जीवन जीने का नाम है-(प्रवचन-छट्ठवां)
छठवां प्रवचन; दिनांक २६ सितंबर, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना
पहला प्रश्न: भगवान,
ऋतस्य यथा प्रेत।
अर्थात प्र्राकृत नियमों के अनुसार जीओ।
यह सूत्र ऋग्वेद का है।
भगवान, हमें इसका अभिप्रेत समझाने की कृपा करें।
आनंद मैत्रेय
यह सूत्र अपूर्व है। इस सूत्र में धर्म का सारा सार-निचोड़ है। जैसे हजारों गुलाब के फूलों का कोई इत्र निचोड़े, ऐसा हजारों प्रबुद्ध पुरुषों की सारी अनुभूति इस एक सूत्र में समायी हुई है। इस सूत्र को समझा तो सब समझा। कुछ समझने को फिर शेष नहीं रह जाता। Continue reading “ज्यूं मछली बिन नीर-(प्रवचन-06)”