समाधि कमल-(प्रवचन-15)

राजनीति से छुटकारा—(प्रवचन—पंद्रहवां)

मेरे प्रिय आत्मन्!

शिविर का अंतिम दिन है और इसलिए यहां से विदा होने के पूर्व कुछ थोड़ी सी जरूरी बातें आपसे कह देनी आवश्यक हैं। लेकिन इसके पहले कि मैं उन्हें कहूं, एक-दो प्रश्न और, जो महत्वपूर्ण हैं और छूट गए हैं, उनकी भी चर्चा कर लेनी उचित होगी। फिर भी कुछ प्रश्न छूट जाएंगे, तो मैं निवेदन करूंगा कि जिन प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं, जिनकी चर्चा की गई, यदि उनको ठीक से सुना गया होगा, तो जो प्रश्न छूट जाएं उनका भी विचार आपके भीतर पैदा हो सकता है।

बहुत से प्रश्न समान हैं, थोड़ा-बहुत भेद है, और जो-जो उनमें प्रतिनिधित्व करने वाले प्रश्न थे उनको चुन कर मैंने अपने विचार आपसे कहे। Continue reading “समाधि कमल-(प्रवचन-15)”

समाधि कमल-(प्रवचन-14)

एकांत का मूल्य—(प्रवचन—चौदहवां)

मैं समझता हूं कि कोई और प्रश्न नहीं हैं। जो प्रश्न पूछे हैं, कुछ प्रश्न दोपहर भी किसी ने पूछे थे और एक-दो प्रश्न कल के भी बिना उत्तर के रह गए हैं।

प्रश्नों के संबंध में सबसे पहली बात तो यह जाननी जरूरी है कि जीवन में जो भी महत्वपूर्ण है उसके संबंध में किसी दूसरे से कोई भी उत्तर नहीं पाए जा सकते हैं। और जो भी उत्तर दूसरे से पाए जा सकते हैं वे भीतर जाकर न कोई समाधान बनते हैं और न मनुष्य की उलझन को हल कर पाते हैं। ठीक-ठीक जीवन के उत्तर तो खुद ही खोजने होते हैं। श्रम से, साधना से खुद ही उनके उत्तर पाने पड़ते हैं। Continue reading “समाधि कमल-(प्रवचन-14)”

समाधि कमल-(प्रवचन-13)

अभाव का बोध—(प्रवचन—तैहरवां)

मेरे प्रिय आत्मन्!

बीते दो दिनों में सुबह की चर्चाओं में दो बिंदुओं पर हमने विचार किया: अज्ञान का बोध और रहस्य का बोध।

अज्ञान का बोध न हो तो ज्ञान ही बाधा बन जाता है और रहस्य का बोध न हो तो व्यक्ति अपने में ही सीमित हो जाता है। और जो विराट ब्रह्म विस्तीर्ण है चारों ओर, उससे उसके संपर्क-सूत्र शिथिल हो जाते हैं, उससे उसकी जड़ें टूट जाती हैं। और जो व्यक्ति अपने में ही केंद्रित हो जाता है वह स्वभावतः पीड़ा और दुख में पड़ जाता है और चिंता में पड़ जाता है। Continue reading “समाधि कमल-(प्रवचन-13)”

समाधि कमल-(प्रवचन-12)

शास्त्र, धर्म और मंदिर—(प्रवचन—बाहरवां)

किसी ने पूछा है कि मैं कहता हूं: शास्त्र-ग्रंथ और धर्म-मंदिर व्यर्थ हैं। यह कैसे? शास्त्र-ग्रंथों से तो तत्व का ज्ञान मिलता है और मंदिर की भगवान की मूर्ति देख कर सम्यक दर्शन की प्राप्ति होती है।

संभवतः मैंने जो इतनी बातें कहीं, जिन्होंने भी पूछा है उन्हें सुनाई नहीं पड़ी होंगी।

मैंने यह कहा कि पदार्थ का ज्ञान बाहर से मिल सकता है, क्योंकि पदार्थ बाहर है। जो बाहर है उसका ज्ञान बाहर से मिल सकता है। कोई आत्म-ज्ञान से गणित और इंजीनियरिंग और केमिस्ट्री और फिजिक्स का ज्ञान नहीं हो जाएगा और न ही भूगोल के रहस्यों का पता चल जाएगा। जो बाहर है उसे बाहर खोजना होगा। Continue reading “समाधि कमल-(प्रवचन-12)”

समाधि कमल-(प्रवचन-11)

ध्यान–जागरण का द्वार—(प्रवचन—ग्‍याहरवां)

इतने दिन की चर्चा में मैंने यह कहा कि अज्ञानी मनुष्य, अज्ञान से घिरा हुआ व्यक्ति जो भी करेगा वह गलत होगा। वह जो भी करेगा गलत होगा।

पूछा है: यदि अज्ञान से घिरा हुआ व्यक्ति जो भी करेगा वह गलत होगा, तो ध्यान, जागरण, इसकी जो चेष्टा है वह भी उसकी गलत होगी। फिर तो कोई द्वार नहीं रहा, फिर तो कोई मार्ग नहीं रहा। इससे संबंधित और दोत्तीन प्रश्न भी हैं इसलिए सबसे पहले इसी प्रश्न को मैं ले लेता हूं। Continue reading “समाधि कमल-(प्रवचन-11)”

समाधि कमल-(प्रवचन-10)

अज्ञान का बोध, रहस्य का बोध—(प्रवचन—दसवां)

अज्ञान का बोध, इस संबंध में थोड़ी सी बात मैं आपसे कहना चाहता हूं।

जैसा मुझे दिखाई पड़ता है, अज्ञान के बोध के बिना कोई व्यक्ति सत्य के अनुभव में प्रवेश न कभी किया है और न कर सकता है। इसके पहले कि अज्ञान छोड़ा जा सके, ज्ञान को छोड़ देना आवश्यक है। इसके पहले कि भीतर से अज्ञान का अंधकार मिटे, यह जो ज्ञान का झूठा प्रकाश है, इसे बुझा देना जरूरी है। क्योंकि इस झूठे प्रकाश की वजह से, जो वास्तविक प्रकाश है, उसे पाने की न तो आकांक्षा पैदा होती है, न उसकी तरफ दृष्टि जाती है। एक छोटी सी घटना इस संबंध में कहूंगा और फिर आज की चर्चा शुरू करूंगा। Continue reading “समाधि कमल-(प्रवचन-10)”

समाधि कमल-(प्रवचन-09)

ध्यान आंख के खुलने का उपाय है—(प्रवचन—नौवां)

आपके कुछ प्रश्न आज लूंगा। कोई प्रश्न आज छूट जाएंगे तो परेशान न हों, कल उन पर चर्चा हो जाएगी। ईश्वर सगुण है या निर्गुण? ईश्वर है या नहीं है? ईश्वर में विश्वास मैं करता हूं या नहीं करता हूं? इस भांति के जो भी प्रश्न हैं, उनको मैं लूंगा।

एक बात जो सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और विचार करने जैसी है वह यह है कि हजारों वर्षों से मनुष्य को विश्वास करने की प्रेरणा दी गई है। उसे समझाया गया है कि तुम विश्वास करो! ईश्वर में विश्वास करो, आत्मा में विश्वास करो, धर्म में विश्वास करो, गुरुजनों में विश्वास करो, शास्त्रों में विश्वास करो। इस भांति कोई हजारों वर्षों से मनुष्य को विश्वास के लिए दीक्षित और तैयार किया गया है। Continue reading “समाधि कमल-(प्रवचन-09)”

समाधि कमल-(प्रवचन-08)

आज का दिन अंतिम—(प्रवचन—आठवां)

आज की रात तो हम विदा होंगे। इन तीन दिनों में बहुत सी बातें कही हैं। और इतने प्रेम से इतनी शांति से आपने उन्हें सुना है कि उनका परिणाम निश्चित होगा। वे आपके भीतर जाकर बीज बनेंगी और आपके जीवन में उनसे कुछ हो सकेगा।

इस आशा में ही उन बातों को मैं कहा हूं। और जीवन की एक संक्षिप्त व्यवस्था साधक की कैसी हो, उसकी रूप—रेखा आपके सामने स्पष्ट हुई होगी। यह भी लगा होगा कि क्या करने जैसा है। अब यह आपके ऊपर है कि जो प्रीतिकर लगा है वह जीवन का हिस्सा हो जाए। Continue reading “समाधि कमल-(प्रवचन-08)”

समाधि कमल-(प्रवचन-07)

साधना के जगत में प्रवेश—(प्रवचन—सातवां)

उसके पहले कि आपके प्रश्नों को लूं थोड़ी सी बात कुछ और मुझे कह देनी
है वह कह दूं और फिर आपके प्रश्नों को लूंगा।

साधना की भूमिका के लिए कुछ अंगों पर मैंने प्रकाश डाला, उसकी आपसे चर्चा की। लेकिन मैंने दो बातें बताईं, एक तो साधना कैसे करनी यह बताया और एक यह बताया कि साधना के लिए भूमिका कैसे बनेगी। भूमिका भी ज्ञात हो जाए, साधना करने की पद्धति भी ज्ञात हो जाए, तो भी साधना शुरू नहीं हो जाती। आपको यह भी ज्ञात हो गया कि क्या करना है और यह भी ज्ञात हो गया कि कैसे करना है, तो भी करना शुरू नहीं हो जाता है। Continue reading “समाधि कमल-(प्रवचन-07)”

समाधि कमल-(प्रवचन-06)

विचार के प्रति अपरिग्रह, तटस्थता ओर स्वतंत्र बोध—(प्रवचन—छठवां)

कैसी भूमिका बने तो समाधि उत्पन्न होना सरल होगा, उस संबंध में थोड़ा सा आज सुबह आपको कहना चाहता हूं। भुमिका के तल पर तीन बातें स्मरणीय है। एक बात, सबसे प्रथम बात है: विचार का अपरिग्रह। हम जिन विचारों को अपना समझते हैं वे अपने नहीं हैं। वे हमने दूसरों से ग्रहण किए हैं, वे उधार हैं। जितने भी विचार आपके पास होंगे उनमें से आपका कोई भी नहीं है। वे कहीं से आपके भीतर आए हैं। आप एक धर्मशाला की तरह हैं जिसमें आकर वे ठहर गए हैं। वे आपके मेहमान हैं। वे आपके भीतर निवास कर गए हैं, वे कहीं बाहर से आए हैं, दूसरी जगह से आए हैं। Continue reading “समाधि कमल-(प्रवचन-06)”

समाधि कमल-(प्रवचन-05)

मैत्री भाव, आनंद भाव, समता भाव—(प्रवचन—पांचवां)

इसके पहले कि हम रात्रि के ध्यान के प्रयोग पर बैठें, थोड़ी सी बातें आपको मैं कहूं। सुबह सम्यक आचार के संबंध में थोड़ा सा मैंने आपको कहा, वह एक भूमिका है। वह भूमिका बने, तो ध्यान में अनायास गहराई उपलब्ध होगी। उस भूमिका के बनने पर एक पृष्ठभूमि बनेगी और उसके माध्यम से चित्त की शांति और शून्यता संभव होगी। लेकिन और भी कुछ भूमिकाएं हैं, उनकी भी इसके पहले कि हम यहां से विदा हों, मैं आपसे चर्चा कर लेना चाहूंगा। Continue reading “समाधि कमल-(प्रवचन-05)”

समाधि कमल-(प्रवचन-04)

सबसे बड़ा चमत्कार—जल में कमलवत—(प्रवचन—चौथा)

बहुत से प्रश्न हैं, थोड़े से के उत्तर मैं दे पाऊंगा।

लेकिन अगर आपने ठीक—ठीक अपने ही प्रश्न के शब्दों को खोजने की कोशिश की तो हो सकता है उत्तर न भी मिले। लेकिन जो उत्तर मैं दे रहा हूं उनमें बाकी प्रश्नों के उत्तर भी होंगे। और सच तो यह है कि जो भी मैं कह रहा हूं अगर वह आपको ठीक से समझ में आ जाए, तो शायद ही आपके मन में कोई प्रश्न होने की गुंजाइश है। Continue reading “समाधि कमल-(प्रवचन-04)”

समाधि कमल-(प्रवचन-03)

सम्यक आहार सम्यक व्यायाम, सम्यक निंद्रा—(प्रवचन—तीसरा)

सम्यक आहार से अर्थ है कि भोजन इतना न हो कि वह शरीर की सारी शक्तियों को पचाने के लिए आमंत्रित कर ले। भोजन के बाद इसीलिए नींद— मालूम होती है, क्योंकि शरीर की सारी शक्ति भोजन को पचाने में लग जाती है, इसलिए सारा शरीर शिथिल होने लगता है। जितनी शक्ति है शरीर के पास वह पचाने में लग जाती है, इसलिए शरीर के लिए जरूरी होता है कि वह सो जाए, और कोई काम न करे। अगर वह काम करेगा तो पाचन में बाधा होगी, क्योंकि उतनी शक्ति
काम में लगेगी और पाचन नहीं हो सकेगा। Continue reading “समाधि कमल-(प्रवचन-03)”

समाधि कमल-(प्रवचन-02)

अप्रमत्त जीवन—निराधार, निरालंब, निर्विचार—(प्रवचन—दूसरा)

प्रश्नसार:

1—प्रश्न का ध्वनि मुद्रण नहीं।

असुविधा न मालूम हो, बस इतना ख्याल रखें। फिर वह सबके लिए अलग—अलग समय होगा। आराम रहे, उसमें तकलीफ न मालूम हो।

प्रश्न: पीठ झुक जाए तो?

कोई हर्जा नहीं है यूं तकलीफ न हो आपको बस इस तरह से, कोई तकलीफ की Continue reading “समाधि कमल-(प्रवचन-02)”

समाधि कमल-(प्रवचन-01)

जीवन की सहज स्वीकृति—(प्रवचन—पहला)

क बात जो मैंने रात को आपको कही वह इस संबंध में थी कि हम जीवन को एक स्वीकार दे सकें। जीवन की स्वीकृति एक साधना है। जैसा जीवन उपलब्ध हुआ है हम यदि उसे वैसा ही स्वीकार कर सकें यदि हम उसे वैसा ही देख सकें तो एक क्रांति, एक ट्रांसफार्मेशन अपने आप होना
शुरू हो जाता है। Continue reading “समाधि कमल-(प्रवचन-01)”

समाधि कमल-(ध्यान-साधना)-ओशो

समाधि कमल—(ओशो)
(ओशो द्वारा दिए गए 15 अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन। जो ध्यान साधना शिविर, माथेरान में ध्यान प्रयोग के साथ प्रश्नचर्चा सहित।)
समाधि की भूमिका:
समाधि का अर्थ ही यह होता है : जिससे चित्त की समस्त अशांति का समाधान हो गया। जिसे वे लगाते होंगे वह समाधि नहीं है, वह केवल जड्मूर्च्छा है। जो चीज लगाई जा सकती है वह समाधि नहीं है, वह केवल जडमूर्च्छा है। वह अपने को बेहोश करने की तरकीब है। ट्रिक सीख गए होंगे, और तो कुछ नहीं। तो वह ट्रिक अगर सीख ली जाए तो कोई भी आदमी उतनी देर तक बेहोश रह सकता है उतनी देर उसे कुछ पता नहीं होगा। अगर आप उसको मिट्टी में दबा दें तो भी कुछ पता नहीं होगा। उस वक्त श्वास भी बंद हो जाएगी और सब चेतन कार्य बंद हो जाएंगे।

Continue reading “समाधि कमल-(ध्यान-साधना)-ओशो”

सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-10)

दसवां प्रवचन-(नीति: कागज का फूल)

दिनांक 20 सितम्बर सन् 1975,

श्री ओशो आश्रम पूना।

प्रश्न-सार:

1—आचरणवादी (बिहेवियरिस्ट) मनस्विदों का यह खयाल कि आचरण के प्रशिक्षण से आदमी को बेहतर बनाया जा सकता है, कहां तक सही है?

2—आरोपित दिखाऊ नीति से क्या समाज का काम चल जाता है?

क्या उसे धर्म से उदभूत नीति की और संतों की आवश्यकता नहीं रहती है? Continue reading “सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-10)”

सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-09)

नौवां –प्रवचन-(भीतर के मल धोई)

दिनांक 19 सितम्‍बर सन् 1975,                         

श्री ओशो आश्रम पूना।

सूत्र:

ऊपरि आलम सब करै, साधु जन घट मांहि।

दादू ऐतां अंतरा, ताथैं बनती नाहिं।।

झूठा सांचा कर लिया, विष अमृत जाना।

दुख को सुख सबके कहै, ऐसा जगत दिवाना।।

सांचे का साहब धनी, समरथ सिरजनहार। Continue reading “सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-09)”

सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-08)

आठवां–प्रवचन-(प्रेम जीवन है)

दिनांक 18 सितम्‍बर सन् 1975,

श्री ओशो आश्रम पूना।

प्रश्न-सार

1—ध्यान, समाधि और प्रेम के अंतर्संबंध को समझाने की कृपा करें।

2—क्या प्रेम ही जीवन है? जीवंतता है?

3—जिसके प्रति भी समर्पण का भाव हो, चाहे परमात्मा के प्रति या गुरु के प्रति, उसके संबंध में कोई न कोई धारणा तो होगी ही। तो यह समर्पण भी एक धारणा के प्रति ही होगा न! Continue reading “सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-08)”

सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-07)

सातवां -प्रवचन-(इसक अलह का अंग)

दिनांक 17 सित्‍मबर सन् 1975,

श्री ओशो आश्रम पूना।

सूत्र:

जब लगि सीस न सौंपिए, तब लगि इसक न होई।

आसिक मरणै न डरै, पिया पियाला सोई।।

दादू पाती प्रेम की, बिरला बांचै कोई।

बेद पुरान पुस्तक पढ़ै, प्रेम बिना क्या होई।।

प्रीति जो मेरे पीव की, पैठी पिंजर माहिं।

रोम-रोम पिव-पिव करै, दादू दूसर नाहिं।। Continue reading “सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-07)”

सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-06)

छठवां -प्रवचन-(तथागत जीता है तथाता में)

दिनांक 16 सित्‍मबर सन् 1975,

श्री ओशो आश्रम पूना।

प्रश्न-सार

1—क्या झेन संत बोकोजू का अपनी मृत्यु का पूर्व-नियोजन तथाता के विपरीत नहीं था?

2—दादू कहते हैं: ज्यूं राखै त्यूं रहेंगे, अपने बल नाहीं।

इसी तरह का एक पद संत मलूक का है–

अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम।

दास मलूका कहि गए, सब के दाता राम।।

क्या संत मलूक भी सही हैं? Continue reading “सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-06)”

सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-05)

पांचवां प्रवचन-(समरथ सब बिधि साइयां)

दिनांक : 15 सित्‍म्‍बर, सन् 1975,

श्री रजनीश आश्रमपूना।

सारसूत्र:

समरथ सब बिधि साइयां, ताकी मैं बलि जाऊं।

अंतर एक जु सो बसे, औरां चित्त न लाऊं।।

ज्यूं राखै त्यूं रहेंगे, अपने बल नाहीं।

सबै तुम्हारे हाथि है, भाजि कत जाहीं।।

दादू दूजा क्यूं कहै, सिर परि साहब एक।

सो हमको क्यूं बीसरै, जे जुग जाहिं अनेक।। Continue reading “सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-05)”

सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-04)

चौथा प्रवचन-(मृत्यु श्रेष्ठतम है)

दिनांक : 14 सित्‍म्‍बर, सन् 1975,

श्री रजनीश आश्रम,  पूना।

प्रश्न-सार:

1—कृष्ण पूर्णावतार कहे जाते हैं, पर सभी सयाने उनके प्रति एकमत क्यों नहीं हैं?

2—आपने कहा है, गुरु मृत्यु है, ध्यान मृत्यु है, समाधि मृत्यु है। जीवन में जो भी श्रेष्ठतम है उसे मृत्यु ही क्यों कहा गया है? Continue reading “सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-04)”

सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-03)

तीसरा -प्रवचन-(मेरे आगे मैं खड़ा)

दिनांक : 13 सित्‍म्‍बर, सन् 1975,

श्री रजनीश आश्रमपूना।

सूत्र:

जीवत माटी हुई रहै, साईं सनमुख होई।

दादू पहिली मरि रहै, पीछे तो सब कोई।।

(दादू) मेरा बैरी मैं मुवा, मुझे न मारै कोई।

मैं ही मुझको मारता, मैं मरजीवा होई।।

मेरे आगे मैं खड़ा, ताथैं रह्या लुकाई।

दादू परगट पीव है, जे यहु आपा जाई।। Continue reading “सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-03)”

सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-02)

दूसरा -प्रवचन-(प्रार्थना क्या है?)

दिनांक : 12 सित्‍म्‍बर, सन् 1975,

श्री रजनीश आश्रम,  पूना।

प्रश्न-सार:

1—क्या प्रार्थना ही पर्याप्त है?

2—हम अंधे हैं, अंधकार में जी रहे हैं। प्रकाश का कुछ अनुभव नहीं।

ऐसी अवस्था में हम प्रार्थना क्या करें?

3—आपने कहा कि पाप की स्वीकृति से पात्रता का जन्म होता है।

लेकिन उसी से आत्मदीनता का जन्म भी तो हो सकता है! Continue reading “सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-02)”

सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-01)

पहला-प्रवचन-(तुम बिन कहिं न समाहिं)    

दिनांक : 11 सित्‍म्‍बर, सन् 1975,

श्री रजनीश आश्रम,  पूना।

 सारसूत्र:

तिल-तिल का अपराधी तेरा, रती-रती का चोर।

पल-पल का मैं गुनही तेरा, बक्सौ औगुन मोर।।

गुनहगार अपराधी तेरा, भाजि कहां हम जाहिं।

दादू देखा सोधि सब, तुम बिन कहिं न समाहिं।।

आदि अंत लौ आई करि, सुकिरत कछू न कीन्ह।

माया मोह मद मंछरा, स्वाद सबै चित दीन्ह।।

दादू बंदीवान है, तू बंदी छोड़ दिवान।

अब जनि राखौं बंदि मैं, मीरा मेहरबान।। Continue reading “सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-01)”

सपना यह संसार-(प्रवचन-20)

ज्ञान से शून्य होने में ज्ञान से पूर्ण होना है—(प्रवचन—बीसवां)

 दिनांक; सोमवार, 30 जुलाई 1979;

श्री रजनीश आश्रम, पूना।

प्रश्‍नसार:

1—भगवान,

क्या प्रभु—मिलन में विरह—अवस्था से गुजरना आवश्यक है?

2—भगवान,

मैं मृत्यु की तो बात दूर, मृत्यु शब्द से भी डरती हूं। मृत्यु से कैसे छुटकारा हो सकता है? Continue reading “सपना यह संसार-(प्रवचन-20)”

सपना यह संसार-(प्रवचन-19)

मुंह के कहे न मिलै, दिलै बिच हेरना—(प्रवचन—उन्‍नीसवां)

दिनांक; रविवार, 26 जुलाई 1979;

श्री रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र:

हरि—चरचा से बैर संग वह त्यागिये।

अपनी बुद्धि नसाय सवेरे भागिये।।

सरबस वह जो देइ तो नाहीं काम का।

अरे हां, पलटू मित्र नहीं वह दुष्ट जो द्रोही राम का।।

लोक—लाज जनि मानु वेद—कुल—कानि को। Continue reading “सपना यह संसार-(प्रवचन-19)”

सपना यह संसार-(प्रवचन-18)

मुझे दोष मत देना!—(प्रवचन—अठारहवां)

दिनांक; २८ जुलाई १९७९;

श्री रजनीश आश्रम, पूना।

प्रश्‍नसार:

1—भगवान, मैं प्रभु को पुकारता हूं, वर्षों से पुकारता हूं, नियमित प्रार्थना करता हूं, लेकिन मेरी पुकारों का कोई उत्तर कभी मिलता नहीं। क्या मुझसे कहीं कोई भूल हो रही है?

2—मैकशों की यही आरजू है

साकिया आज ऐसी पिला दे

मैकदे में हैं जितने शराबी

आज सबको नामजी बना दे Continue reading “सपना यह संसार-(प्रवचन-18)”

सपना यह संसार-(प्रवचन-17)

ज्ञान ध्यान के पार ठिकाना मिलैगा—(प्रवचन—सत्रहवां)

दिनांक; शुक्रवार, 27 जुलाई 1979;

श्री रजनीश आश्रम, पूना।

सूत्र—

टोप—टोप रस आनि मक्खी मधु लाइया।

इक लै गया निकारि सबै दुख पाइया।।

मोको भा बैराग ओहि को निरखिकै।

अरे हां, पलटू माया बुरी बलाय तजा मैं परिखिकै।। Continue reading “सपना यह संसार-(प्रवचन-17)”

सपना यह संसार-(प्रवचन-16)

गहन से भी गहन प्रेम है सत्संग—(प्रवचन—सोलहवां)

दिनांक; गुरुवार, 26 जुलाई 1979;

श्री रजनीश आश्रम, पूना।

प्रश्‍नसार:

1—भगवान, बुद्ध कहते हैं: अप्प दीपो भव। अपने दीए स्वयं बनो। और आपकी देशना है: रसमय होओ, रासमय होओ। क्या दोनों उपदेश मात्र अभिव्यक्ति के भेद हैं?

2—भगवान, मैं वर्षों से संतों की वाणी के अध्ययन—मनन में लीन रहा हूं, पर अभी तक कहीं पहुंचा नहीं। और संत तो कहते हैं कि सत्संग क्षण में पहुंचा देता है! Continue reading “सपना यह संसार-(प्रवचन-16)”

सपना यह संसार-(प्रवचन-15)

करामाति यह खेल अंत पछितायगा—(प्रवचन—पंद्रहवां)

दिनांक; बुधवार, 25 जुलाई 1979;

श्री रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र:

करामाति यह खेल अंत पछितायगा।

चटक—भटक दिन चारि, नरक में जायगा।।

भीर—भार से संत भागि के लुकत हैं।

अरे हां, पलटू सिद्धाई को देखि संतजन थुकत हैं।

क्या लै आया यार कहा लै जायगा।

संगी कोऊ नाहिं अंत पछितायगा।। Continue reading “सपना यह संसार-(प्रवचन-15)”

सपना यह संसार-(प्रवचन-14)

धर्म की भाषा है: वर्तमान—(प्रवचन—चौदहवां)

दिनांक; मंगलवार, २४ जुलाई १९७९;

श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्‍नसार:

1—भगवान, पारस के स्पर्श से लोहा सोना हो जाता है। लोहा पारस हो जाए, क्या यह संभव है?

2—भगवान, नाम—जप करते—करते उम्र ढल गई। हाथ तो कभी कुछ लगा नहीं। लेकिन जब भी तथाकथित पंडित—पुजारियों, साधु—महात्माओं से पूछा, तो उन्होंने कहा—बेटा, यह कार्य जन्मों की साधना से होता है। और जीवन के अंतिम पहर में अब आप मिले तो लगता है: मैं भी किन धोखेबाजों के चक्कर में पड़ा रहा! अब मैं क्या करूं? Continue reading “सपना यह संसार-(प्रवचन-14)”

सपना यह संसार-(प्रवचन-13)

राग का अंतिम चरण है वैराग्य—(प्रवचन—तेरहवां)

दिनांक; सोमवार, 23 जुलाई 1978;

श्री रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र:

जीवन है दिन चार, भजन करि लीजिए।

तन मन धन सब वारि संत पर दीजिए।।

संतहिं से सब होइ, जो चाहै सो करैं।

अरे हां, पलटू संग लगे भगवान, संत से वे डरैं।।

ऋद्धि सिद्धि से बैर, संत दुरियावते। Continue reading “सपना यह संसार-(प्रवचन-13)”

सपना यह संसार-(प्रवचन-12)

होश और बेहोशी के पार है समाधि—(प्रवचन—बारहवां)

दिनांक, रविवार, 22 जुलाई 1979;

श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्‍नसार:

1—भगवान, मुझे हिंदी तो बहुत आती नहीं, और कभी कुछ लिखा भी नहीं है, लेकिन जब से आप आए हैं जिंदगी में, आप साथ कविता भी ले आए हैं। कल आपने कहा कि होश से रहना, चूक मत जाना। तो आप ही बताएं, अब क्या होगा! जब इतनी पिला दी, तो होश में आने को कहते हो!

बैठे हैं राहगुजर पे तेरी, सांस थाम के Continue reading “सपना यह संसार-(प्रवचन-12)”

सपना यह संसार-(प्रवचन-11)

झुकने से यात्रा का प्रारंभ है—(प्रवचन—ग्‍यारहवां)

दिनांक; शनिवार, 21 जुलाई 1979;

श्री रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र:

भेख भगवंत के चरन को ध्याइकै,

ज्ञान की बात से नाहिं टरना।

मिलै लुटाइए तुरत कछु खाइए,

माया औ मोह की ठौर मरना।।

दुक्ख औ सुक्ख फिरि दुष्ट औ मित्र को, Continue reading “सपना यह संसार-(प्रवचन-11)”

सपना यह संसार-(प्रवचन-10)

साक्षी में जीना बुद्धत्व में जीना है—(प्रवचन—दसवां)

दिनांक; शुक्रवार, 20 जुलाई 1979;

श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्‍नसार:

1—भगवान, इच्छा केवल रजकण में मिल

तव मंदिर के निकट पडूं

आते—जाते कभी तुम्हारे

श्री चरणों से लिपट पडूं

2—भगवान, धर्म और आदमी के बीच कौन—सी दीवारें हैं,

इस पर प्रकाश डालने की कृपा करें। Continue reading “सपना यह संसार-(प्रवचन-10)”

सपना यह संसार-(प्रवचन-09)

हम चल पड़े हैं राह को दुशवार देखकर—(प्रवचन—नौवां)

दिनांक; गुरुवार, 19 जुलाई 1978;

श्री रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र:

पीवता नाम सो जुगन जुग जीवता,

नाहिं वो मरै जो नाम पीवै।

काल ब्यापै नहीं अमर वह होयगा,

आदि और अंत वह सदा जीवै।।

संतजन अमर हैं उसी हरिनाम से,

उसी हरिनाम पर चित्त देवै। Continue reading “सपना यह संसार-(प्रवचन-09)”

सपना यह संसार-(प्रवचन-08)

बहार आई तो क्या करेंगे—(प्रवचन—आठवां)

दिनांक; बुधवार, 18 जुलाई 1979;

श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्‍नसार:

1—भगवान, हुआ लुप्त पावन दर्शन यह अनुपम

हे भगवान

पुनः स्वार्थ से भरे कीच में रमूं न

मैं अनजान।

2—भगवान, गुरु गोविंद दोऊ खड़े

काके लागूं पांय? Continue reading “सपना यह संसार-(प्रवचन-08)”

सपना यह संसार-(प्रवचन-07)

जीवित सदगुरु की तरंग में डूबो—(प्रवचन—सातवां)

दिनांक; मंगलवार, १७ जुलाई १९७९;

श्री रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र:

बनियां बानि न छोड़ै, पसंघा मारै जाय।।

पसंधा मारै जाय, पूर को मरम न जानी।

निसिदिन तौलै घाटि खोय यह परी पुरानी।।

केतिक कहा पुकारि, कहा नहिं करै अनारी।

लालच से भा पतित, सहै नाना दुख भारी।। Continue reading “सपना यह संसार-(प्रवचन-07)”

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