पांचवां प्रवचन-एक सीधा सत्य
एक धर्मगुरु ने एक रात एक सपना देखा। सपने में उसने देखा कि वह स्वर्ग के द्वार पहुँच गया है। जीवनभर उसने स्वर्ग की ही बातें की थी। और जीवनभर स्वर्ग का रास्ता क्या है, यह लोगों को बताया था उसे निश्चित था कि जब मैं स्वर्ग के द्वार पर पहुंचूंगा ता स्वयं परमात्मा मेरे स्वागत को तैयार रहेंगे। लेकिन वहां द्वार पर तो कोई भी नहीं था द्वार खुला भी नहीं था, बन्द था। द्वार इतना बड़ा था कि उसके ओर-छोर को देख पाना सम्भव नहीं था उस विशाल द्वार के समक्ष खड़े होकर, वह एक छोटी चींटी जैस मालूम होने लगा। उसने द्वार को बहुत खटखटाया, लेकिन उस विशाल द्वार पर, उस छोटे-से आदमी की आवाजें भी पैदा हुई या नहीं, इसका पता चल पाना कठिन था। वह बहुत डर गया। Continue reading “आनन्द गंगा-(प्रवचन-05)”