‍तकें)

कन्‍फ्यूशियन दर्शन के बाद, ताओ वाद की बहुत बड़ी दार्शनिक परंपरा है। ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में ताओ दर्शन प्रौढ़ हुआ। और तभी से ताओ ग्रंथों में किसी ली तज़ु नाम के रहस्‍यदर्शी का उल्‍लेख पाया जाता है। जी तज़ु जो हवाओं पर सवार होकर यात्रा करता था। उसकी ऐतिहासिकता भी संदिग्‍ध है। पता नहीं उसका समय क्‍या था। कुछ सुत्रों के अनुसार वह ईसा पूर्व 600 में हुआ, और कुछ कहते है 400 में पैदा हुआ। ली तज़ु एक व्‍यक्‍ति भी है, और दर्शन भी। कहते है ली तज़ु पु-तिएन शहर में रहता था। और चालीस साल तक किसी ने उसकी दखल नहीं ली। और राज्‍य के उच्‍च पदस्‍थ और राजसी परिवार के लोग उसे सामान्‍य आदमी समझते थे। चेंग में सूखा पडा और ली तज़ु ने वेइ जाने का फैसला लिया। Continue reading “दि बुक ऑफ ली तज़ु—(053)”

मुल्‍ला नसरूद्दीन कौन था-(052)

मुल्‍ला नसरूद्दीन कौन था—(ओशो की प्रिय पुस्‍तकें)

कई देश मुल्‍ला नसरूद्दीन को पैदा करने का दावा करते है। टिर्की में तो उसकी कब्र तक बनी हुई है। और हर साल वहां नसरूद्दीन उत्‍सव मनाया जाता है। उस उत्‍सव में मुल्‍ला जैसी पोशाक पहनकर लोग उसके क़िस्सों को अभिनीत करते है। एस्‍किशहर उसका जन्‍म गांव बताया जाता है।

ग्रीन लोग नसरूद्दीन के क़िस्सों को अपनी लोककथा का हिस्‍सा बनाते है। मध्‍ययुग में नसरूदीन के क़िस्सों का उपयोग तानाशाह अधिकारियों का मजाक उड़ाने के लिए किया जाता था। उसके बाद मुल्‍ला नसरूदीन सोवियत यूनियन का लोक नायक बना। एक फिल्‍म में उसे देश के दुष्‍ट पूंजीवादी शासकों के ऊपर बाजी मारते हुए दिखाया गया था। Continue reading “मुल्‍ला नसरूद्दीन कौन था-(052)”

ट्रैक्‍टेटस लॉजिको-फिलोसफिकस-(051)

ट्रैक्‍टेटस लॉजिको—फिलोसफिकस (ओशो की प्रिय पुस्‍तकें)

विटगेंस्‍टीन ऑस्‍टिया के वियना शहर में एक रईस खानदान में पैदा हुआ। उसके पिता उद्योगपति थे उनके पास धन का अंबार था। अंत: विटगेंस्‍टीन को उसके सात भाई-बहनों के साथ उच्‍च कोटि की शिक्षा मिली। उसकी मां और पिता दोनों ही संगीतज्ञ थे और अत्‍यंत सुसंस्‍कृत थे।

इंजीनियरिंग तथा गणित को सीखने के लिए विटगेंस्‍टीन 1908 में इंग्‍लैड गया। वह बहुत ही मेधावी छात्र था और हर सिद्धांत का खुद प्रयोग करने में विश्‍वास रखता था। 1903 में बर्ट्रेंड रसेल की विख्‍यात किताब ‘’प्रिंसिपल ऑफ मैथेमेटिक्‍स’’ प्रकाशित हुई थी। तो विटगेंस्‍टीन सहज ही रसेल की और खिंचा चला आया। 1911 में वह केंब्रिज जाकर रहने लगा जो कि रसेल का ठिकाना था। विटगेंस्‍टीन रसेल का विद्यार्थी बन गया। सामान्‍यतया बर्ट्रेंड रसेल किसी विद्यार्थी से प्रभावित नहीं होता था—उसकी अपनी प्रतिभा इतनी बुलंद थी कि उसने सामने सभी बौने लगते थे। Continue reading “ट्रैक्‍टेटस लॉजिको-फिलोसफिकस-(051)”

लस्‍ट फॉर लाइफ-(विंसेंट वैनगो)-050

लस्‍ट फॉर लाइफ—विंसेंट वैनगो-(ओशो की प्रिय पुस्‍तकें)

यह कहानी है उत्‍तप्‍त भावोन्‍मेष की, सृजन के विवश करनेवाले विस्‍फोट की; प्रसिद्ध डच चित्रकार विंसेंट बैन गो की जो अपनी ही प्रतिभा की आग में जीवन भर जलता रहा और अंतत: उसी में  जलकर भस्‍मसात हो गया।

     अजीब किस्‍मत लेकिन पैदा हुआ यह प्रतिभाशाली, बदसूरत कलाकार। हॉलैंड के प्रतिष्‍ठित वैनगो परिवार में जन्‍मा वैनगो बंधु योरोप के उच्‍च वर्गीय, ख्‍यातिलब्‍ध चित्रों के सौदागर और प्रदर्शक थे। पूरे योरोप में उनकी अपनी आर्ट गैलरीज थी। छह भाईयों में से दो धर्मोपदेशक थे। उनमें से एक धर्मोपदेशक भाई की संतान थी विंसेंट और थियो। थियो विंसेंट से दो साल छोटा था। थियो समाजिक रस्मों रिवाज के मुताबिक चलने वाला, अपने व्‍यवसाय में सफल आर्ट डीलर था। विंसेंट उससे ठीक उलटा। समाज के तौर तरीके, शिष्‍टाचार उसे कभी रास नहीं आते थे। संभ्रांत व्‍यक्‍तियों दंभ और नकलीपन से बुरी तरह बौखला जाता था। और उसी समय प्रतिक्रिया करता। Continue reading “लस्‍ट फॉर लाइफ-(विंसेंट वैनगो)-050”

प्रिंसिपिया एथिका-(जी. इ. मूर)-049

प्रिंसिपिया एथिका—जी. इ. मूर—(ओशो की प्रिय पुस्‍तकें)

आधुनिक दर्शन शास्‍त्र के विकास में जी. ई मूर का योगदान उतना ही महत्‍वपूर्ण है! जितना कि बर्ट्रेंड रसेल का। उसकी बहुत कम रचनाएं प्रकाशित हुई। और ‘’प्रिंसिपिया एथिका’’ उनमें से सर्वप्रथम और सर्वाधिक प्रसिद्ध किताब है।

अंग्रेजी साहित्‍य और चिंतन पर उसका प्रभाव विचारणीय है। बर्ट्रेंड रसेल ने इस किताब के बारे में लिखा, ‘’इसका हमारे ऊपर (कैम्ब्रिज में) जो प्रभाव पडा, और इसे लिखने से पहले और बाद में जो व्‍याख्‍यान हुआ उसने हर चीज को प्रभावित किया। हमारे लिए वह विचारों और मूल्यों का बहुत बड़ा स्‍त्रोत था। लॉर्ड केन्‍स का तो मानना था कि यह किताब प्लेटों से भी बेहतर है। Continue reading “प्रिंसिपिया एथिका-(जी. इ. मूर)-049”

बीइंग एंड टाईम-(मार्टिन हाइडेगर)—48

बीइंग एंड टाईम-(मार्टिन हाइडेगर)—ओशो की प्रिय पुस्‍तकें

कभी-कभार कोई ऐसी किताब प्रकाशित होती है। जो बुद्धिजीवियों की जमात पर टाइम-बम का काम करती है। पहले तो उसकी अपेक्षा की जाती है लेकिन जैसे-जैसे मत बदलते है वह लोगों का ध्‍यान आकर्षित करने लगती है। ऐसी किताब है जर्मन दार्शनिक मार्टिन हाइडेगर द्वारा लिखित ‘’बीइंग एंड टाईम’’

इसका प्रभाव न केवल यूरोप और अमेरिका के दर्शन पर हुआ बल्‍कि वहां के साहित्‍य और मनोविज्ञान पर भी हुआ। इसके प्रशंसक तो यहां तक कहते है कि उसने आधुनिक विश्‍व का बौद्धिक नक्‍शा बदल दिया। सार्त्र, मार्टिन वूबर, और कामू जैसे अस्‍तित्‍ववादी दार्शनिक हाइडेगर से बहुत प्रभावित थे। यह किताब पहली बार 1927 में प्रकाशित हुई। चूंकि हाइडेगर जर्मन लोगों के लिए बेबूझ था। Continue reading “बीइंग एंड टाईम-(मार्टिन हाइडेगर)—48”

उमर ख्‍याम की रूबाइयां—047

उमर ख्याम की रूबाईया-(उमर ख्याम)-ओशो की प्रिय पुस्तके

उमर ख्‍याम  सुंदरी, शराबी, इश्‍क के बारे में लिखता है। उसे पढ़कर लगता है, यह आदमी बड़े से बड़ा सुखवादी होगा। उसकी कविता का सौंदर्य अद्वितीय है। लेकिन वह आदमी ब्रह्मचारी था। उसने कभी शादी नहीं की, उसका कभी किसी से प्रेम नहीं हुआ। वह कवि भी नहीं था। गणितज्ञ था। वह सूफी था। जब वह सौंदर्य के संबंध में लिखता तो ऐसा लगता कि वह स्त्री के सौंदर्य के बारे में लिख रहा है। नहीं, वह परमात्‍मा के सौंदर्य का बखान कर रहा है।

…..पर्शियन भाषा में उसकी किताबों में चित्र बनाये हुए है और अल्‍लाह को साकी के रूप में चित्रित किया गया है—एक सुंदर स्‍त्री हाथ में सुराही लेकिर शराब ढाल रही है। सूफी शराब को प्रतीक की तरह इस्‍तेमाल करते है। जो इंसान अल्‍लाह से इश्‍क करता है उसे अल्‍लाह एक तरह की मस्‍ती देता है जो उसे बेहोश नहीं करती बल्‍कि होश में लाती है। एक मदहोशी जो उसे नींद से जगाती है। Continue reading “उमर ख्‍याम की रूबाइयां—047”

लिसन-लिटल मैन-(विलहम रेेक)-46

लिसन-लिटल मैन—(विलहम रेक)-ओशो की प्रिय पुस्‍तकें

ऑर्गोन इंस्टिट्यूट की आर्काइव्‍ज का एक दस्तावेज ‘’लिसन लिटल मैन’’ एक मानवीय पुस्‍तक है, वैज्ञानिक नहीं। यह ऑर्गोन इंस्टिट्यूट के आर्काइव्‍ज के लिए 1945 की गर्मी में लिखी गई थी। इसे प्रकाशित करने का कोई इरादा नहीं था। यह एक (Natural scientist) प्राकृतिक वैज्ञानिक और चिकित्‍सक के अंतर्द्वंद्व और आंतरिक आंधी तूफ़ानों का परिमाण है। इस वैज्ञानिक ने बरसों तक पहले भोलेपन से, फिर आश्‍चर्य से और अंतत: भय से देखा है कि सड़क पर जानेवाला छोटा आदमी अपने साथ क्‍या करता है। कैसे वह दुःख झेलता है। और विद्रोह करता है; कैसे वह अपनी दुश्‍मनों को सम्‍मान करकता है और दोस्‍तों की हत्‍या करता है। कैसे जब भी उसे लोक प्रतिनिधि बनने की ताकत मिलती है वह इस ताकत का गलत उपयोग कर उससे क्रूरता ही पैदा करता है। इससे पहले उच्‍च वर्ग के पर पीड़कों ने उसके साथ जो किया है। उससे यह क्रूरता अधिक भंयकर होती है। Continue reading “लिसन-लिटल मैन-(विलहम रेेक)-46”

दि सूफीज़-(इदरीस शाह)-045

दि सूफीज़—(इदरीस शाह)-ओशो की प्रिय पुस्‍तकें

The Way of the Sufi-Idries Shah

समुंदर ने पूछा किसी ने कि ‘’तुम नीला रंग क्‍यों पहले हुए हो ? यह तो मातम का रंग है। और तुम निरंतर उबलते क्‍यों रहते हो ? वह कौन सी आग है जो तुम्‍हें उबालती है ? समुंदर ने कहा, ‘’मेरे महबूब से बिछुड़ कर में उदास हूं इसलिए नीला पड़ गया हूं, और वह प्‍यार की आग है जिससे मैं खोलता रहता हूं।‘’

     यह है सूफी तरीका। सीधा सी बात को प्रतीक रूप में कहना और उस कहने में अर्थों के समुंदर को उंडेलना सूफियाना अंदाज है।

सूफियों की जीवन शैली, उनके तौर-तरीकों के बारे में अगर सब कुछ एक साथ जानना हो तो इस किताब की सैर करें। रहस्‍य के पर्दे में ढँके सूफियों को दिन के उजाले में लाने  का महत्‍वपूर्ण काम इदरीस शाह ने किया है। Continue reading “दि सूफीज़-(इदरीस शाह)-045”

बालशेम तोव—(हसीद)-044

बालशेम तोव—(हसीद दर्शन)-ओशो की प्रिय पुस्तके 

The Baal Shem Tov-Tzavaat HaRivash

हसीद की धारा कुछ चंद रहस्यदर्शीयों की रहस्‍यपूर्ण गहराइयों से पैदा हुई है। बालशेम उनमें सबसे प्रमुख है। हमीद पंथ का जा भी दर्शन है वह शाब्‍दिक नहीं है, बल्‍कि उसके रहस्यदर्शीयों के जीवन में, उनके आचरण में प्रतिबिंबित होता है। इसलिए उनका साहित्‍य सदगुरू के जीवन की घटनाओं की कहानियों से बना है। हसीदों की मान्‍यता है कि ईश्‍वर का प्रकरण स्‍तंभ इन ज़द्दिकियों में प्रवेश करता है और उनका आचरण इस प्रकाश की किरणें है अंत:, स्‍वभावत: दिव्‍य प्रकाश से रोशन है। Continue reading “बालशेम तोव—(हसीद)-044”

दि वे ऑफ झेन-(ऐलन वॉटस)-043

दि वे ऑफ झेन-(ऐलन वॉटस)–ओशो की प्रिय पुस्तकें

The Way of Zen-Alan W. Watts

आध्‍यात्‍मिक अनुभवों का सौंदर्य यह है कि उनके घटने से विश्‍व की और देखने का नजरिया बदल जाता है। विश्‍व एक समस्‍या नहीं रहता। उल्‍टे ऐसा लगता है कि जो भी है बिलकुल ठीक है, इससे अन्‍यथा हो ही नहीं सकता।   

इस बार ऐलन वॉटस की दो किताबों को एक साथ प्रस्‍तुत कर रहे है। ये दोनों किताबें ओशो ने एक साथ गिनाई है। ऐलन वॉटस ओशो का प्रिय लेखक है। बहुत कम लेखक है जिनकी शख्‍सियत ओशो को प्रसंद आती है। और ऐलन वॉटस उनमें से एक है। आम तौर पर लेखक और उनकी रचना में जमीन आसमान का फर्क होता है। लेकिन ऐलन वॉटस उसका अपवाद है। Continue reading “दि वे ऑफ झेन-(ऐलन वॉटस)-043”

मैन्‍स पॉसिबल इवोलुशन-(ओस्पेंस्की)-042

दि साइकोलाजी ऑफ-मैन्‍स पॉसिबल इवोलुशन—पी. डी. ओस्पेंस्की–(मनुष्‍य कासंभावित विकास) 

ओशो की प्रिय पुस्तकें 

The Psychology of Man’s Possible Evolution-Peter D Ouspensky

     पी. डी. ओस्पेंस्की बीसवीं सदी के विख्‍यात रहस्‍यदर्शी गुरजिएफ का प्रधान शिष्‍य था। वह अत्‍यंत विद्वान और प्रतिभाशाली तो था ही, उसे शब्‍दों की बादशाहत भी हासिल थी। उसने आध्‍यात्‍मिक जगत की खोजों पर एक से एक अद्भुत किताबें लिखी है। यक किताब ‘’दि सॉयकॉलाजी ऑफ मैन्‍स पॉसिबल इवोलुशन’’ ओस्पेंस्की की सबसे छोटी किताब है। वस्‍तुत: यह उसके पाँच व्‍याख्‍यानों का संकलन है जो उसने लंदन में 1934 के दौरान दिये। Continue reading “मैन्‍स पॉसिबल इवोलुशन-(ओस्पेंस्की)-042”

माय ऐक्सपैरिमैंट विद दि टूथ-(गांधी)-041

माय ऐक्सपैरिमैंट विद दि टूथ-(महात्‍मा गांधी)-ओशो की प्रिय पुस्तकें

My Experiments with Truth: An Autobiography-Mahatma Gandhi

आज में जिस किताब का जिक्र करने जा रहा हूं, उसके बारे में किसी ने सोचा नहीं होगा कि मैं  बोलूगा। वह है: महात्‍मा गांधी की आत्‍मकथा। माय ऐक्सपैरिमैंट विथ टूथ। सत्‍य को लेकिर उनके प्रयोगों के विषय में बात करना सचमुच अद्भुत है। यह सही समय है।

आज महात्‍मा गांधी के बारे में मैं कुछ अच्‍छी बातें कहता हूं, एक: एक भी व्‍यक्‍ति ने अपनी जीवनी इतनी ईमानदारी से, इतनी प्रामाणिकता से नहीं लिखी। आज तक जो सबसे प्रमाणिक जीवनी लिखी गई उसमें से एक है। Continue reading “माय ऐक्सपैरिमैंट विद दि टूथ-(गांधी)-041”

दि आऊटसाइडर-(विलसन)-040

दि आऊटसाइडर-(अजनबी)—कॉलिन विलसन

ओशो की प्रिय पुस्तकें

 The Outsider-Colin Wilson

(प्रसिद्ध लेखक एच. जी. वेल्‍स भी एक अजनबी है। वह स्‍वयं को ‘’अंधों के देश में आँखवाला आदमी’’ कहता है। सोरेन किर्कगार्ड एक गहरा आध्‍यात्‍मिक  दार्शनिक था। ‘’अस्तित्ववाद’’ उसी ने प्रचलित की हुई संज्ञा है। उसने तर्क और दर्शन को बिलकुल ही नकार दिया। वह कहता था: मैं कोई गणित का फार्मूला नहीं हूं—मैं वास्‍तव में ‘’हूं’’।

     बीसवीं सदी के मध्‍य में जो शब्‍द लोकप्रिय हुआ उनमें से एक है: आऊटसाइडर। अस्तित्ववादी दार्शनिक सार्त्र और आल्बेर कामू ने अपनी किताबों में इस शब्‍द का बहुतं प्रयोग किया है। आऊटसाइडर। इस किताब पर एक फिल्‍म भी बनी थी जो बहुचर्चित रही। Continue reading “दि आऊटसाइडर-(विलसन)-040”

ए न्‍यू मॉडल ऑफ दि यूनिवर्स-(पी. डी. ऑस्पेन्सकी)-039

ए न्‍यू मॉडल ऑफ दि यूनिवर्स—(पी. डी. ऑस्पेन्सकी)-ओशो की प्रिय पुस्तकें

A New Model of the Universe-P. D. Ouspensky

पी. डी. ऑस्पेन्सकी एक रशियन गणितज्ञ और रहस्‍यवादी था। उसे रहस्‍यदर्शी तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन रहस्‍य का खोजी जरूर था। विज्ञान अध्‍यात्‍म, गुह्म विद्या, इन सबमें उसकी एक साथ गहरी पैठ थी। इस अद्भुत प्रतिभाशाली लेखक ने पूरी जिंदगी अस्‍तित्‍व की पहेली को समझने-बुझने में लगायी। उसने विश्वंभर में भ्रमण किया, वह भारत भी आया, कई योगियों और महात्‍माओं से मिला। और अंत मैं गुरजिएफ का शिष्‍य बन गया। गुरजिएफ के साथ उसे जो अनुभव हुए उनके आधार पर उसने कई किताबें लिखी।

     ऑस्पेन्सकी को बचपन से ही अदृश्‍य पुकारता था; उसकी झलकें आती थी। एक तरफ वह फ़िज़िक्स का अध्‍यन करता और दूसरी तरफ उसे ‘’अनंतता’’ दिखाई देता। Continue reading “ए न्‍यू मॉडल ऑफ दि यूनिवर्स-(पी. डी. ऑस्पेन्सकी)-039”

एट दि फीट ऑफ दि मास्‍टर-(जे कृष्ण मुर्ति)-038

एट दि फीट ऑफ दि मास्‍टर-(जे. कृष्‍ण मूर्ति)—ओशो की प्रिय पुस्तकें 

At the Feet of the Master: Selected-J. Krishnamurti

     यह किताब गागर में सागर है। इतनी छोटी है कि उसे किताब कहने में झिझक होती हे। चार इंच चौड़ी और पाँच इंच लंबी इस लधु पुस्‍तक के सिर्फ 46 पृष्‍ठों में पूरा ज्ञान सम्‍माहित है। किताब के लेखक का नाम दिया है ‘’अल्‍कायन’’। मद्रास के थियोसोफिकल पिब्लशिग हाऊस ने सन 1910 में पहली बार यह किताब प्रकाशित की। उसके बाद इसके दर्जनों संस्‍करण हुए। ओशो ने यह किताब 1969 में जबलपुर की किसी दुकान से खरीदी थी।

किताब की भूमिका है एनी बेसेंट द्वारा लिखित। उन्‍होंने लिखा है कि हमारे एक छोटे बंधु की—जो कि आयु में छोटा है, आत्‍मा में बड़ा—यह पहली किताब है जो उसके गुरु ने उसे हस्‍तांतरित की है। गुरु के विचार शिष्‍य के शब्‍दों का परिधान पहन कर आये है। Continue reading “एट दि फीट ऑफ दि मास्‍टर-(जे कृष्ण मुर्ति)-038”

कमेंटरीज़ ऑन लिविंग-(कृष्ण मूर्ति)-037

कमेंटरीज़ ऑन लिविंग-(जे. कृष्‍ण मूर्ति) ओशोे की प्रिय पुस्तकें

Commentaries on Living: Jiddu Krishnamurti’s

जे कृष्‍ण मूर्ति की बेहद खूबसूरत किताब, ‘’कमेंटरीज़ ऑन लिविंग’ एक निर्मल झील है। जो कृष्‍ण मूर्ति के अंतरतम को पूरा का पूरा प्रतिबिंबित करती है। कृष्‍ण मूर्ति प्रकृति के सौंदर्य से असीम प्रेम करते थे। जंगलों में, पहाड़ों में देर तक सैर करने का उनका शौक सर्वविदित है। वे प्रकृति की बारीक से बारीक भंगिमा का अति संवेदनशीलता से आत्‍मसात करते थे।

यह डायरीनुमा दस्‍तावेज कृष्‍ण मूर्ति ने अल्डुअस हक्‍सले के अनुरोध पर लिखा है। कृष्‍ण मूर्ति अमेरिका यूरोप और भारत में निरंतर भ्रमण करते थे। वहां के लोगों से मिलते थे, उनके प्रश्‍नों को हल करते थे। उनका वर्णन उन्‍होंने एक डायरी के रूप में लिखा है। इस डायरी का एक नक्‍शा है जो कृष्‍ण मूर्ति का अपना है। Continue reading “कमेंटरीज़ ऑन लिविंग-(कृष्ण मूर्ति)-037”

दि फर्स्‍ट एंड लास्‍ट फ़्रीडम-(जे कृृष्णमूर्ति)-036

दि फर्स्‍ट  एंड लास्‍ट फ़्रीडम-(जे. कृष्णामूर्ति) ओशो की प्रिय पुस्तकें 

The First and Last Freedom-Jiddu Krishnamurti

      यह किताब जे. कृष्णामूर्ति के लेखों का संकलन है। यह उस समय छपी है जब कृष्‍ण मूर्ति आत्म क्रांति से गुजरकर स्‍वतंत्र बुद्ध पुरूष के रूप में स्‍थापित हो चूके थे। लंदन के ‘’विक्‍टर गोलांझ लिमिटेड’’ प्रकाशन ने 1958 में यह पुस्‍तक प्रकाशित की। कृष्‍ण मूर्ति के एक प्रशंसक और सुप्रसिद्ध अमरीकी लेखक अल्‍डुअस हक्‍सले ने इस किताब की विद्वत्तापूर्ण भूमिका लिखी है।

      ओशो ने यह किताब 1960 में जबलपुर के मार्डन बुक स्‍टॉल से खरीदी है। इस पर उनके हस्‍ताक्षर है, सिर्फ ‘’रजनीश’। किताब के दो खंड है। पहले खंड में विविध मनोवैज्ञानिक विषयों पर कृष्‍ण मूर्ति के प्रवचन है और दूसरे खंड में प्रश्‍नोतरी है। प्रवचनों के कुछ विषय इस प्रकार है: Continue reading “दि फर्स्‍ट एंड लास्‍ट फ़्रीडम-(जे कृृष्णमूर्ति)-036”

दि बुक-(ऐलन वॉटस)-035

ऑन दि टैबू अगेंस्‍ट नोइग हू यू आर-ओशो की प्रिय पुस्तकें 

The Book on the Taboo Against Knowing Who You Are

-Alan W. Watts

     किताब में प्रवेश करने से पहले खुद ऐलन वॉटस संक्षेप में इसे लिखने की वजह बताता है।

‘’यह किताब मनुष्‍य के उस निषिद्ध लेकिन अनचीन्‍हें टैबू के संबंध में है जो एक तरह से हमारी साजिश है हमारे ही प्रति कि हम स्‍वयं को जानना नहीं चाहते। चमड़े के थैले में बंद हम जो एक अलग-थलग हस्‍ती बनकर जीते है वह एक भ्रांति है। यही वह भ्रांति है जिसकी वजह से मनुष्‍य ने टैकनॉलॉजी का उपयोग अपने पर्यावरण पर विजय पाने के लिए और फलत: खुद के अंतिम विनाश के लिए किया। Continue reading “दि बुक-(ऐलन वॉटस)-035”

दि गॉस्पल-(थॉमस)-034

दि गॉस्पल-(एकॉर्डिंग टू थॉमस)–ओशो की प्रिय पुस्तकेंं

 The Gospel of Thomas

     वह दिसंबर का एक भाग्‍य शाली दिन था। सन था 1951 उत्‍तर ईजिप्‍त में एक शहर है नाग हम्‍मदि। उसके आसपास बियाबान में एक अरब किसान अपने खेत के लिए खुदाई कर रहा था। अचानक उसे एक मिट्टी का बड़ा सा लाल रंग का पुराना बर्तन मिला। वह उत्‍तेजना से भर गया, उसे लगा की कोई गड़ा हुआ धन मिल गया। पहले तो उसे डर लगा कि कोई जिन प्रेत है; उसने जल्‍दी से फावड़ा मार कर बर्तन को नीचे गिराया, अंदर उसे न तो जिन मिला और न धन। कुछ कागजी किताबें जरूर मिलीं। लगभग एक दर्जन किताबें सुनहरे भूरे रंग के चमड़े में बंधी हुई। उसे क्‍या पता था कि उसे एक ऐसा असाधारण दस्‍तावेज मिला है जो तकरीबन 1500 साल पहले निकटवर्ती मठ के भिक्षुओं ने पुरातनपंथी चर्च के विध्‍वंसक चंगुल से बचाने की खातिर भूमि के नीचे दफ़ना रखा था। चर्च उस समय जो-जो भी विद्रोही मत रखते थे उन सबको नष्‍ट कर रहा था। चर्च का क्रोध जायज भी है कि क्‍योंकि जीसस के ये मूल सूत्र प्रकाशित होते तो चर्च का काम तमाम हो जाता। Continue reading “दि गॉस्पल-(थॉमस)-034”

एक आदमी पर्वत जैसा-(हु आंग पो)-033

दि ज़ेन टीचिंग ऑफ हु आंग पो ऑन दि ट्रांसमिशन ऑफ माईड–ं

अंग्रेजी अनुवाद: जॉन ब्‍लोफेल्‍ड

The Zen teaching of Huang Po on the transmission of mind-John Blofield

    हु आंग पो एक मनुष्‍य का नाम था और पर्वत का भी क्‍योंकि हु आंग पो इसी नाम के पर्वत पर रहता था। यह एक उतंग ज़ेन सदगुरू था जिसे पर्वत शिखर का नाम मिला क्‍योंकि वह खुद भी एक उत्तुंग शिखर था।

यह किताब उसके शिष्‍य और विद्वान पंडित पेई सियु द्वारा किया गया संकलन है। चांग साम्राज्‍य में ईसवीं सदी 850 में यह संकलन चीनी भाषा में किया गया था। Continue reading “एक आदमी पर्वत जैसा-(हु आंग पो)-033”

रिसरेक्‍शन-(टॉलस्टॉय)-032

रिसरेक्‍शन-(लियो टॉलस्‍टॉय)-ओशो की प्रिय पुस्तकें

Resurrection-Leo Tolstoy

     ‘’रिसरेक्शन’’ टॉलस्‍टॉय का आखिरी उपन्‍यास है। इससे पहले ‘’वार एंड पीस’’ और ऐना कैरेनिना’’ जैसे श्रेष्‍ठ और महाकाय उपन्‍यास लिखकर टॉलस्‍टॉय ने विश्‍व भर में ख्‍याति अर्जित कर ली थी। ऐना कैरेनिना के बारे में उसने खुद कहा कि मैंने अपने आपको पूरा उंडेल दिया है। इस उपन्‍यास के बाद टॉलस्‍टॉय की कल्‍पनाशीलता वाकई चुक गई थी क्‍योंकि इसके बाद वह दार्शनिक किताबें लिखने लगा था। अपने आपको एक संत या ऋषि की तरह प्रक्षेपित करने लगा था। उस भाव दशा में ‘’रिसरेक्शन’’ जैसा उपन्‍यास लिखने की प्रेरणा टॉलस्‍टॉय के पुनर्जन्‍म जैसी ही थी। रिसरेक्‍शन अर्थात पुनरुज्जीवन। Continue reading “रिसरेक्‍शन-(टॉलस्टॉय)-032”

ब्रदर्स कार्मोझोव-(दोस्तोव्सकी)-031

ब्रदर्स कार्मोझोव-(फ्योदोर दोस्तोव्सकी)-ओशो की प्रिय पुस्तकेंं

The Brothers Karamazov by Fyodor Dostoevsky

विश्‍व विख्‍यात रशियन उपन्‍यासकार फ्योदोर दोस्तोव्सकी की श्रेष्‍ठ रचना ब्रदर्स कार्मोझोव ओशो की दृष्‍टि में सर्वश्रेष्‍ठ तीन किताबों में से एक है। यह कहानी है बेइंतहा प्‍यार की, कत्‍ल की और आध्‍यात्‍मिक खोज की। यह कहानी वस्‍तुत: लेखक की अपनी खोज की कहानी है। उसकी खोज यह है कि सत्‍य क्‍या है। मनुष्‍य क्‍या चीज है, जीवन क्‍या है, ईश्‍वर क्‍या है, है या नहीं। इस उपन्‍यास के सशक्‍त चरित्र दोस्तोव्सकी की गहरी निगाह के प्रतीक है जो मनुष्‍य के अवचेतन की झाड़ियों में गहरी पैठती है। इस किताब के विषय में वह खुद कहता है कि ‘’अगर मैंने इस उपन्‍यास को पूरा कर लिया तो मैं प्रसन्‍नतापूर्वक विदा लुंगा। इसके द्वारा मैंने अपने आपको पूरी तरह अभिव्‍यक्‍त कर लिया है। Continue reading “ब्रदर्स कार्मोझोव-(दोस्तोव्सकी)-031”

दि विल टु पावर: (नीत्से)-030

दि विल टु पावर-(फ्रेडरिक नीत्‍से)-ओशो की प्रिय पुस्तकेंं

The Will To Power-Nietzche’s

     कुछ व्‍यक्‍तियों का वजूद इतना बड़ा होता है कि उनके देश का नाम उनके नाम सक जुड़ जाता है। जैसे ग्रीस सुकरात और प्लेटों की याद दिलाता है। चीन लाओत्से का देश बन गया। वैसे ही जर्मनी फ्रेडरिक नीत्‍शे का पर्यायवाची हुआ। नीत्‍शे—जिस महान दार्शनिक को ओशो ‘’जायंट’’ या विराट पुरूष कहते है। नीत्‍शे की प्रतिभा को ओशो ने बहुत सम्‍मान दिया है। नीत्‍शे के महाकाव्‍य ‘’दसस्‍पेक जुरतुस्त्र’’ पर प्रवचन माला कर ओशो ने नीत्‍शे को अपनी साहित्‍य संपदा में अमर कर दिया है। उसी नीत्‍शे की अंतिम किताब ‘’दि विल टु पावर’’ ओशो की मनपसंद किताबों में  शामिल है। Continue reading “दि विल टु पावर: (नीत्से)-030”

दि हिस्‍ट्री ऑफ वेस्‍टर्न फिलॉसॉफी-(रसेल)-029

दि हिस्‍ट्री ऑफ वेस्‍टर्न फिलॉसॉफी—(बर्ट्रेंड रसेल)-ओशो की प्रिय पुस्तकें  

A History of Western Philosophy – Bertrand Russell

 इंग्‍लैंड के विश्‍व विख्‍यात दार्शनिक, लेखक बर्ट्रेंड रसेल ने अपरिसीम श्रम करके विचार के विकास की कहानी लिखी है। यह कहानी उसके एक महाकाव्‍य पुस्‍तक में उंडेली है। जिसका नाम है: ‘’दि हिस्‍ट्री ऑफ वेस्‍टर्न फिलॉसॉफी’’ पाश्‍चात्‍य दर्शन का इतिहास अर्थात मनुष्‍य के विचारों का इतिहास। इस पुस्‍तक में रसेल ने 2500 वर्षों के काल-खंड को समेटा है। लगभग 585 ईसा पूर्व से लेकिर 1859 के जॉन डूयुए तक सैकड़ों दार्शनिकों के चिंतन, दार्शनिक सिद्धांत और मनुष्‍य जाति पर हुए उनके परिणामों का संकलन तथा सशक्‍त विश्‍लेषण इस विशाल ग्रंथ में ग्रंथित है। Continue reading “दि हिस्‍ट्री ऑफ वेस्‍टर्न फिलॉसॉफी-(रसेल)-029”

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