नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-28)

हास्य व नृत्य की बात—(अठाईसयवां-प्रवचन)

 प्यारे ओशो,  

यहां पृथ्‍वी पर सबसे बड़ा पाप क्या रहा है? क्या यह उसका कथन नहीं थी जिसने कहा :  ‘धिक्कार है उनको जो हंसते हैं!’

क्या स्वयं उसने पृथ्वी पर हंसने का कोई कारण नहीं पाया? यदि ऐसा है तो उसने खोज बुरी तरह की। एक बच्चा भी कारण पा सकता है।

उसने — पर्याप्त रूप से प्रेम नहीं किया : अन्यथा उसने हमको भी प्रेम किया होता हसनेवालो को! लेकिन उसने घृणा की और हम पर ताने कसे उसने शाप दिया कि हम बिलखें व दांत  किटकिटाएं। Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-28)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-27)

उच्चतर मानव से मुलाकात की बात—(सताईसवां—प्रवचन)

प्यारे ओशो,  

महीने और बीतते हैं, और जरमुस्त्र के बाल सफेद होते हैं जबकि वह प्रतीक्षा करते हैं उस संकेत की कि यही समय है नीचे उतरकर मनुष्यों तक उनके फिर से जाने का। एक दिन जबकि वह अपनी गुफा के बाहर बैठे हैं जरमुस्त्र के पास वृद्ध पैगंबर आता है जो जरमुस्त्रू को सावधान करता है कि वह उनको उनके चरम पाप के प्रति फुसलाने के लिए आया है — दया खाने का पाप

‘उच्चतर मानव’ के लिए दया? जरमुस्त्र इससे दहल जाते हैं लेकिन अंतत: राजी होते हैं उच्चतर मानव की चीख का जवाब देने के लिए उसे खोज निकालने और उसकी मदद करने के लिए जरयुस्त्र तेजी से आगे बढ़ते हैं और अपने समस्त अभ्यागतों को वहां एकत्र पाते हैं — Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-27)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-26)

स्वास्थ्य— लाभ करनेवाला—छब्‍बीसवां-प्रवचन

प्यारे ओशो,  

एक प्रात: अपनी गुफ़ा में अपनी वापसी के थोड़ी देर बाद ही जरमुस्त्र सात दिनों की एक अवधि से गुजरते हैं जब वह मृतवत हैं। जब वह अंतत: अपने—आप में लौटते हैं वह पाते हैं कि वह फलों और मधुरगंधी जड़ी— बूटियों से घिरे हुए हैं जो उनके लिए उनके जानवरों द्वारा लायी गयी हैं। उन्हें जगा हुआ देखकर उनके जानवर जरमुस्त्र से पूछते हैं कि क्या वे अब बाहर दुनिया में कदम नहीं रखेगे जो उनकी प्रतीक्षा कर रही है :

‘हवा भारी सुवास से बोझिल है जो आपकी अभीप्सा करती है और सारे नदी— नाले आपके पीछे— पीछे दौड़ना चाहेगे ‘ वे उनसे कहते हैं..

‘क्योंकि देखो हे जरथुस्त्र! तुम्हारे नये गीतों के लिए नयी वीणाओं की जरूरत है। ‘

……ऐसा जरमुस्त्र ने कहा। Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-26)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-25)

पुरानी व नयी नियम— तालिकाओं की बात भाग—02

(पच्‍चीसवां-प्रवचन)

प्यारे ओशो ,

जब पानी पर पटरे बिछा दिये जाते हैं ताकि उस पर चला जा सके जब मार्ग और हस्तावलंब (रेलिंग्स ) धारा के आरपार फैल जाते हैं : सच में उस पर कोई विश्वास नहीं करता जो कहता है :  ‘ सब कुछ प्रवहमान है। ‘

उलटे बुद्ध भी उसका प्रतिवाद करते हैं। ‘क्या? : बुद्ध कहते हैं ‘सब कुछ प्रवहमान? लेकिन धारा के ऊपर पटरे और हस्तावलंब लगे हुए हैं!

‘धारा के ऊपर सब कुछ सुदृढ़ रूप से जड़ दिया गया है सभी बातों के मूल्य सेतु अवधारणाएं समस्त ”अच्छाई” और ”बुराई” : सब कुछ सुदृढ़ रूप से जड़ दिया गया है!’

……….ऐसा जरथुस्त्र ने कहा। Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-25)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-24)

पुरानी व नयी नियम— तालिकाओं की बात भाग-02

चौबीसवां-प्रवचन

प्यारे ओशो

यहां मैं बैठता और प्रतीक्षा करता हूं, पुरानी छिन्‍न— भिन्न नियम— तालिकाएं मेरे चारों ओर बिखरी

हुईं और नयी अर्द्धलिखित नियम— तालिकाएं भी। कब मेरी घड़ी आएगी? — मेरे नीचे जाने की

घड़ी मेरे अवरोह की : क्योकि एक बार और मैं मनुष्यों तक जाना चाहता हूं।

उसके लिए मैं अब प्रतीक्षा करता हूं : क्योंकि पहले इस बात का संकेत मुझ तक आना

आवश्यक है कि यह मेरी घड़ी है — अर्थात फाख्ताओं के झुंड से युक्त हंसता हुआ शेर। Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-24)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-23)

भारता—मनोवृति की बात-भाग-02   (तेइसवां-प्रवचन)

प्यारे ओशो

खोजे जाने के लिए मनुष्‍य दुष्कर है, सबसे बढ़कर स्वयं के लिए; मन प्राय: आत्मा के संबंध से झूठ बोलता है

सच में, मैं उनको भी नापसंद करता हूं जो हर चीज को अच्छा कहते हैं और इस दुनिया को

सर्वोत्तम। मैं ऐसे लोगों को सर्व— तुष्ट कहता हूं।

सर्व—तुष्टता जो हर चीज का स्वाद लेना जानती है : वह सर्वोत्तम रुचि नहीं है। मैं हठीली और तुईनुकमिजाज जीभों और पेटों का सम्मान करता हूं जिन्होंने ‘मैं’ और ‘हां’ और ‘ना’ कहना सीखा यह बहरहाल मेरी शिक्षा है : वह व्यक्ति जो एक दिन ल्टना सीखना चाहता है पहले उसे खड़ा होना और चलना और दद्वैना और चढ़ना और नाचना सीखना जरूरी है — तुम उड़कर ही उड़ना नहीं सीख सकते! Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-23)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-22)

भारता— मनोवृत्ति की बात भाग—01

(बाइसवां-प्रवचन)

प्‍यारे ओशो,

… मैं भारता की मनोवृत्ति का शत्रु हूं : और सच में घातक शत्रु महा शपूर जन्मजात शत्रु!… मैं उस संबंध में एक गीत गा सकता हूं — और मैं गाऊंगा एक यद्यपि मैं एक खाली मकान में अकेला हूं और उसे मुझे स्वयं के कानों के लिए ही गाना पड़ेगा।

अन्य गायक भी हैं ठीक से कहें तो जिनकी आवाजें मृदु हो उठती हैं जिनके हाथ भावभंगिमायुक्त हो उठते हैं जिनकी आखें अभिव्यक्तिपूर्ण हो उठती हैं जिनके हृदय जाग उठते हैं केवल जब मकान लोगों से भरा हुआ होता है : मैं उनमें से एक नहीं हूं। वह व्यक्ति जो एक दिन मनुष्यों को उड़ना सिखाएगा समस्त सीमा— पत्थरों को हटा चुका ‘ होगा; समस्त सीमा— पत्थर स्वयं ही उस तक हवा में उड़ेगे वह पृथ्वी का नये सिरे से बप्तिस्मा करगे? — ‘निर्भार’ के रूप में। Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-22)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-21)

तीन बुरी बातों की बात (इक्‍किस्‍वां-प्रवचन)

प्यारे ओशो,

… अब मैं सर्वाधिक बुरी बातों को तराजू पर रखूंगा और उनको भलीभांति और

मानवीयता सहित तौलूंगा………

ऐंद्रिक सुख, शक्ति की लिप्सा, स्वार्थपरायणता : ये तीन अब तक सर्वाधिक कोसे गये हैं और सबसे बुरी तथा सर्वाधिक अन्यायपूर्ण ख्याति में रखे गये हैं — इन तीनों को मैं भलीभांति और

मानवीयता सहित तौलूंगा  ऐंद्रिक सुख : एक मीठा जहर केवल मुरझा गये लोगों के लिए लेकिन सिंह— संकल्पी के लिए महा पुष्टिकर और सम्मानपूर्वक परिरक्षित की गयी शराबों की शराब । Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-21)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-20)

धर्मत्यागियों की बात—(बीसवां—प्रवचन)

प्यारे ओशो।

वह व्यक्ति जो मेरी किस्म का है उसे मेरी ही किस्म के अनुभवों का साक्षात भी होगा जिससे कि उसके प्रथम साथी अनिवार्य रूप से लाशें व विदूषक ही होंगे बहरहाल उसके दूसरे साथी अपने आपको उसके माननेवाले कहेगे : एक जीवंत समूह प्रेम से भरा हुआ बेवकूफियों से भरा हुआ बचकानी भक्ति से भरा हुआ

मनुष्यों में वह जो मेरी किस्म का है उसे इन माननेवालों से अपना हृदय नहीं उलझाना चाहिए) वह जो मनुष्य के ढुलमुल— कायरतापूर्ण स्वभाव को जानता है उसे इन बसंतों और इन रंगबिरंगे घास— मैदानों में यकीन नहीं करना चाहिए! Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-20)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-19)

आनंदमय द्वीपों की बात—(उन्‍नीस्‍वां—प्रवचन)

प्यारे ओशो,  

ओ मेरे जीवन के अपराह्र।

मैने क्या नहीं दे दिया है कि मैं एक चीज पा सकूं : मेरे विचारों की यह जीवित रोपस्थली  (नर्सरी) और मेरी सर्वोच्च आशाओं का यह अरुणोदय!

एक बार स्रष्टा ने साथियों की और अपनी आशा के बच्चों की तलाश की : और लो ऐसा हुआ कि वह उन्हें नहीं पा सका इसके अलावा कि पहले वह स्वयं उनका सृजन करे।

मेरे बच्चे अपने प्रथम वसंत में अभी भी हरे हैं बहुत पास— पास खड़े हुए और हवाओं द्वारा समान रूप से कंपे हुए मेरे बगीचे और मेरी सर्वोत्तम मिट्टी के ये वृक्ष। Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-19)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-18)

परिव्राजक—(अठरहवां—प्रवचन)

प्यारे ओशो,

जरथुस्‍त्र स्वयं से कहते हैं :

मैं एक परिव्राजक हूं और एक पर्वतारोही…. मुझे मैदान अच्छे नहीं लगते और ऐसा लगता है मै देर तक शांत नहीं बैठ सकता।

और भाग्य और अनुभव के रूप में चाहे जो कुछ भी अभी मुझ तक आने को हो — परिव्रज्या और पर्वतारोहण उसमें रहेगा ही : अंतिम विश्लेषण में व्यक्ति केवल स्वयं को ही अनुभव करता है।

‘तुम महानता का अपना मार्ग तय कर रहे हो : अब पहले जो तुम्हारा परम खतरा था वही  तुम्हारी परम शरण बन चुका है! Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-18)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-17)

मानवोचित होशियादी की बात—(सत्रहवां—प्रवचन)

प्यारे ओशो,

यह ऊंचाई नहीं, अतल गहराई है जो डरावनी है!

अतल गहराई जहां’ निगाह नीचे की तरफ गोता लगाती है और हाथ ऊपर की तरफ कसकर पकड़ते हैं। वहां हृदय अपनी दोहरी आकांक्षा के जरीए मुझे से आक्रांत हो उठता है। आह मित्रो क्या तुमने भी मेरे हृदय की दोहरी आकांक्षा का पूर्वाभास पाया है?

मेरी आकांक्षा मनुष्यजाति के साथ चिपकी रहती है मैं स्वयं को मनुष्यजाति के साथ बंधनों सें बांधता हूं क्योकि मैं परममानव (सुपरमैन) में आकृष्ट हो गया हूं : क्योकि मेरी दूसरी आकांक्षा मुझे परममानव तक खीच लेना चाहती है। Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-17)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-16)

उद्धार की बात—(सौलहवां—प्रवचन)

प्यारे ओशो,  

सच में मेरे मिखैड़े मैं मनुष्यों के बीच चलता हूं जैसे मनुष्यों के टुल्लों और अंगों के बीच! मेरी आंख के लिए भयावह बात है मनुष्यों को टुकड़ों में छिन्न— भिन्न और बिखरा हुआ पाना जैसे किसी कल्लेआम के युद्ध— मैदान पर।

और जब मेरी आंख वर्तमान से अतीत में भागती है सदा उसे वही बात मिलती है : टुक्ये और अंग और डरावने अवसर — लोइकन मनुष्य नहीं!

पृथ्वी का वर्तमान और अतीत — अफसोस! मेरे मित्रो — वही मेरा सर्वाधिक असह्य बोझ है; और मैं नहीं जानता कि जीना कैसे यदि मैं उसका द्रष्टा न होता जिसे आना ही है। Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-16)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-15)

कवियों की बात—(पंद्रहवां—प्रवचन)

प्‍यारे ओशो,  

‘जब से मैने शब्रेँ को बेहतर रूप से जाना है ‘ जरथुस्‍त्र ने अपने एक शिष्य से कहा ‘आत्मा मेरे लिए केवल अलंकारिक रूप से आत्मा रही है; और वह सब कुछ जो ”नित्यं” है — वह भी केवल एक ”बिंब” भर रहा है। ‘

‘मैने एक बार पहले भी आपको यह कहते सुना है ‘ शिष्य ने जवाब दिया; ‘और तब आपने आगे कहा था : ”लेकिन कवि लोग बहुत ज्यादा झूठ बोलते हैं”। आपने क्यों ऐसा कहा कि कवि लोग बहुत ज्यादा झूठ बोलते हैं?’

‘तथापि जरथुस्‍त्र ने एक बार तुमसे क्या कहा? कि कवि लोग बहुत ज्यादा झूठ बोलते हैं?  — लेकिन जरथुस्‍त्र भी एक कवि है। Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-15)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-14)

विद्वानों की बात—(चौदहवां—प्रवचन)

प्यारे ओशो,  

मैं विद्वानों के घर से बाहर निकल आया हूं और अपने पीछे जोर से दरवाजा बंद कर दिया हूं। मेरी आत्मा उनकी भोजन— मेज पर बहुत काल तक भूखी बैठी रही; मैं उस तरह शिक्षित नहीं हुआ हूं जैसे वे हुए हैं ज्ञान फोड़ने के लिए जैसे कोई काष्ठफल (नट) फोड़ता है

मैं स्वतंत्रता को और ताजी मिट्टी की हवाओं को प्रेम करता है उनकी प्रतिष्ठाओं और

सम्माननीयताओं पर सोने के बजाय मैं वृषचर्मों पर सोऊंगा। Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-14)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-13)

आत्‍म—विजय की बात—(तैरहवां—प्रवचन)

प्यारे ओशो,  

(इस हेतु) कि तुम सद् और असद् (अच्छाई और बुराई) के संबंध में मेरी शिक्षाओं को समझ सको मुझे तुम्हें जीवन के संबंध में और समस्त जीवित प्राणियों के स्वभाव के संबंध में मेरी शिक्षाएं कहनी होगी

मैं जीवित प्राणी के पीछे चला हूं मैं महानतम और छुद्रतम मार्गों पर चला हूं ताकि मैं उसके स्वभाव को समझ सकूं।

मैने उसकी निगाह सौ गुना करनेवाले दर्पण में पकड़ी जब उसका मुंह बंद शु ताकि उसकी आंख मुझसे बोल सके। और उसकी आंख बोली मुझसे। Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-13)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-12)

प्रसिद्ध दार्शनिकों की बात—( बारहवां—प्रवचन)

प्यारे ओशो,

तुमने लोगों की और लोगों के अंधविश्वासों की सेवा की है तुम सारे प्रसिद्ध दार्शनिको! — तुमने सत्य की सेवा च्छीं की है! और ठीक उसी कारण से उन्होने तुम्हें सम्मान दिया।….

तुम गरुड़ नहीं हो : तो न ही तुम आतंक में पड़े प्राण का आनंद जानते हो। और जो एक पक्षी न हो उसे अपना घर अतल गर्तों के ऊपर नहीं बनाना चाहिए। Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-12)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-11)

सद्गुण संप्रदान करने की बात भाग—01

(ग्‍यारहवां—प्रवचन)

प्‍यारे ओशो,

बताओ मुझे : कैसे स्वर्ण को सर्वोच्च मूल्य उपलब्ध हुआ? क्योकि वह दुर्लभ और निरुपयोगी और चमकदार तथा आभा में स्निग्ध है; वह सदा अपने आपको संप्रदान करता है।

कैवल सर्वोच्च सद्गुण के प्रतीक के रूप में स्वर्ण को सर्वोच्च मूल्य उपलब्ध हुआ देनेवाले की निगाह स्वर्ण सी झलकती है।….

सर्वोच्च सद्गुण दुर्लभ और निरुपयोगी है वह चमकदार और आभा में स्निग्ध है : सर्वोच्च ‘ सद्गुण संप्रदान किया जाने वाला सद्गुण है। Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-11)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-10)

सर्जक के ढंग की बात—(दसवां—प्रवचन)

प्यारे ओशो

तुम्हें स्वयं को अपनी ही लपटों में जला देने को तैयार रहना जरूरी है : कैसे तुम नये हो सकते थे यदि प्रथमत: तुम राख न हो गये होते?….

अलग हट जाओ और मेरे आसुओ के साथ अकेले होओ मेरे बंधु। मैं उसे प्रेम करता हूं जो स्वयं के पार सृजन करना चाहता है और इस प्रकार मिट जाता है।

……ऐसा जरथुस्‍त्र ने कहा। Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-10)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-09)

न्‍याय की बात—(नौवां—प्रवचन)

प्यारे ओशो

जब तुम्हारा कोई शत्रु हो उसे बुराई के बदले भलाई मत दो : क्योकि वह उसे शर्मिंदा करेगा। लेकिन सिद्ध करो कि उसने तुम्हारे प्रति कुछ भला किया है।

क्रोधित होना बेहतर है शर्मिंदा करने के बजाय! और जब तुम्हें शाप दिया गया हो मैं इसे नही पसंद करता कि तब तुम आशीर्वाद देना चाहते हो? बल्कि वापस थोद्यू शाप दो।

और यदि तुम्हारे साथ महो अन्याय किया जाए तो जल्दी से उसके बगल में ही पांच छोटे अन्याय करो। जो अन्याय को अकेले सहन करता है वह देखने में भयावह है। Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-09)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-08)

नये बुतों की बात—(आठवां—प्रवचन)

प्यारे ओशो,  

अभी भी कहीं लोग और सामान्यजन हैं लेकिन हमारे पास नहीं मेरे बंधुओ : यहां तो राज्य है……….

राज्य समस्त क्रूर दानवों में क्रूरतम है।

क्रूरतापूर्वक वह झूठ भी बोलता है; और यह झूठ उसके मुंह से रेगता हुआ बाहर आता है : ‘मै  — राज्य — ही लोग हूं।

यह एक झूठ है। ये सर्जक थे जिन्होंने लोगों का सर्जन किया और उनके ऊपर एक भरोसा और एक प्रेम टांगा : इस प्रकार उन्होंने जीवन की सेवा की। Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-08)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-07)

मित्र की बात—(सातवां—प्रवचन)

प्यारे ओशो,  

हमारा दूसरों में भरोसा विश्वासघात करता है जहां पर कि हम स्वयं में इतने प्रियरूप से भरोसा रखना चाहेंगे। मित्र के लिए हमारी अभीप्सा ही हमारी विश्वासघातक है।

और प्राय: अपने प्रेम से हम केवल अपनी ईर्ष्या पर छलांग लगाना चाहते हैं। और प्राय: हम आक्रमण करते हैं और शह बना लेते हैं यह छिपाने के लिए कि हम स्वयं पर आक्रमण के लिए असुरक्षित हैं।

‘कम से कम मेरे शत्रु होओ!’ — ऐसा सच्चा सम्मान बोलता है जो मित्रता मांगने का जोखिम नहीं उठा पाता।

……….ऐसा जरथुस्त्र ने कहा। Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-07)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-06)

जीवन और प्रेम की बात—(छठवां—प्रवचन)

प्यारे ओशो,  

हमारे और गुलाब कली के, बीच समान क्या है जो कंपती है क्योंकि ओस की एक बूंद उस पर पड़ी हुई है?

यह सच है : हम जीवन को प्रेम करते हैं इसलिए नहीं क्योंकि हम जीने के आदी हो गये हैं बल्कि इसलिए क्योकि हम प्रेम करने के आदी हो गये हैं प्रेम में हमेशा एक प्रकार का पागलपन है। लेकिन उस पागलपन में हमेशा एक प्रकार की  पद्धति भी है और मेरे देखेभी जो जीवन को प्रेम करते हैं ऐसा प्रतीत होता है कि तितलियां और पानी के बबूले और मनुष्यों में जो कुछ भी उनके जैसा है आनंद के बारे में सर्वाधिक जानते हैं। इन हल्की— फुल्की नासमझ सुकुमार भावनामय नन्हीं आत्माओं को इधर— उधर पर फड़फडाते देखना — जरथुस्त्र को इतना प्रभावित करता है कि आंसू आ जाते हैं और गीत फूट पड़ते है।   Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-06)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-05)

शरीर का तिरस्‍कार करने वालों की बातें—(पांचवां—प्रवचन)

प्यारे ओशो,

तुम कहते हो मैं तुम्हें गर्व है इस शब्द पर। लेकिन उससे भी बढ़कर महान — यद्यपि तुम इस बात पर यकीन नहीं करोगे —तुम्हारा शरीर है और उसकी महत बुद्धिमत्ता जो ‘मैं कहता नहीं बल्कि ‘मैं’ का कृत्य करता है।

इंद्रिय जो महसूस करती है मन को जो बोध होता है वह कभी भी अपने आप में लक्ष्य नहीं है। लेकिन इंद्रिय और मन तुम्हें फुसलाना चाहेंगे कि वे ही सब बातों के लक्ष्य हैं : वे इतने ही निरर्थक हैं। इंद्रिय और मन उपकरण और खिलौने हैं : उनके भी पीछे प्रशांत पड़ी आत्मा है। आत्मा इंद्रिय की आखों से खोज करती है वह मन के कानों से सुनती भी है। Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-05)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-04)

तीन कायापलट की बात—(चौथा प्रवचन)

प्यारे ओशो,  

मैं तुम्हें प्राण के तीन कायापलट के नाम बताता हूं : कैसे प्राण ऊंट बनेगा और ऊंट शेर बनेगा और शेर अंतत: एक शिशु।

बहुत सी भारी वस्तुएं हैं प्राण के लिए मजबूत भारवाही प्राण के लिए जिसमें सम्मान और विस्मयविमुग्धता का वास है : उसकी मजबूती भारी की अभीप्सा करती है सर्वाधिक भारी की। क्या है भारी? इस प्रकार भारवाही प्राण पूछता है इस प्रकार वह ऊंट की तरह घुटने टेकता है और चाहता है भलीभांति लदना भारवाही प्राण अपने ऊपर ये सर्वाधिक भारी वस्तुएं ले लेता है : जैसे कोई लदा हुआ ऊंट रेगिस्तान में जल्दी— जल्दी चला जा रहा हो इस प्रकार वह अपने रोगिस्तान में जल्दी— जल्दी चलता लेकिन एकांततम रेगिस्तान में दूसरा कायापलट घटता है : यहां प्राण शेर बन जाता है; वह स्वतंत्रता को वश में करना और अपने ही रेगिस्तान में मालिक बनना चाहता है। यहां वह अपने परम मालिक को खोजता है : यह उसका और अपने ईश्वर का शत्रु होगा यह विजय के लिए महा दैत्य से संघर्ष करेगा। Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-04)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-03)

पूर्वरंग—भाग-03 (तीसरा—प्रवचन)

प्यारे ओशो

जब जरथुस्‍त्र जंगल के सामने के निकटतम नगर में पहुंचे वहीं पर उन्हें बहुत सारे लोग बाजार के चौराहे पर एकत्र हुई मिल गये : क्योंकि ऐसी घोषणा की गयी थी कि कोई रस्सी पर चलने वाला नट आने वाला था। और जरथुस्‍त्र लोगों से इस प्रकार बोले :

मैं तुम्हें परममानव (सुपरमैन ) सिखाता हूं। मानव कुछ ऐसी चीज है जिससे पार उठना है तुमने उससे पार उठने के लिए क्या किया है?

आज तक के सभी प्राणियों ने कुछ अपने से पार निर्मित किया है : और क्या तुम इस महान ज्वार का उतार बनना चाहते हो और मानव के पार जाने के बजाय पशुओं में लौट जाना चाहते हो? Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-03)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-02)

पूर्वरंग—भाग-2  (दूसरा प्रवचन)

प्यारे ओशो,

जरथुस्‍त्र पहाड़ से अकेले नीचे उतरे और किसी से उनकी मुलाकात नहीं हुई। लेकिन जब उन्होंने जंगल में प्रवेश किया, एक बूढ़ा व्यक्ति जो जंगल में जड़िया खोजने के लिए अपनी पवित्र कुटिया से बाहर आया था, सहसा उनके समुख था। और वह बूढ़ा व्यक्ति जरथुस्त्र से इस प्रकार बोला :

‘यह परिव्राजक मेरे लिए अजनबी नहीं है : बहुत वर्षों पहले वह यहां से गुजरा था। वह जरधुस्त्र कहलाता था; लेकिन वह बदल गया है।

‘तब तुम अपनी राख पहाड़ों पर ले गये थे : क्या तुम आज अपनी अग्नि घाटियों में ले जाओगे? क्या तुम्हें एक आगलगाऊ की सजा का भय नहीं है? Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-02)”

नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-01)

पूर्वरंग—भाग—01

(पहला प्रवचन)

प्‍यारे ओशो,

जब जरथुस्‍त्र तीस साल के थे, वह अपना घर और उसकी सुखद सुरक्षा छोड़कर पहाड़ों में चले गये। वहां उन्होंने अपने स्व का और अपने एकांत का भरपूर आनंद लिया और दस साल तक उससे थकित नहीं हुए। लेकिन अंतत: उनके हृदय का भाव बदला — और एक प्रात: वह अरुणोदय के साथ उठे चल कर सूर्य के सम्‍मुख आए और उससे इस प्रकार बोले :

महा सितारे! क्या होगा तुम्हारा आनंद यदि वे न हों जिनके लिए तुम चमकते हो!

तुम यहां मेरी गुफा पर दस वर्षों से आते रहे हो : तुम अपने प्रकाश से और इस यात्रा से थक गये होते मेरे बिना मेरे गरुड़ और मेरे सर्प के बिना। Continue reading “नाचता गाता मसीहा-(प्रवचन-01)”

जरथुस्‍त्र-नाचता गाता मसीहा-(ओशो)

जरथुस्‍थ-(नांचता  गाता  मसीहां)  –ओशो

(फ्रेड्रिक नीत्‍शे की ‘दस स्‍पेश जरथुस्‍त्रा’)

परिचय

जरथुस्त्र अनंतता के इस परम विस्तार में जरूर कहीं हंस रहे होंगे। मनुष्य के बहुत प्रारंभिक इतिहास में ही वह एक, संबुद्ध सद्गुरु थे, और उनके संबंध में अभिलिखित व उपलब्ध कुछ छिट—पुट टुकड़ों से निष्कर्ष निकलता है कि वह बहुत स्वच्छंद व आश्चर्यजनक व्यक्ति थे।

ओशो ने फ्रेड्रिक नीत्शे की प्रतिभा को पहचाना जब पहली बार उन्हें अपने युवा काल में दस स्पेक जरथुस्त्रा (ऐसा जरथुस्त्र बोले ) देखने को मिली। न केवल उन्होंने इसके रचयिता की मेधा को पहचाना, बल्कि यह कृति स्वयं उनके जीवन की मिसाल थी। ओशो मानव मन के पार गये जब  21 मार्च 1953 को उन्हें संबुद्धत्व की घटना घटी। वह स्वयं आज के युग के जरथुस्त्र हैं। Continue reading “जरथुस्‍त्र-नाचता गाता मसीहा-(ओशो)”

जगत तरैया भोर की-(प्रवचन-10)

मंदिर की सीढ़ियां: प्रेम, प्रार्थना, परमात्मा—दसवां प्रवचन

दिनांक २० मार्च, १९७७; श्री रजनीश आश्रम, पूना

जिज्ञासाएं:

1—भगवान, प्रेम मेंर् ईष्या क्यों है?

2—कमैं कौन हूं और मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है?

3—प्रभु से सीधे ही क्यों न जुड़ जाएं? गुरु को बीच में क्यों लें?

4—मैं तीन वर्ष से संन्यास लेना चाहता हूं, लेकिन नहीं ले पा रहा हूं। क्या कारण होगा?

5—भक्ति क्या एक प्रकार की कल्पना ही नहीं है?

6—इस प्रवचनमाला का शीर्षक वैराग्य-रूप और जीवन-निषेधक लगता है। प्रेम-पथ पर यह निषेध क्यों है?

7—आपकी बातों में नशा है, इससे मैं डरता हूं। Continue reading “जगत तरैया भोर की-(प्रवचन-10)”

जगत तरैया भोर की-(प्रवचन-09)

महामिलन का द्वार—महामृत्यु—नौवां प्रवचन

दिनांक १९ मार्च, १९७७; श्री रजनीश आश्रम, पूना

सारसूत्र:

किस बिधि रीझत हौ प्रभू, का कहि टेरूं नाथ।

लहर मेहर जब ही करो, तब ही होउं सनाथ।।

भवजल नदी भयावनी, किस बिधि उतरूं पार।

साहिब मेरी अरज है, सुनिए बारंबार।।

तुम ठाकुर त्रैलोकपति, ये ठग बस करि देहु।

दयादास आधीन की, यह बिनती सुनि लेहु।।

नहिं संजम नहिं साधना, नहिं तीरथ ब्रत दान।

माव भरोसे रहत है, ज्यों बालक नादान।। Continue reading “जगत तरैया भोर की-(प्रवचन-09)”

जगत तरैया भोर की-(प्रवचन-08)

करने से न करने की दशा—आठवां प्रवचन

दिनांक १८ मार्च, १९७७; श्री रजनीश आश्रम, पूना

जिज्ञासाएं

1—कल आपने कहा कि जिन्होंने खोजा वे खो देंगे। और आपकी एक प्रसिद्ध पुस्तक है: “जिन खोजा तिन पाइयां। क्या सच है?

2—मन को सहारा न देना और जीवन के प्रति सहज होना–क्या दोनों एक साथ संभव हैं।

भोग, प्रेम, ध्यान, समझ, समर्पण, कुछ भी तो मेरे लिए सहयोगी नहीं हो रहा। अब आप ही जानें!

3—अकेला हूं, मैं हमसफर ढूंढता हूं…।

4—ध्यान में मुझे नाचना है या मेरे शरीर को?

5—क्या आप अपने शिष्यों के लिए ही हैं कि मुझे आपसे मिलने नहीं दिया जाता?

6—भगवान, क्या से क्या हो गई, कुछ न सकी जान। Continue reading “जगत तरैया भोर की-(प्रवचन-08)”

जगत तरैया भोर की-(प्रवचन-07)

धर्म है कछुआ बनने की कला—सातवां प्रवचन

दिनांक १७ मार्च, १९७७; श्री रजनीश आश्रम, पूना

सारसूत्र:

दया कह्यो गुरुदेव ने, कूरम को व्रत लेहि।

सब इंद्रिन कूं रोकि करि; सुरति स्वांस में देहि।।

बिन रसना बिन माल कर, अंतर सुमिरन होय।

दया दया गुरुदेव की, बिरला जानै कोय।।

हृदय कमल में सुरति धरि, अजप जपै जो कोय।

तिमल ज्ञान प्रगटै वहां, कलमख डारै खोय।।

जहां काल अरु ज्वाल नहिं, सीत उस्न नहिं बीर।

दया परसि निज धाम कूं, पायो भेद गंभीर।। Continue reading “जगत तरैया भोर की-(प्रवचन-07)”

जगत तरैया भोर की-(प्रवचन-06)

वादक, मैं हूं मुरली तेरी—छठवां प्रवचन

छठवां प्रवचन  , दिनांक १६ मार्च, १९७७; श्री रजनीश आश्रम, पूना

जिज्ञासाएं

1—शिविर में पहुंचकर भी भेद क्यों दीखता है? संन्यस्त होते ही क्या फासला मिट जाता है? क्या आशीर्वाद केवल संन्यासियों के लिए ही है?

2—परमपद की प्राप्ति के लिए गैरिक वस्त्र और माला और गुरु कहां तक सहयोगी हैं?

3—कितने ढंग से आप वही-वही बात कहे जा रहे हैं! क्या सत्य को इतने शब्दों की आवश्यकता है?

4—चरित्र और व्यक्तित्व में क्या भेद है?

5—मैं शंकालु हूं और श्रद्धा सधती नहीं। कृपया मार्ग बताएं।

यह न सोचा था तेरी महफिल में दिल रह जाएगा

हम यह समझे थे चले आएंगे दम भर देख कर। Continue reading “जगत तरैया भोर की-(प्रवचन-06)”

जगत तरैया भोर की-(प्रवचन-05)

यह जीवन–एक सरायपांचवां प्रवचन

दिनांक १५ मार्च, १९७७; श्री रजनीश आश्रम, पूना

सारसूत्र:

दयाकुंअर या जग्त में, नहीं रह्यो थिर कोय।

जैसो वास सराय को, तैसो यह जग होय।

जैसो मोती ओस को, तैसो यह संसार।

विनसि जाय छिन एक में, दया प्रभु उर धार।।

तात मात तुमरे गए, तुम भी भये तयार।

आज काल्ह में तुम चलौ, दया होहु हुसियार।।

बड़ो पेट है काल को, नेक न कहूं अधाय।

राजा राना छत्रपति, सब कूं लीले जाय।।

बिनसत बादर बात बसि, नभ में नाना भांति।

इमि नर दीसत कालबस, तऊ न उपजै सांति।। Continue reading “जगत तरैया भोर की-(प्रवचन-05)”

जगत तरैया भोर की-(प्रवचन-04)

भक्ति यानी क्या?चौथा प्रवचन

दिनांक १४ मार्च, १९७७; श्री रजनीश आश्रम, पूना

जिज्ञासाएं

1—आपकी शिक्षा सम्यक शिक्षा है। लेकिन शासक क्या इसे सम्यक शिक्षा मानेंगे?

2—न संसार में रस आता है और न जीवन रसपूर्ण है। फिर भी मृत्यु का भय क्यों बना रहता है?

3—कुछ दिन पहले आपने अष्टावक्र के साक्षी-भाव की डुंडी पीटी, फिर दया की भक्ति का साज छेड़ दिया। इन दोनों के बीच लीहत्जू महज सफेद मेघों पर चढ़कर घूमा किए। आज भक्ति, कल साक्षी…क्या यह संभव है?

4—लोग पीते हैं, लड़खड़ाते हैं

एक हम हैं कि तेरी महफिल में

प्यासे आते हैं और प्यासे जाते हैं…?

5—प्रभु को न पाया तो हर्ज क्या है?

6—भक्ति–प्रेम की निर्धूम ज्योतिशिखा Continue reading “जगत तरैया भोर की-(प्रवचन-04)”

जगत तरैया भोर की-(प्रवचन-03)

पूर्ण प्यास एक निमंत्रण हैप्रवचन तीसरा

दिनांक १३ मार्च, १९७७; रजनीश आश्रम, पूना

सारसूत्र:

प्रेम मगन जो साधजन, तिन गति कही न जात।

रोय-रोय गावत-हंसत, दया अटपटी बात।।

हरि-रस माते जे रहैं, तिनको मतो अगाथ।

त्रिभुवन की संपति दया, तृनसम् जानत साथ।।

कहूं धरत पग परत कहूं, उमगि गात सब देह।

दया मगन हरिरूप में, दिन-दिन अधिक सनेह।।

हंसि गावत रोवत उठत, गिरि-गिर परत अधीर।

पै हरिरस चसको दया, सहै कठिन तन पीर।।

विरह-ज्वाल उपजी हिए, राम-सनेही आय।

मनमोहन मोहन सरल, तुम देखन दा चाय।।

काग उड़ावत कर थके, नैन निहारत बाट।

प्रेम-सिंधु में मन परयो, ना निकसन को घाट।। Continue reading “जगत तरैया भोर की-(प्रवचन-03)”

जगत तरैया भोर की-(प्रवचन-02)

संसार–एक अनिवार्य यात्रादूसरा प्रवचन

दिनांक १२ मार्च, १९७७; श्री रजनीश आश्रम, पूना

जिज्ञासाएं

1—प्यास जगती नहीं, द्वार खुलते नहीं।

2—भगवान श्री, चारों ओर आप ही आप हैं। इस आनंद-स्रोत में डूब गई हूं। लेकिन आप कहते हैं कि इससे भी मुक्त होना है। ऐसा आनंद जान-बूझ कर क्यों गंवाएं?

3—साक्षी-भाव साधने में कठिनाई है। क्या साक्षी-भाव के अतिरिक्त परमात्मा तक जाने का और कोई उपाय नहीं? Continue reading “जगत तरैया भोर की-(प्रवचन-02)”

जगत तरैया भोर की-(प्रवचन-01)

 पहला -प्रवचन–प्रभु की दिशा में पहला कदम

दिनांक ११ मार्च, १९७७; श्री रजनीश आश्रम, पूना

सारसूत्र:

हरि भजते लागे नहीं, काल-ज्याल दुख-झाल।

तातें राम संभालिए, दया छोड़ जगजाल।।१।।

जे जन हरि सुमिरन विमुख, तासूं मुखहू न बोल।

रामरूप में जो पडयो तासों अंतर खोल।।२।।

राम नाम के लेव ही, पातक झुरैं अनेक।

रे नर हरि के नाम को, राखो मन में टेक।।३।।

नारायन के नाम बिन, नर नर नर जा चित्त।

दीन भये विललात हैं, माया-बसि न थित्त।।४।। Continue reading “जगत तरैया भोर की-(प्रवचन-01)”

जगत तरैया भोर की- (दयाबाई)-ओशो

जगत तरैया भोर की (दयाबाई)-ओशो

दुनिया में सौ कवियों में नब्बे तुकबंद होते हैं। कभी-कभी अच्छी तुकबंदी बांधते हैं। मन मोह ले, ऐसी तुकबंदी बांधते हैं। लेकिन तुकबंदी ही है, प्राण नहीं होते भीतर। कुछ अनुभव नहीं होता भीतर। ऊपर-ऊपर जमा दिए शब्द, मात्राएं बिठा दीं, संगीत और शास्त्र के नियम पालन कर लिए। सौ में नब्बे तुकबंद होते हैं। बाकी जो दस बचे उनमें नौ कवि होते हैं, एक संत होता है।

दया उन्हीं सौ में से एक भक्तों और संतों में है। दया के संबंध में कुछ ज्यादा पता नहीं है। भक्तों ने अपने संबंध में कुछ खबर छोड़ी भी नहीं। परमात्मा का गीत गाने में ऐसे लीन हो गए कि अपने संबंध में खबर छोड़ने की फुरसत न पाई। नाम भर पता है। अब नाम भी कोई खास बात है! नाम तो कोई भी काम दे देता। Continue reading “जगत तरैया भोर की- (दयाबाई)-ओशो”

Design a site like this with WordPress.com
प्रारंभ करें