सरल, तुम अंजान आए—प्रवचन—बीसवां
दिनांक: 20 नवंबर, 1978; श्री रजनीश आश्रम, पूना।
प्रश्न सार:
1—भगवान, दो नावों में पांव, नदिया कैसे होगी पार?
2—भगवान, ऐसे भाव उठते हैं कि कलम उठाती हूं तो समझ नहीं पाती—कैसे लिखूं क्या लिखूं? भीतर एक तूफान उठा है! इधर आती हूं तो एक अनोखी मस्ती छा जाती है। घर पर भी वही मस्ती छाई रहती है। लेकिन उससे बच्चों को ऐसा लगता है कि हमारे प्रति मां थोड़ी बेध्यान हो रही है। और मुझे यह खुद को भी कभी—कभी लगता है कि यह बच्चों के प्रति अन्याय हो रहा है; मेरी मस्ती बच्चों के लिए विघ्न नहीं बननी चाहिए। यह समझने पर भी उनको समग्रता से प्यार नहीं कर पाती हूं। इस हालत में बड़ी बेचैनी उठती है, तो मैं क्या करूं? मार्गदर्शन करने की कृपा करें। Continue reading “मराैै है जोगी मरौ-(प्रवचन-20)”