शिव-सूत्र-(प्रवचन-01)

जीवन—सत्य की खोज की दिशा—(प्रवचन—पहला)

दिनांक 11 सितंबर, 1974; श्री ओशो आश्रम, पूना। प्रात: काल।

सूत्र:

ओंम नम: श्रीशंभवे स्वात्मानन्दप्रकाशवपुषे।

अथ

शिव—सूत्र:

चैतन्यमात्मा

ज्ञानं बन्ध:।

योनिवर्ग: कलाशरीरम्।

क्समो भैरव:।

शक्तिचक्रसंधाने विश्वसंहार:।

ओंम स्वप्रकाश आनंद—स्वरूप भगवान शिव को नमन Continue reading “शिव-सूत्र-(प्रवचन-01)”

शिव-सूत्र -(ओशो)

शिव—सूत्र—(ओशो)

(समाधि साधपा शिवर, श्री ओशो आश्रम, पूना। दिनांक 11 से 20 सितंबर, 1974 तक ओशो द्वारा दिए गए दस अमृत—प्रवचनो का संकलन।
भूमिका:
धर्म की यात्रा के साधन क्या है? इस प्रश्र का समाधान प्रज्ञापुरुषों ने अपने अपने ढंग से किया है। परंतु सभी ने इस बात का स्पष्ट संकेत दिया है कि कोई भी साधन तभी उपयोगी हो सकता है जब साधक गहन से गहनतर चुनौतियों को झेलने के लिए अपने पूरे प्राणपण से तलर हो, कि वह स्वयं एक ऐसी आग में से गुजरने के लिए प्रतिबद्ध हो जो उसकी चेतना को पूरी तरह निखार सके।
परंतु यह यात्रा, इस यात्रा के साधन, और चुनौतियों का सामना करने के योग्य सामर्थ्य यह सब निर्भर करता है एक मुख्य तत्व पर—यात्रा का मार्गदर्शक। दूसरे शब्दों में, मात्र सद्गुरु ही सही साधन उपलब्ध कराते है। सदगुरू स्वयं एक चिरंतन प्रज्वलित अग्रि है जिसकी ऊर्जा व्यक्ति की चेतना को रूपांतरित कर देती है। चुनौती है सद्गुरु, उसके निकट आकर जैसे थे वैसे रह पाना असंभव है।

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शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-31)

प्रवचन-इक्कतीसवां–(शिक्षा: नया धर्म)

मेरे प्रिय आत्मन्!

बीसवीं सदी नये मनुष्य के जन्म की सदी है। इस संबंध में थोड़ी सी बात आपसे करना चाहूंगा। इसके पहले कि हम नये मनुष्य के संबंध में कुछ समझें, यह जरूरी होगा कि पुराने मनुष्य को समझ लें।

पुराने मनुष्य के कुछ लक्षण थे। पहला लक्षण पुराने मनुष्य का था कि वह विचार से नहीं जी रहा था, विश्वास से जी रहा था। विश्वास से जीना अंधे जीने का ढंग है। मानव की अंधे होने की भी अपनी सुविधाएं हैं। और यह भी माना कि विश्वास के अपने संतोष हैं और अपनी सांत्वनाएं हैं। और यह भी माना कि विश्वास की अपनी शांति और अपना सुख है लेकिन यदि विचार के बाद शांति मिल सके और संतोष मिल सके, विचार के बाद यदि सांत्वना मिल सके और सुख मिल सके तो विचार के आनंद का कोई भी मुकाबला, विश्वास का सुख नहीं कर सकता है। Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-31)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-30)

प्रवचन-तीसवां–(बोध का जागरण)

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)

पहली बात तो, साधारणतः हम ऐसा ही सोचते हैं कि गुलामियों के कारण हमारे चरित्र का पतन हुआ, गुलामी के कारण हमारा व्यक्तित्व नष्ट हुआ!

गुलामी आई, तभी हम चरित्रहीन हुए! गुलामी आई तभी, जब कि हम चरित्रहीन हुए?

उसको ही मैं कहना चाहता हूं कि चरित्रहीनता जो है वह गुलामी के कारण नहीं आई, बल्कि चरित्रहीनता के कारण ही गुलामी आई। और चरित्रहीन हम बने, ऐसा कहना मुश्किल है, चरित्रहीन हम थे। बनने का तो मतलब यह होता है कि हम चरित्रवान थे, फिर हम चरित्रहीन बने। Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-30)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-29)

प्रवचन-उन्नतीसवां

नई दिशा, नया बोध

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)

लक्ष्मी ने जो पूछा है, वह सवाल तो छोटा मालूम पड़ता है लेकिन उससे बड़ा कोई और दूसरा सवाल नहीं है। नई पीढ़ी को कैसे शिक्षित करना, यह बड़े से बड़ा सवाल है। और मनुष्यता का सारा भविष्य इस पर निर्भर है। इसकी दो-तीन गहरी बातों को खयाल में लेना चाहिए।

एक तो अब तक बच्चे का पूरी दुनिया में कहीं भी कोई आदर नहीं है। बच्चे से आदर हम मांगते थे, बच्चे को आदर देते नहीं थे। प्रेम देते थे, आदर नहीं देते थे। Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-29)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-28)

प्रवचन-अट्ठाईसवां–(कम्यून जीवन)

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)

यह सवाल हिंदू-मुस्लिम का नहीं है। असल में बड़ा सवाल सदा यही है कि जो ऊपर से लक्षण दिखाई पड़ता है उसे हम बीमारी समझे हुए हैं। लक्षण को बदलने में बड़ी मेहनत उठानी पड़ती है। जब तक लक्षण को बदल पाते हैं तब तक बीमारी नया लक्षण दे जाती है। सवाल हिंदू-मुसलमान का नहीं है और न सवाल गुजराती और मराठी का है, और न सवाल उत्तर और दक्षिण का है। सवाल यह है कि आदमी बिना लड़े नहीं रह सकता है। इसलिए जब तक हम, जो-जो लड़ाइयां वह लड़ता है उनको हल करने में लगे रहेंगे, तब तक जारी रहेगा। सवाल बदलेंगे, नाम बदलेंगे, खूंटी बदलेगी, लेकिन जो हमें टांगना है वह हम टांगे चले जाएंगे। Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-28)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-27)

प्रवचन-सत्ताईसवां–(अंकुरित होने की कला)

मेरे प्रिय आत्मन्!

जीवन मिलता नहीं, निर्मित करना होता है। जन्म मिलता है, जीवन निर्मित करना होता है। इसीलिए मनुष्य को शिक्षा की जरूरत है। शिक्षा का एक ही अर्थ है कि हम जीवन की कला सीख सकें। एक कहानी मुझे याद आती है।

एक घर में बहुत दिनों से एक वीणा रखी थी। उस घर के लोग भूल गए थे, उस वीणा का उपयोग। पीढ़ियों पहले कभी कोई उस वीणा को बजाता रहा होगा। अब तो कभी कोई भूल से बच्चा उसके तार छेड़ देता था तो घर के लोग नाराज होते थे। कभी कोई बिल्ली छलांग लगा कर उस वीणा को गिरा देती तो आधी रात में उसके तार झनझना जाते, घर के लोगों की नींद टूट जाती। Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-27)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-26)

प्रवचन-छब्बीसवां–(जीवंत शिक्षकों की खोज)

मेरे प्रिय आत्मन्!

आधुनिक शिक्षक के संबंध में कुछ कहना थोड़ा कठिन है। इसलिए कठिन है कि शिक्षक आज के पहले कभी दुनिया में था ही नहीं। आधुनिक ही शिक्षक का होना है। जैसा अभी परिचय में कहा, शिक्षक का धंधा, वह बहुत आधुनिक घटना है। वह कभी पहले था नहीं। गुरु थे, वे शिक्षक से बहुत भिन्न थे। शिक्षण उनका धंधा नहीं था, उनका आनंद था। शिक्षण पहली दफे धंधा बना है। और जिस दिन शिक्षण धंधा बन जाएगा, उस दिन शिक्षक गुरु होने की हैसियत खो देता है। उस दिन वह गुरु नहीं रह जाता, नौकर ही हो जाता है या व्यवसायी हो जाता है। Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-26)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-25)

प्रवचन-पच्चीसवां–(शक्ति-नियोजन)

मेरे प्रिय आत्मन्!

शिक्षा का जगत सदा से क्रांति का विरोधी रहा है। शिक्षा सदा से प्रतिगामी रही है, रिएक्शनरी रही है। ऐसा होने का कारण था–आज तक की सारी शिक्षा अतीत-उन्मुख रही है, पीछे की तरफ देखती रही है। यही कारण है कि शिक्षकों ने आज तक क्रांतिकारी विचारक पैदा नहीं किए। शिक्षकों के ऊपर आज तक किसी आविष्कार का इल्जाम नहीं लगाया जा सकता। शिक्षकों ने कोई आविष्कार नहीं किए। शिक्षालय और विद्यापीठ नये का अब तक स्वागत नहीं करते रहे हैं, उसका कारण था कि पुराने को नई पीढ़ी तक पहुंचा देना ही उनका काम था। वह काम पूरा हो जाए, शिक्षा का काम पूरा हो जाता था। Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-25)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-24)

प्रवचन-चौबीसवां-(अंधविश्वासों से मुक्ति)

मेरे प्रिय आत्मन्!

मनुष्य का सबसे बड़ा सौभाग्य और दुर्भाग्य एक ही बात में है और वह यह कि मनुष्य को जन्म के साथ कोई सुनिश्चित स्वभाव नहीं मिला। मनुष्य को छोड़ कर इस पृथ्वी पर सारे पशु, सारे पक्षी, सारे पौधे एक निश्चित स्वभाव को लेकर पैदा होते हैं। लेकिन मनुष्य बिलकुल अनिश्चित तरल और लिक्विड है। वह कैसा भी हो सकता है। उसे कैसा भी ढाला जा सकता है। Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-24)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-23)

प्रवचन-तेईसवां

नारी की मुक्ति और शांति

मेरे प्रिय आत्मन्!

नारी और शांति के संबंध में कुछ थोड़े से सूत्र समझना उपयोगी हैं।

एक तो सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि नारी का अब तक कोई व्यक्तित्व नहीं रहा है और पुरुष ने उसके व्यक्तित्व को मिटाने की भरसक चेष्टा भी की है। नारी या तो किसी की बेटी होती है, या किसी की बहन होती है और या किसी की पत्नी होती है। नारी का अपना होना नहीं है। विवाह हो तो उसका नाम भी पुरुष बदल डालते हैं, नया नाम रख लेते हैं। विवाह हो जाने के बाद उसका सीधा कोई तादात्म्य, कोई सीधी आइडेंटिटी अपने साथ नहीं होती है। वह किसी की श्रीमती हो जाती है। Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-23)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-22)

प्रवचन-बाईसवां

मनोविश्लेषण, मनोजागरण ओर मनोसाधना

ओशो , इनफेक्ट इट इ.ज नाॅट रियली क्लियर टु मी व्हेदर आर वि लीविंग आर डाइंग। सर, ए.ज इट एपीयर्स टु मी देट दि सोसाइटी इन व्हिच वी लीव इ.ज नाॅट हेल्थी इन इट्स ट्रू सेंस एण्ड इ.ज डाॅमिनेटेड बाई दि कंट्रोवर्शियल इस्यूस लाइक एजुकेशन, रिलीजन एण्ड साइंस, रादर नाॅट बीइंग डाइनैमिक। ए.ज आई अंडरस्टैंड सर, बिका.ज आॅफ दी.ज वेरियस कंडीशंस वी आर सिं्वगिंग लाइक दि क्लाक पेंडुलम। वुड यू प्लीज सजेस्ट सम एजुकेशन रिफार्मस व्हिच शुड मेक अवर लाइव्स वर्थ लीविंग? Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-22)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-21)

प्रवचन-इक्कीसवां

मनुष्य के आमूल रूपांतरण की पक्रिया

टु मी दि प्रेजेंट स्टेट ऑफ वल्र्ड अफेयर्स अपियर्स टु बी इलुजरी। द एमीनेंट स्कॉलर्स फ्रॉम डिफरेंट वाक्स ऑफ लाइफ गिव वेरियस थीम्स ऑर ट्रांसफार्मेशन ऑफ लाइफ। ऑर इंस्टांस रिलिजियस लीडर्स अफर्म दैट इट इ.ज दि गाॅड ऑर रिलीजन व्हिच इ.ज ओनली ओमनीपोटेंट एण्ड कैन ट्रांसफार्म दि लाइफ एण्ड प्रोवाइड हेवन। सोशियोलॉजिस्टस, पोलिटिशियंस, एजुकेशनिस्टस एण्ड माॅरेलिस्टस बिलीव दैट बैटर सोसायटी कैन बी ओनली विद बैटर ऑर्मस। नैचुरेलिस्टस से.ज दैट दि अंडरस्टैंडिंग ऑफ दि नेचर शैल बिंरग दि ट्रांसफार्मेशन। व्हेयर ए.ज साइकोलाजिस्ट एण्ड साइकोपैथालाॅजिस्ट बिलीव दैट साइकोएनालिसिस, ट्रैंक्वेलाइजरस, सेडेटिव्स ऑर ब्रेन-वाशिंग एजेंटस कैन ट्रांसफार्म लाइफ एटसेट्रा एटसेट्रा। बट टु मी सर, दिस अपियर्स नियरली ए पार्शियल ट्रांसफार्मेशन। वुड यू सजेस्ट वॉट टोटल एण्ड स्पांटेनियस ट्रांसफार्मेशन इ.ज? Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-21)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-20)

प्रवचन-बीसवां

जीवन-विरोधों में लयवद्धता का बिंदु

आचार्य जी, टुडे आई शैल आस्क अबाउट कंट्राडिक्शन। टु मी सर दिस इस्यू हैज बीन वेरी मच कनफ्यूजिंग। साक्रेटीज क्लीन्स दि सिस्टम बाई प्रोनाउंसिंग दि डेमोक्रेसी, व्हेयर इन ड्यूरेशन ऑफ टाइम चेंज्ड द एटिट्यूड ऑफ अरिस्टोटल टु चेंज दि सिस्टम। आई एग्री विद योर व्यू.ज दैट अवर फ्यूचर आर्गनाइजेशंस विल बी दि आर्गनाइजेशंस ऑफ ओवर लव नाॅट ऑफ डामिनेशंस। बट आई हैव टु एडमिट सर दैट टु रन ए गवर्नमेंट व्हेदर ऑफ स्माल यूनिट आर ऑफ वर्क आर्गनाइजेशंस, वी शैल हैव टु फ्रेम ए कोड ऑफ कंडक्ट व्हिच शैल चेक दि माल-प्रेक्टिसस ऑफ दि बैड एलिमेंट्स एण्ड कीप दि साउंड सिस्टम। शुड आई हैव फ्राॅम यू सर दि डिटेल्स ऑफ अकाउंट? Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-20)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-19)

शिक्षा में क्रांति-ओशो

प्रवचन-उन्नीसवां

आचार्य जी, टुडे आई शैल प्रिपेयर टु इनवाइट योर व्यू.ज ऑन दि इस्यू ऑफ वेनिटी एण्ड फियर। टु मी सर, दिस इस्यू आलसो अपिअर्स टु बी वैल्युएबल टु बी एनालाइजड। एज आई हैव बीन गिवन अंडरस्टैंडिंग सर, इम्मैच्योरिटी बिंरग्स वेनिटी, वेनिटी बिंरग्स प्राइड एण्ड प्राइड बिं्रग्स प्रिज्युडिसिस, प्रिज्युडिसिस अल्टिमेटली रिजल्ट्स इन कंपेरिजन एण्ड कंपेरिजन रिजल्ट्स इन डिवीजंस एण्ड एण्ड्स इन डिस्ट्रकशंस। सर, दिस विसियस सर्किल अपियर्स टु बी वेरी डिसीसिव एण्ड डिस्ट्रायस दि ह्युमैनिटी एट लार्ज। इट हैज बीन स्टेटड बाई दि मैनी-मैनी स्कालर्स दैट दिस कल्चर ऑफ मैनकाइंड इ.ज वेरी एनसिएंट वन। वुड यू प्लीज एनलाइटन ऑन दिस आस्पेक्ट ऑफ लाइफ? Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-19)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-18)

प्रवचन-अठारहवां

निराग्रही, अन्वेषक चित्त की खोज

आचार्य जी, मैनी स्काॅलर्स ऑफ ईस्ट एण्ड वेस्ट हैव गिवन मैनी-मैनी एक्सप्लेनेशंस ड्राविंग दि थिन लाइन बिटवीन अंडरस्टैंडिंग एण्ड एग्जे.जरेशन। इवन खलील जिब्रान वेंट टु द एक्सटेंट स्टेटिंग दैट एग्जे.जरेशन इ.ज दि डेड बॉडी ऑफ अंडरस्टैंडिंग। क्रुएल्टी इ.ज द आउटकम ऑफ द एंटी-थिसिस ऑफ लव, एस्केप ऑफ दि कोवरडाइज। इफ आई से सो सर, दैट इट इ.ज दि नॉन-कविजन…ऑर नॉन-अंडरस्टैंडिंग व्हिच बिंरग्स ऑल दि ब्रुटेल्टीज एण्ड केऑस इन दि सोसाइटी। वुड यू प्लीज थ्रो लाइट ऑन दिस आस्पेक्ट ऑफ लाइफ? Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-18)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-17)

प्रवचन-सत्रहवां–(महत्वाकांक्षा रहित अतुलनीय प्रेम)

प्रेम आत्मन

ए.ज आई हैव अंडरस्टुड योर…सेक्स दैट यू वांट दैट एवरी इंडिविजुअल शुड बी अवेअर आॅफ एण्ड शुड अंडरस्टैंड दि लाइफ एट लार्ज। बट टुडे दि सोसाइटी व्हिच वी हैव इ.ज वेरी कांप्लिकेटेड। अवर इनवायरनमेंट्स आर सो कांप्लिकेटेड दैट दे डु नाॅट अलाउ अस टु लिव फ्री लाइफ, टु लव दि पीपल आर टु लिव इन दि स्टेट व्हेअर वी शुड लिव वेरी क्लीन एण्ड स्मूथ लाइफ।

समाज ऐसा है, इस सत्य को स्वीकार करके ही कुछ किया जा सकता है। समाज ऐसा है, लेकिन अगर किसी व्यक्ति को यह दिखाई पड़ जाए कि एक सरल, प्रेमपूर्ण, आनंदपूर्ण, स्वच्छ जीवन के अतिरिक्त कोई जीवन ही नहीं है, Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-17)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-16)

शिक्षा में क्रांति-ओशो

प्रवचन-सोलहवां

आचार्य जी, टुडे आई शैल प्रिपेयर टु इनवाइट योर व्यूज ऑन दि इश्यु ऑफ वेनिटी एण्ड फियर। टु मी सर, दिस इस्यू आलसो अपियर्स टु बी वैल्युएबल टु बी अनालाइज्ड। ए.ज आई हैव बीन गिवन अंडरस्टेंडिंग, सर, इम्मैच्योरिटी बिंरग्स वेनिटी, वेनिटी बिंरग्स प्राइड, प्राइड बिंरग्स…

…एण्ड गिव डिफरेंट फ्राॅम देयर टाइम, स्पेस एण्ड कांशस एण्ड प्रोवाइडिंग डेफिनिशंस अकार्डिंग टु देयर फील्ड ऑफ एक्टिविटीज। सर ए.ज आई अंडरस्टैंड, देयर हैव बीन सब्जेक्टिव ए.ज वैल ए.ज ऑब्जेक्टिव एप्रोचस। Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-16)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-15)

प्रवचन-पंद्रहवा–(अखंड जीवन का सूत्र)

आचार्य जी, इनफेक्ट टु बी वेरी ट्रू लेट मी पुट दिस क्वेश्चन ऑफ परपजफुल वे ऑफ लाइफ टुडे। टु मी सर, दिस इ.ज नॉट वेरी क्लियर, ए.ज आई सी, ट्रांसफर्मेशन ऑफ फिनामिना इ.ज एवरचेंजिंग, वेदर इट मे बी ऑफ मिनरल किंग्डम, वेजिटेबल किंगडम, एनिमल किंग्डम, इनक्लुडिंग रेशनल बीइंगस् एण्ड नेचरल फिनामिना। आई सी सर, नेचर एवरचेंजिंग, हाउ कैन अवर रेडीमेड फार्मूला.ज सर्व दि परपज? इनफेक्ट सर वॉट इ.ज दि परपज ऑफ लाइफ–इ.ज नॉट वेरी क्लियर टु मी। शुड आई एक्सपेक्ट फ्रॉम यू दि डिटेल अकाउंट ऑन दिस आस्पेक्ट ऑफ लाइफ? Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-15)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-14)

प्रवचन-चौदहवां–(साध्य ओर साधन)

प्रश्नः ओशो, टुडे आई वुड लाइक टु आस्क यू अबाउट मीन्स एण्ड एण्ड्स। सर, इनफेक्ट दिस इस्यू हैज बीन वेरी मच कनफ्यूजिंग फॅर दि वल्र्ड एट लार्ज। मैनी-मैनी स्कॉलर्स फ्रॉम मिडिवियल टु दि प्रेजेंट हैव टेकन दिस इस्यू फ्रॉम मैनी साइड्स गिविंग डिफरेंट डेफिनिशंस एण्ड व्यूज। फॉर इंस्टांस पोलिटिकल फिलॉसफर्स हैव नेम्ड इट फंडामेंटल ट्रूथ एण्ड डिप्लोमेटिक ट्रूथ। सोसियल फिलॉसफर्स हैव यूज्ड इट एज एन इथिकल ट्रूथ एण्ड सोसियल ट्रूथ। सेप्टिकल फिलॉसफर्स हैव यूज्ड इट एज एक्चुअल ट्रूथ एण्ड रिलेटिव ट्रूथ। साइंस फिलॉसफर्स हैव यूज्ड इट एज साइंटिफिक लिविंग एण्ड आर्ट ऑफ लिविंग। बट इफ आई एम नॉट मिस्टेकन सर, दे डील विद आल दि नाइन बेसिक इस्यूज ऑफ लिविंग ईदर सब्जेक्टिवली ऑर ऑब्जेक्टिवली व्हिच आर एज अंडरः Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-14)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-13)

प्रवचन-तेरहवां–(संदेह की ज्योति)

मेरे प्रिय आत्मन्!

जैसे व्यक्ति बूढ़ा हो जाता है, वैसे ही समाज भी बूढ़े हो जाते हैं। और जैसे एक व्यक्ति मरता है, वैसे ही समाज और संस्कृतियां भी मरती हैं। लेकिन कोई व्यक्ति न बूढ़े होने से इनकार कर सकता है और न मरने से। लेकिन कोई समाज, कोई संस्कृति, कोई सभ्यता यदि चाहे तो बूढ़े होने और मरने से इनकार कर सकती है। लेकिन जो समाज मरने से इनकार कर देगा, उसका नया जीवन पैदा होना बंद हो जाता है। Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-13)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-12)

प्रवचन-बारहवां–(विद्रोह की आग)

मेरे प्रिय आत्मन्!

जरथुस्त्र एक पहाड़ से नीचे उतर रहा था। वह बहुत तेजी में था, जैसे कोई बहुत जरूरी खबर पहाड़ के नीचे ले जानी हो। भागता हुआ और हांफता हुआ वह बाजार में पहुंचा, मैदान में नीचे। बाजार की भीड़ में चिल्ला कर उसने पूछा कि तुम्हें कुछ पता चला? हैव यू गाट दि न्यूज, तुम्हें खबर मिली? लोग पूछने लगे, कौन-सी खबर? तो जरथुस्त्र हैरान हो गया–इतनी बड़ी घटना घट गई है और तुम्हें पता नहीं! तुम्हें खबर नहीं मिली कि ईश्वर मर गया है! लोग बहुत हैरान हुए। फिर जरथुस्त्र को लगा कि शायद वह जल्दी आ गया है, लोगों तक अभी खबर नहीं पहुंची है। मैं यह घटना पढ़ रहा था और मुझे लगा कि लोगों तक कोई भी महत्वपूर्ण खबर कभी भी नहीं पहुंचती है। और जो भी खबर लाते हैं, उन सभी को ऐसा लगता है कि शायद वे समय से पहले आ गए हैं, जल्दी आ गए हैं। Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-12)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-11)

प्रवचन-ग्यारहवां–(अशांति का बीजमंत्र)

मेरे प्रिय आत्मन्!

वही विद्या है, जो विमुक्त करे–‘सा विद्या या विमुक्तये।’

इस संबंध में ही थोड़ी सी बात आज की सुबह मुझे आपसे कहनी है। बड़ा अदभुत है यह वचन। बड़ी मौलिक है यह परिभाषा। विद्या की परिभाषा भी यही है और विद्या की कसौटी भी यही है। जो मुक्त करे, वही विद्या है। लेकिन शायद, इसके दूसरे पहलू का आपको कोई खयाल न हो? हम तो मुक्त नहीं हैं। तो जो विद्या हमने पाई है, वह विद्या नहीं होगी, वह अविद्या होगी। हमारे जीवन ने तो कोई मुक्ति नहीं जानी। तो जिन विद्यालयों में हम पढ़े, वे विद्यालय न होंगे, अविद्यालय होंगे। विद्या की तो कसौटी और परिभाषा यही है कि जीवन मुक्ति के आनंद को उपलब्ध हो जाए। Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-11)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-10)

प्रवचन-दसवां–(विषबुझी महतवाकांक्षा)

मेरे प्रिय आत्मन्!

एक छोटी सी कहानी से मैं अपनी इस चर्चा को शुरू करना चाहूंगा।

एक सम्राट के द्वार पर बहुत भीड़ लगी हुई थी। और भीड़ सुबह से लगनी शुरू हुई और बढ़ती ही चली गई थी। दोपहर आ गई थी और करीब-करीब सारा नगर वहां इकट्ठा हो गया था। जो आदमी भी आकर खड़ा हो गया, उसने हटने का नाम नहीं लिया। उस सम्राट के द्वार पर कोई बड़ी अनहोनी घटना घट गई थी। सांझ होते-होते तो दूर-दूर के गांव से भी लोग आ गए थे। क्या हो गया था वहां!–और सभी मंत्रमुग्ध खड़े थे! Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-10)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-09)

प्रवचन-नौवां–(प्रेम-केंद्रित शिक्षा)

मेरे प्रिय!

मैं बहुत आनंदित हुआ कि युवकों और विद्यार्थियों के बीच थोड़ी सी बात कहने को मिलेगी। युवकों के लिए जो सबसे पहली बात मुझे खयाल में आती है वह यह है, और फिर उस पर ही मैं और कुछ बातें विस्तार से आज आपसे कहूंगा।

जो बूढ़े हैं उनके पीछे दुनिया होती है, उनके लिए अतीत होता है, जो बीत गया वही होता है। बच्चे भविष्य की कल्पना और कामना करते हैं, बूढ़े अतीत की चिंता और विचार करते हैं। जवान के लिए न तो भविष्य होता है और न अतीत होता है, उसे केवल वर्तमान होता है। Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-09)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-08)

प्रवचन-आठवां

अज्ञान के नये आयाम-(प्रश्नोत्तर-चर्चाः 1968-69)

नई कला (माडर्न आर्ट) बिलकुल ही अजूबा हो गई है। इसमें कलाकार क्या अभिव्यक्त करना चाहता है?

असल में अगर ठीक से हम देखें तो सारी कलाएं जैसे-जैसे सत्य को बताने की दिशा में आगे बढ़ेंगी, वैसे-वैसे सत्य को बताने में तो समर्थ न होंगी; जो कुछ बता पा रही थीं उसको भी बताने में असमर्थ हो जाएंगी। वैसे हुआ है, हो रहा है। नई मूर्ति है या नई पेंटिंग है या नई कविता या नया संगीत है, चेष्टा है इस बात की कि व जो फार्म बाधा डालता है, वह जो आकार और वह आकृति और वह जो मीडियम बाधा डालता है, उससे हम मुक्त होकर इतना ट्रांसपेरेंट हो सकें कि वह बाधा न डाले, बल्कि मार्ग बन जाए। लेकिन परिणाम क्या होता है? Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-08)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-07)

प्रवचन-सातवां–(नारी और क्रांति)

मेरी प्यारी बहनो!

मनुष्य के इतिहास में नारी-जाति के साथ जो अत्याचार और अनाचार हुआ है, उस संबंध में थोड़ी सी बात प्रारंभ में ही कहना चाहूंगा और नारी के साथ जो हुआ है, उसके परिणाम में पूरी मनुष्य-जाति के जो अहित हुए हैं, उस संबंध में थोड़ी बात कहना चाहूंगा।

मनुष्य की पूरी जाति, मनुष्य का पूरा समाज, मनुष्य की पूरी सभ्यता और संस्कृति अधूरी है क्योंकि नारी ने उस संस्कृति के निर्माण में कोई भी दान, कोई भी कंट्रिब्यूशन नहीं किया। नारी कर भी नहीं सकती थी। Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-07)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-06)

प्रवचन-छठवां–(युक्रांद क्या है)

मेरे प्रिय आत्मन्!

युवक क्रांति दल, युक्रांद की इस पहली बैठक को संबोधित करते हुए मैं अत्यंत आनंदित हूं। युवक क्रांति दल के संबंध में पहली बात तो यह समझ लेनी जरूरी है कि मैं युवक किसे कहता हूं। युवक क्रांति दल की दृष्टि में युवक होने का संबंध उम्र और आयु से नहीं है। युवक से अर्थ हैः ऐसा मन जो सीखने को सदा तत्पर है–ऐसा मन जिसे यह भ्रम पैदा नहीं हो गया है कि जो भी जानने योग्य था, वह जान लिया गया है–ऐसा मन जो बूढ़ा नहीं हो गया है और स्वयं को रूपांतरित और बदलने को तैयार है। बूढ़े मन से अर्थ होता है ऐसा मन जो अब आगे इतना लोचपूर्ण नहीं रहा है कि नये को ग्रहण कर सके, नये का स्वागत कर सके। बूढ़े मन का अर्थ हैः पुराना पड़ गया मन। Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-06)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-05)

प्रवचन-पांचवां -(प्रेम-विवाह ओर बच्चे)

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।

जो अनुभव है परमात्मा का अनुभव है। सारे मनुष्य का अनुभव शरीर का अनुभव है। सारे योगी का अनुभव सूक्ष्म शरीर का अनुभव है। परम योगी का अनुभव परमात्मा का अनुभव है। परमात्मा एक है, सूक्ष्म शरीर अनंत है। स्थूल शरीर अनंत है। जो सूक्ष्म शरीर है, वह है–काॅ.जल बाडी। वह जो सूक्ष्म है, वह नये स्थूल शरीर ग्रहण करता है। हम यहां देख रहे हैं कि बहुत से बल्ब जले हुए हैं। विद्युत तो एक है, विद्युत बहुत नहीं हैं। वह ऊर्जा, वह शक्ति, वह इनर्जी एक है लेकिन दो अलग बल्बों से वह प्रकट हो रही है। बल्ब का शरीर अलग-अलग है, उसकी आत्मा एक है। हमारे भीतर से जो चेतना झांक रही है, वह चेतना एक है, लेकिन है एक सूक्ष्म उपकरण ही, सूक्ष्म देह है! Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-05)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-04)

प्रवचन-चौथा–(शिक्षक, समाज ओर क्रांति)

मेरे प्रिय आत्मन्!

शिक्षक और समाज के संबंध में कुछ थोड़ी सी बातें जो मुझे दिखाई पड़ती हैं, वह मैं आपसे कहूं। शायद जिस भांति आप सोचते रहे होंगे उससे मेरी बात का कोई मेल न हो। यह भी हो सकता है कि शिक्षाशास्त्री जिस तरह की बातें कहता है उस तरह की बातों से मेरा विरोध भी हो। न तो मैं कोई शिक्षाशास्त्री हूं और न ही समाजशास्त्री। इसलिए सौभाग्य है थोड़ा कि मैं शिक्षा और समाज के संबंध में कुछ बुनियादी बातें कह सकता हूं। क्योंकि जो शास्त्र से बंध जाते हैं उनका चिंतन समाप्त हो जाता है। जो शिक्षाशास्त्री हैं उनसे शिक्षा के संबंध में कोई सत्य प्रकट होगा, इसकी संभावना अब करीब-करीब समाप्त मान लेनी चाहिए। Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-04)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-03)

तीसरा प्रवचन–(शिक्षा ओर धर्म)

मेरे प्रिय!

एक फकीर बहुत अकेला था। स्वप्न में उसे परमात्मा के दर्शन हुए तो उसने पाया कि परमात्मा तो उससे भी अकेला है। निश्चय ही वह बहुत हैरान हुआ और उसने भगवान से पूछा, क्या आप भी इतने अकेले हैं? लेकिन आपके तो इतने भक्त हैं, वे सब कहां हैं? यह सुन कर भगवान ने उससे कहा था, मैं तो सदा से अकेला ही हूं और इसलिए ही जो नितांत अकेले हो जाते हैं वे ही केवल मेरा अनुभव कर पाते हैं। रही भक्तों और तथाकथित धार्मिकों की बात, सो वे मेरे साथ कब थे? उनमें से कोई राम के साथ है, कोई कृष्ण के, कोई मोहम्मद के और कोई महावीर के। उनमें से मेरे साथ तो कोई भी नहीं है। मैं तो सदा का ही अकेला हूं। और इसलिए जो किसी के भी साथ नहीं है, बस अकेला ही है वही केवल मेरे साथ है। Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-03)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-02)

दूसरा- प्रवचन–(धर्म ओर विज्ञान)

मेरे प्रिय!

एक अमावस की गहरी अंधेरी रात्रि की बात है और एक छोटे से गांव की घटना। आधी रात्रि बीत गई थी और सारा गांव नींद में डूबा हुआ था। कुत्ते भी भौंक-भौंक कर सो गए थे कि अचानक एक झोपड़े से उठ रही रोने की और चिल्लाने की आवाज ने सभी को जगा दिया। अर्धनिद्रित लोग उस झोपड़े की ओर भागने लगे, बूढ़े और बच्चे–सभी। उस सोए गांव में एक विक्षिप्त सी गति आ गई। किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। फिर भी लोग उस झोपड़े के आस-पास इकट्ठे हो रहे थे। झोपड़े के भीतर से आवाज आ रही थीः Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-02)”

शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-01)

पहला प्रवचन–(नये मनुष्य के जन्म की दिशा)

मेरे प्रिय!

मैं आपके बीच उपस्थित होकर अत्यंत आनंदित हूं। निश्चय ही इस अवसर पर मैं अपने हृदय की कुछ बातें आपसे कहना चाहूंगा। शिक्षा की स्थिति देख कर हृदय में बहुत पीड़ा होती है। शिक्षा के नाम पर जिन परतंत्रताओं का पोषण किया जाता है उनसे एक स्वतंत्र और स्वस्थ मनुष्य का जन्म संभव नहीं है। मनुष्य-जाति जिस कुरूपता और अपंगता में फंसी है, उसके मूलभूत कारण शिक्षा में ही छिपे हैं। शिक्षा ने प्रकृति से तो मनुष्य को तोड़ दिया है लेकिन संस्कृति उससे पैदा नहीं हो सकी है, उलटे पैदा हुई है–विकृति। इस विकृति को ही प्रत्येक पीढ़ी नई पीढ़ियों पर थोपे चली जाती है। और फिर जब विकृति ही संस्कृति समझी जाती हो तो स्वभावतः थोपने का कार्य पुण्य की आभा भी ले लेता हो तो आश्चर्य नहीं है। और जब पाप पुण्य के वेश में प्रकट होता है, तो अत्यंत घातक हो ही जाता है। Continue reading “शिक्षा में क्रांति-(प्रवचन-01)”

लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-10)

दसवां प्रवचन-(समर्पण ही सत्संग है)

दिनांक 30 नवम्बर, 1980,श्री ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न: भगवान,

दुर्लभं त्रैयमेवैवत् देवानुग्रह हेतुकम्।

मनुष्यत्वं मुमुक्षुयं महापुरुषसंश्रयः।।

मनुष्य देह, मुमुक्षा और महापुरुष का आश्रय, ये तीनों अति दुर्लभ हैं–अलग-अलग होकर भी। जब तीनों एक साथ मिलें तब तो परमात्मा का अनुग्रह ही है। तब मोक्ष करीब है। फिर भी आप चूक सकते हैं।

भगवान, हमारे लिए इस सुभाषित की विशद व्याख्या करने की अनुकंपा करें। Continue reading “लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-10)”

लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-09)

नौवां प्रवचन-(योग ही आनंद है)

दिनांक 28 नवम्बर, 1980,श्री ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न:

भगवान, आप सदा आनंदमग्न हैं, इसका राज क्या है? मैं कब इस मस्ती को पा सकूंगा?

योगानंद, मैं तुम्हें नाम दिया हूं योगानंद का, उसमें ही सारा राज है।

मनुष्य दो ढंग से जी सकता है। या तो अस्तित्व से अलग-थलग, या अस्तित्व के साथ एकरस। अलग-थलग जो जीएगा, दुख में जीएगा–चिंता में, संताप में। यह स्वाभाविक है। क्योंकि अस्तित्व से भिन्न होकर जीने का अर्थ है: जैसे कोई वृक्ष पृथ्वी से अपनी जड़ों को अलग कर ले और जीने की चेष्टा करे। Continue reading “लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-09)”

लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-08)

आठवां प्रवचन-(सवाल अहिंसा का नहीं,कोमलता का)

दिनांक 28 नवम्बर, 1980,श्री ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न: भगवान,

आहारशुद्धौ सत्वशुद्धिः। सत्वशुद्धौ ध्रुवा स्मृतिः।

स्मृतिलाभै सर्वग्रंथीनां विप्रमोक्षः।।

आहार की शुद्धि होने पर सत्व की शुद्धि होती है, सत्व की शुद्धि होने पर ध्रुव स्मृति की प्राप्ति होती है। और स्मृति की प्राप्ति से समस्त ग्रंथियां खुल जाती हैं।

भगवान, छांदोग्य उपनिषद के इस सूत्र की व्याख्या करने की अनुकंपा करें। Continue reading “लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-08)”

लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-07)

सातवां प्रवचन-गुरु स्वयं को भी उपाय बना लेता है

दिनांक 27 नवम्बर, 1980,श्री ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न:

भगवान, शाटयायनीय उपनिषद गुरु की महिमा इस प्रकार गाता है:

गुरुदेव परौ धर्मो गुरुदेव परा गतिः।

एकाक्षर    प्रदातमम्    नाभिनन्दति।

तस्य श्रुत तपो ज्ञानं स्रवत्यामघटाम्बुयत्।।

गुरु ही परम धर्म है, गुरु ही परम गति है। जो एक अक्षर के दाता गुरु का आदर नहीं करता, उसके श्रुत, तप और ज्ञान धीरे-धीरे ऐसे ही क्षीण होकर नष्ट हो जाते हैं जैसे कच्चे घड़े का जल। Continue reading “लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-07)”

लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-06)

छठवां प्रवचन-(अद्वैत की अनुभूति ही संन्यास है)

दिनांक 26 नवम्बर, 1980,श्री ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न: भगवान,

कर्मत्यागान्न संन्यासौ न प्रैषोच्चारणेन तु।

संधौ जीवात्मनौरैक्यं संन्यासः परिकीर्तितः।।

कर्मों को छोड़ देना कुछ संन्यास नहीं है। इसी प्रकार, मैं संन्यासी हूं, ऐसा कह देने से भी कोई संन्यासी नहीं होता है। समाधि में जीव और परमात्मा की एकता का भाव होना ही संन्यास कहलाता है।

भगवान, संन्यास के इस प्रसंग में कहे गए मैत्रेयी उपनिषद के इस सूत्र को हमारे लिए बोधगम्य बनाने की अनुकंपा करें।

आनंद मैत्रेय! Continue reading “लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-06)”

लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-05)

पांचवां प्रवचन– (मेरे संन्यासी तो मेरे हिस्से हैं)

दिनांक 25 नवम्बर, 1980,श्री ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न:

भगवान, संस्कृत में एक सुभाषित है कि यदि शील अर्थात शुद्ध चरित्र न हो तो मनुष्य के सत्य, तप, जप, ज्ञान, सर्व विद्या और कला, सब निष्फल होते हैं।

सत्यं तपो जपो ज्ञान

      सर्वा विद्याः कला अपि।

नरस्य निष्फलाः सन्ति

      यस्य शील न विद्यते।। Continue reading “लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-05)”

लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-04)

चौथा प्रवचन-(संसार से पलायन नहीं, मन का रूपांतरण)

दिनांक 24 नवम्बर, 1980,श्री ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न: भगवान,

मन  एव  मनुष्यानां  कारणं  बंधमोक्षयोः।

बंधाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम्।।

अर्थात मन ही मनुष्यों के बंधन और मोक्ष का कारण है। जो मन विषयों में आसक्त होगा वह बंधन का तथा जो विषयों से पराङ्मुख होगा वह मोक्ष का कारण होगा। Continue reading “लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-04)”

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