आओ और डूबो—(प्रवचन—दसवां)
प्रश्न—सार:
1—ओशो, संन्यास लेने के बाद वह याद आती है—
जू—जू दयारे—इश्क में बढ़ता गया।
तोमतें मिलती गई, रूसवाइयां मिलती गई।
2—ओशो, आज तक दो प्रकार के खोजी हुए है। जो अंतर्यात्रा पर गए उन्होंने बाह्म जगत से अपने संबंध न्यूनतम कर लिए। जो बहार की विजय—यात्राओं पर निकले उन्हें अंतर्जगत का कोई बोध ही नहीं रहा। आपने हमें जीनें का नया आयाम दिया है। दोनों दिशाओं में हम अपनी यात्रा पूरी करनी है। ध्यान और सत्संग से जो मौन और शांति के अंकुर निकलते है, बाहर की भागा—भागी में वे कुचल जाते है। फिर बाहर के संघर्षों में जिस रूगणता और राजनीति का हमें अभ्यास हो जाता है, अंतर्यात्रा में वे ही कड़ियां बन जाती है।
प्रभु, दिशा—बोध देने की अनुकंपा करे। Continue reading “मन ही पूजा मन ही धूप-(प्रवचन-10)”