प्रेम श्वास है आत्मा की—(प्रवचन—बीसवां)
प्रश्न-सार :
1—प्यारे भगवान! मैं रोऊं, गाऊं या मुस्कुराऊं, नौ साल दूर कैसे रह गई, समझ नहीं पाती हूं। अब पास आकर ऐसी दशा है कि हमेशा रोआं-रोआं कांपता रहता है, चाहे सोई रहूं या जागी रहूं। इस अवस्था पर आनंद भी अनुभव होता है और झुंझलाहट भी। कोई रास्ता दिखाने की कृपा करें।
2—जीवन के बंधनों से मुक्ति कैसे हो? आवागमन कैसे मिटे?
3—आप जब गांधी, विनोबा, अरविंद और विवेकानंद के विरोध में बोलते हैं, तो मुझे रंज होता है। वैसे ही जब कोई आपके विरोध में बोलता है तो मुझे रंज होता है। विनती है कि जैसे आप बुद्ध और महावीर को समझाने में सहायक होते हैं, वैसे ही श्री अरविंद को समझाने में सहायक हों।
4—आप कहते हैं–प्रेम है द्वार प्रभु का। मैंने भी कभी किसी को प्रेम किया था, लेकिन उसे पाने में असफल रहा। अब तो तीस वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन फिर किसी और को प्रेम न कर पाया। भगवान, क्या कभी मेरा उससे मिलन होगा? Continue reading “पद घुुंघरू बांध-(प्रवचन-20)”